संपादकीय: रेवड़ी कल्चर, कर्जदार बनते राज्य

देश में चुनाव जीतने व सत्ता बरकरार रखने के लिए पिछले कुछ वर्षों से सियासी दलों में रेवड़ी कल्चर यानी मुफ्त में बिजली, पानी समेत तमाम उपहार देने की परंपरा लोकप्रिय हो गई है।

संदेशवाहक डिजिटल डेस्क। देश में चुनाव जीतने व सत्ता बरकरार रखने के लिए पिछले कुछ वर्षों से सियासी दलों में रेवड़ी कल्चर यानी मुफ्त में बिजली, पानी समेत तमाम उपहार देने की परंपरा लोकप्रिय हो गई है। इसके दुष्परिणाम भी दिखने लगे हैं। कई राज्यों पर कर्ज का बोझ तेजी से बढ़ता जा रहा है। अर्थशास्त्रियों और आरबीआई की माने तो यदि यही स्थिति बनी रही तो कई राज्यों की आर्थिक हालत बदतर हो जाएगी और वे श्रीलंका वाली स्थिति में पहुंच जाएंगे।

सवाल यह है…

  • क्या सियासी दल इसकी गंभीरता को समझ नहीं रहे हैं या येन-केन-प्रकारेण सत्ता पाना ही उनका लक्ष्य बन गया है?
  • क्या कल्याणकारी योजनाओं और मुफ्त उपहारों के बीच सीमा रेखा को मिटाने की कोशिश की जा रही है?
  • जनता को रोजगार उपलब्ध कराने की बजाए रेवडिय़ां बांटने पर जोर क्यों दिया जा रहा है?
  • इस मामले में सुप्रीम कोर्ट की चिंता को भी सियासी दलों ने दरकिनार क्यों कर दिया है?
  • क्या एक दिवालिया व अकर्मण्य राज्य देश के विकास में बाधक नहीं साबित होगा?

सत्ता पाने की ललक ने रेवड़ी कल्चर को जन्म दिया है। इसकी शुरूआत दक्षिण भारत से हुई। वहां चुनाव से पहले फ्री टीवी, सोफा और न जाने क्या-क्या उपहार देने की घोषणा जयललिता की एआईएडीएमके व करूणानिधि की डीएमके पार्टी ने की। उत्तर भारत की सियासत में इसकी शुरूआत की आम आदमी पार्टी के राष्ट्रीय संयोजक अरविंद केजरीवाल ने। उन्होंने फ्री बिजली, पानी की घोषणा की और आम आदमी पार्टी दिल्ली में सत्ता पाने में कामयाब रही। पंजाब चुनाव के दौरान आप ने फ्री बिजली, पानी के अलावा हर महिला को एक हजार रुपये महीना देने का ऐलान किया और यहां वह प्रचंड बहुमत से सरकार बनाने में सफल रही। अब अधिकांश क्षेत्रीय दल मुफ्त वाली राजनीति करने लगे हैं। सत्ता के इस शार्टकट को कांग्रेस हिमाचल प्रदेश समेत कई राज्यों के चुनाव में आजमा रही है। हिमाचल में उसे सफलता भी मिली है। अब इसके दुष्परिणाम दिखने लगे हैं।

रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया की रिपोर्ट के मुताबिक राज्य सरकारें मुफ्त की योजनाओं पर जमकर खर्च कर रही हैं, जिससे उन पर कर्ज का बोझ बढ़ता जा रहा है। यही नहीं राज्य सरकारों का सब्सिडी पर भी खर्च बढ़ रहा है। 2020-21 में सब्सिडी पर कुल खर्च का 11.2 फीसदी था जो 2021-22 में 12.9 प्रतिशत हो गया। इसमें झारखंड, केरल, ओडिशा, तेलंगाना और उत्तर प्रदेश आगे है। लिहाजा इन राज्यों में कर्ज का बोझ बढ़ता जा रहा है। फ्री की नीति के कारण पंजाब की हालत सबसे बदतर है। 2022-23 में पंजाब का कर्ज 3 लाख करोड़ से ज्यादा होने का अनुमान है।

साफ है यदि राज्य सरकारें और राजनीतिक दल कल्याणकारी योजनाओं के तहत लक्षित आबादी को मदद देने और सभी को मुफ्त देने की सीमा को लांघना बंद नहीं करेगी उनका दिवालिया होना तय हैं। लिहाजा राज्य सरकारों व सियासी दलों को इस पर गंभीरता से सोचने की जरूरत है अन्यथा विकास अवरूद्ध हो जाएगा।

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