संपादकीय: बात-बात पर हड़ताल
यूपी के बिजलीकर्मियों ने एक बार फिर मांगों को लेकर कार्य बहिष्कार और हड़ताल शुरू कर दी है। वहीं सरकार इस मामले में बीच का रास्ता निकालने को तैयार नहीं दिख रही है।

संदेशवाहक डिजिटल डेस्क। यूपी के बिजलीकर्मियों ने एक बार फिर मांगों को लेकर कार्य बहिष्कार और हड़ताल शुरू कर दी है। वहीं सरकार इस मामले में बीच का रास्ता निकालने को तैयार नहीं दिख रही है। हड़ताल से निपटने के लिए पूरा प्लान तैयार कर लिया गया है। प्रदेश में खास कर आवश्यक सेवाओं से जुड़े सरकारी विभागों में बात-बात पर हड़ताल करने की परंपरा बन गयी है और इसका खामियाजा प्रदेश की जनता को भुगतना पड़ता है।
सवाल यह है….
- क्या अपनी मांगों को मनवाने के लिए हड़ताल को पहला विकल्प बनाना चाहिए?
- क्या समस्या का समाधान वार्ता के जरिए नहीं निकाला जा सकता है?
- क्या सरकार द्वारा कर्मियों की उपेक्षा के कारण हर बार ऐसी नौबत आती है?
- क्या आवश्यक सेवाओं को बाधित करने को उचित कहा जा सकता है?
- क्या हर बात पर हड़ताल की परंपरा को खत्म करने के लिए सरकार के पास कोई ठोस रणनीति नहीं है?
- क्या किसी को नागरिकों को जरूरी सुविधाओं से वंचित करने की छूट दी जा सकती है?
लोकतांत्रिक प्रणाली में अपनी बात कहने, मांगों के प्रति सरकार का ध्यान आकृष्ट करने के लिए धरना-प्रदर्शन और हड़ताल करने का अधिकार कर्मचारियों को है लेकिन उत्तर प्रदेश के सरकारी विभागों में बात-बात पर कार्य बहिष्कार और हड़ताल करने की आदत बन गयी है। कभी डॉक्टर, कभी बिजली कर्मी, कभी कोई अन्य विभाग के कर्मी देखते-देखते हड़ताल पर चले जाते हैं। इसमें दो राय नहीं कि सरकार की उपेक्षा और लाल फीताशाही के अडिय़ल रवैए के कारण हालात खराब होते हैं। अफसरशाही कर्मचारियों की मांगों पर कोई ध्यान नहीं देते हैं। कई बार मंत्री तक आश्वासन देने के बाद उसकी पूर्ति नहीं करते हैं। कर्मियों और सरकारी तंत्र के बीच संवादहीनता बनी रहती है। इसका परिणाम यह होता है कि कर्मचारी हड़ताल को बाध्य होते हैं लेकिन कम से कम आवश्यक सेवाओं से जुड़े कर्मचारी संगठनों को यह भी सोचना चाहिए कि उनके इस कदम से आम आदमी को कितनी परेशानी होगी। इसमें दो राय नहीं कि उनके हितों की रक्षा होनी चाहिए लेकिन इसके लिए हड़ताल को एकमात्र साधन बनाने को कहीं से उचित नहीं कहा जा सकता है। सरकार को भी चाहिए कि वे कर्मचारियों के साथ संवाद की प्रक्रिया को बनाए, उनकी बातों को सुने और समस्या का समाधान निकाले।
यह सरकार की जिम्मेदारी है कि प्रदेश की सभी व्यवस्थाएं ठीक तरीके से चलें अन्यथा अव्यवस्था में प्रदेश का विकास बाधित होगा और इसका असर प्रदेश के कोष पर भी पड़ेगा। वार्ता के दौरान भी दोनों पक्षों को अडिय़ल रवैया नहीं अपना चाहिए क्योंकि इससे समस्या का समाधान कभी नहीं निकल सकता है और टकराव बरकरार रहता है।
साफ है कर्मचारियों की उचित मांगों पर सहानुभूतिपूर्ण विचार किया जाना चाहिए और सतत संवाद के जरिए बीच का रास्ता निकाला जाना चाहिए ताकि बात-बात पर हड़ताल की प्रवृत्ति पर अंकुश लग सके।