गर्भ न ठहरने के 20-30% मामलों में एंड्रोमेट्रियोसिस कारण, इन अच्छी आदतों से करें बचाव

कई रिसर्च में स्पष्ट हो चुका है कि एंडोमेट्रियोसिस और डाइट में बीच सीधा संबंध है। जो महिलाएं फल-सब्जियां ज्यादा खाती हैं उनमें इसकी आशंका न के बराबर है।

संदेशवाहक डिजिटल डेस्क। कई रिसर्च में स्पष्ट हो चुका है कि एंडोमेट्रियोसिस और डाइट में बीच सीधा संबंध है। जो महिलाएं फल-सब्जियां ज्यादा खाती हैं उनमें इसकी आशंका न के बराबर है। फल-सब्जियां ताजा ही खाने चाहिए। महिलाओं को नियमित एक प्लेट सलाद खाना चाहिए। जो महिलाएं आहार में ओमेगा थ्री फैटी एसिड वाली डाइट जैसे अलसी और चिया के बीज, अखरोट, सोयाबीन आदि लेती हैं। उनमें इसका जोखिम 22 फीसदी तक कम होता है। इसके अलावा नियमित व्यायाम भी इस बीमारी को रोकते हैं। खूब पानी पीएं।

दर्द सहें नहीं और डॉक्टर बने नहीं

अक्सर देखा जाता है कि महिलाओं को दर्द होता रहता है लेकिन वे लोक लाज या किसी अन्य कारण से अपने परिजनों को ही इस बारे में नहीं बताती हैं। इससे बीमारी और गंभीर हो जाती है। दूसरी तरफ कई बार दर्द होने पर खुद ही पेन किलर ले लेती हैं। इससे किडनी पर दुष्प्रभाव पड़ता है। महिला रोग विशेषज्ञ से परामर्श लेकर ही इलाज लें।

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एंडोमेट्रियोसिस, गर्भाशय से जुड़ी बीमारी है। इसमे गर्भाशय की आंतरिक परत बनाने वाले एंडोमेट्रियल ऊतक में असामान्य बढ़ोतरी होने लगती है और वह गर्भाशय के बाहर अन्य अंगों में फैलने लगता है। वैसे तो यह बीमारी शरीर में कहीं भी हो सकती है लेकिन मुख्य रूप से अंडाशयों, फेलोपियन नलिकाओं में होती है। एनसीआरआई की एक रिपोर्ट के अनुसार देश में करीब 20-30 फीसदी महिलाओं में गर्भधारण की समस्या इस बीमारी के कारण हो रही है। मार्च में ही एंड्रोमेट्रियोसिस माह मनाते हैं।

कम उम्र में बीमारी

डॉ. मेघा शर्मा (स्त्री व प्रसूति रोग विशेषज्ञ) के अनुसार यह बीमारी मुख्य रूप से 18-35 वर्ष की उम्र में ही होती है। इस उम्र को प्रजनन काल भी कहा जाता है। एंडोमेट्रियोसिस से महिलाओं को गर्भधारण की समस्या होती है। इससे फैलोपियन नलिकाओं और अंडाशय पर असर पड़ता है, जो महिलाओं में पीरियड्स के दौरान ब्लीडिंग और दर्द की वजह बन सकता है। कई दूसरी तकलीफों का भी सामना करना पड़ता है।

संभावित लक्षण

यह समस्या सबसे ज्यादा माहवारी के दौरान होती है। इसमें हैवी ब्लीडिंग (डिस्मेनोरिया) होती है। पीरियड्स के बीच स्पॉटिंग की समस्या, बांझपन, मासिक धर्म के दौरान पेट के निचले हिस्से और पीठ में तेज दर्द, यूरिन या स्टूल पास करते समय दर्द और बेचैनी आदि होती है। थकान, दस्त, कब्ज, सूजन या मतली जैसे लक्षण पीरियड्स के दौरान महिलाएं महसूस करती हैं।

खराब जीवनशैली से 48% अधिक खतरा

एक रिपोर्ट के अनुसार जो महिलाएं ज्यादा ट्रांस फैट (जिस तेल को बार-बार गर्म किया जाता है खासकर बाजार में बिकने वाले समोसा-कचौड़ी, चिप्स, नमकीन आदि) खाती हैं उनमें ट्रांस फैट कम या न खाने वालों की तुलना में 48 प्रतिशत अधिक इस बीमारी का खतरा रहता है। इसके अलावा शराब, सिगरेट और कैफीन वाली चीजें भी इसको बढ़ाती हैं। सोडा पीने से एंडोमेट्रियोसिस होने की आशंका रहती है। इसके अलावा रेड मीट खाने से भी इस रोग का खतरा बढ़ता है।

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