सबके प्रेरणास्रोत थे अजातशत्रु अटल

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प्रद्युम्न तिवारी, पॉलिटिकल एडिटर

राजनीति के शलाका पुरुष और भारत के पूर्व यशस्वी प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के विषय में क्या लिखूं और क्या बिसराऊं। समय बीतते देर नहीं लगती। पर अटल आज भी हमारे स्मृतिपटल पर अंकित हैं। छह दशक पूर्व राजनीति की रपटीली राहों पर निकले जिन अटल जी को शुरू में सफलता के लिए कड़ा संघर्ष करना पड़ा, उन्हीं ने राजनीति के एक ऐसे युग की नींव रखी जिसे हिलाने का माद्दा शायद बड़े से बड़े राजनेता में नहीं होगा। राजनीति में जो लकीर अटल खींच गए, उससे बड़ी लाइन खींचने में वही कामयाब होगा, जिसमें अटल जैसी सहजता, सौम्यता, बेबाकी, सर्वस्वीकार्यता, दृढ़ निश्चय, जुझारूपन और मनुष्यता होगी। इन्हीं सब गुणों ने तो अटल बिहारी वाजपेयी को अजातशत्रु और कालजयी बना दिया।

भारतीय संस्कारों से अनुप्राणित अटल जी राजनीतिक क्षेत्र में थे जरूर, लेकिन उनकी मूल चेतना साहित्यिक थी। उनके अंदर के कवि और लेखक ने ही उन्हें एक संवेदनशील राजनेता बनाया। ऐसा राजनेता, जो दलीय मतभेदों और विचारों से ऊपर उठा। यह अटल की ही क्षमता थी कि उन्होंने साबित कर दिया कि राजधर्म का निर्वाह यदि भलीभांति किया जाए, तो राष्ट्र के उन्नय में बड़ी से बड़ी बाधा भी आड़े नहीं आती। जनसंघ में शून्य से शिखर तक की यात्रा करने वाले अटल ही थे, जिन्होंने जनसंघ की कट्टर हिंदुत्व वाली छवि के बीच भी अपने काडर में और बाहर भी ऐसे उदार हिंदुत्व का चेहरा उजागर किया कि राजनीति में उनके बड़े से बड़े विरोधी नेता भी उनके सामने नतमस्तक नजर आते थे।

दरअसल शुरुआत से ही विरोधी दलों का मानना था कि जनसंघ के पास आर्थिक तथा कूटनीति संबंधी कोई नीति नहीं है। पर, वाजपेयी ने इस धारणा को तो ध्वस्त किया ही, जनसंघ से दूरी बनाए रखने और उससे छुआछूत मानने वाले भी इस बात के कायल हो गये कि इस संगठन में दम है। उनका जीवन इंद्रधनुष की तरह था। उनमें राजनीतिक मत भिन्नता को मतैक्य में बदल देने की अद्भुत कला थी। यही कारण था कि वह ऐसे गैर कांग्रेसी प्रधानमंत्री साबित हुए जिसने विभिन्न दलों को साथ लेकर पांच साल तक सफलतापूर्वक सरकार चलाई। गठबंधन की राजनीति को उन्होंने ही परवान चढ़ाया। देखा जाए तो 1977 में आपातकाल के बाद ही गठबंधन की सरकार बन गई थी लेकिन गठबंधन धर्म निभाकर पांच साल सरकार कैसे चलाई जाती है, यह मिसाल अटल ने ही पेश की। क्षेत्रीय दलों की आकांक्षा, अपेक्षा और महत्वाकांक्षा को उन्होंने बखूबी समझा और उसे महत्ता भी दी। उन्होंने सबको दिखा दिया कि राजधर्म क्या होता है और सही ढंग से इसे निभाकर संकट के बड़े से बड़े भंवर से पार पाया जा सकता है। इतना ही नहीं, अटल की सरकार में बनी और लागू हुई योजनाएं देश के इतिहास में मील का पत्थर साबित हुईं। चाहे वह सर्व शिक्षा अभियान हो या फिर विनिवेश की नीति। स्वर्णिम चतुर्भुज सड़क योजना ने तो मानो देश की तस्वीर ही बदल दी। वाजपेयी ने राजकाज में सर्वस्वीकार्यता की मिसाल तो कायम की ही, विपक्ष को भी वह सकारात्मक राजनीति के अर्थ समझाने में सफल रहे थे।

जहां तक उनकी कूटनीति का सवाल है तो सत्ता की बागडोर संभालने पर उन्होंने बिना किसी लाग-लपेट के निर्भीक होकर रूस के बजाय अमरीका का साथ साधा। उन्होंने भारत का झुकाव अमरीका की ओर किया तो उनके फैसले पर विपक्षियों की ओर से नाक भौं सिकोड़ी गयी, आलोचना भी हुई लेकिन अटल जी ने साबित कर दिया कि उनकी नीति सही थी। यही कारण है कि बाद के दौर में आयी सरकारों ने भी इस साथ को बरकरार रखा है। ऐसा भी नहीं हुआ कि इससे रूस नाराज हो गया और उससे संबंध विच्छेद हो गए, वह देश भी आज हमारे साथ ही खड़ा है। यही हाल पाकिस्तान से संबंधों को लेकर भी रहा। अटल ने दोनों देशों के बीच संबंध सुधारने की बेहतर पहल की थी। पर पाकिस्तान के रवैये में सुधार न आने पर उन्होंने दृढ़ता दिखाते हुए यह भी जता दिया कि हम मधुर संबंधों के हिमायती जरूर हैं लेकिन देश की सुरक्षा और संप्रभुता से खिलवाड़ बर्दाश्त नहीं करेंगे।

सदैव प्रसन्नचित्त रहने वाले अटल जी के दृढ़ निश्चय का भी कोई सानी नहीं था। जब उन्होंने पोखरण में परमाणु परीक्षण किया था तो सभी दंग रह गए थे। अमेरिका ने तो आर्थिक प्रतिबंध तक लगा दिये थे, लेकिन अटल डिगे नहीं थे। उन्होंने दुनिया को दिखा दिया था कि भारत शांति दूत है, परंतु अपनी सुरक्षा के प्रति आंखें बंद नहीं कर सकता। बाद में अमेरिका को आर्थिक प्रतिबंध हटाने को मजबूर होना पड़ा। इस तरह अटल ने सारी दुनिया को अपने दृढ़ निश्चय का परिचय दे दिया था। देखा जाये तो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी अटल की ही नीतियों को आगे बढ़ा रहे हैं।

संसद से सड़क से संघर्ष करने वाले अटल ने ज्यादातर विपक्ष की ही भूमिका निभाई थी। इसके बावजूद सब पर भारी अटल बिहारी वाला नारा उन्होंने ही चरितार्थ किया। अनुशासनपसंद अटल जी चाहे संसद हो अथवा सड़क, कहीं भी बददिमागी को स्थान नहीं देते थे। अपने तर्क भी शालीनता से रखते थे। उनके सामने बड़ा हो या छोटा, वह किसी को भी इस बात की अनुमति नहीं देते थे कि वह अनुशासन के दायरे से बाहर जाए। अटल जी कहते भी थे कि जिसमें मनुष्यता नहीं, वह कुछ नहीं कर सकता। अटल जी ने इसे ताउम्र निभाया भी। सहजता और सौम्यता उनका ऐसा गुण था कि छोटे से छोटा कार्यकर्ता तक अपने को उनके सबसे नजदीक मानता था।

अटल जी की ῾परिचय शीर्षक वाली कविता की लाइनें हैं–पय पीकर सब जीते आये, लो अमर हुआ मैं विष पीकर। अटल जी का पूरा जीवन दर्शन इन्हीं पंक्तियों में छिपा हुआ है। पता नहीं कितनी बार उन्हें राजनीति का गरल पीना पड़ा, परंतु वह न तो डगमगाए, न तिलमिलाए। यही कारण रहा कि उनकी राजनीतिक पृष्ठभूमि तथा विचारधारा गौण हो गई और उनका व्यक्तित्व ही सर्वोपरि रहा। यह उनका ही साहस और बेबाकी थी कि विपक्ष में रहते हुए भी सरकार के उल्लेखनीय कार्यों की प्रशंसा करने से नहीं चूकते थे। अटल जी तो अपने विरोधियों को भी माफ कर गले लगाना जानते थे। उनमें विश्वास भी अटल था। ऐसा कि विरोधी भी पस्त होकर उनसे प्रेरणा लेते थे। शायद यही कारण है कि उनके स्मारक स्थल का नाम भी सदैव अटल रखा गया। अटल जी ने ही विवादित ढांचा ढहाए जाने को राष्ट्रीय शर्म बताकर सबको चुप करा दिया था। अपनी इन्हीं खूबियों के कारण अटल जी कालजयी कहलाये।