भारत के लिए ख़तरनाक है जातीय कट्टरता और धर्मान्धता


संदेशवाहक न्यूज़ डेस्क। दुनिया के सबसे बड़े लोकतांत्रिक देश हमारे भारत के लिए कट्टरता और धर्मान्धता बेहद खतरनाक है! शायद यही वज़ह है कि हमारा देश आजादी के बाद से प्रगति के पथ पर आगे बढ़ने के बजाए पिछड़ता जा रहा है। जिसको लेकर जिम्मेदार लोग चुप्पी साधे बैठे हैं या फिर सीधे शब्दों में यूँ समझे कि वही लोग इस समस्या के पोषक बने हुए हैं जो लोकतांत्रिक व्यवस्था में राजनीति करते हुए शासन-सत्ता पर काबिज़ हैं। क्योंकि उन लोगों को राजनीति में जातिवाद की चाशनी और धर्म की अफ़ीम के बिना शासन-सत्ता हासिल होती नहीं दिखती। जिससे चलते देश की अर्थ व्यवस्था चौपट होती जा रही है और आम जनमानस आर्थिक गुलाम बनता जा रहा है।
750 साल तक भारत वासियों को गुलामी की जिंदगी जीनी पड़ी
इतिहास साक्षी है कि आदिकाल से ही खनिज व प्राकृतिक संपदा से संपन्न होने के कारण हमारा भारत सदैव समृद्ध रहा है। इसी के चलते भारत को सोने की चिड़िया तक कहा गया है। खनिज व प्राकृतिक संपदा से संपन्न हमारे देश के उत्पाद सदियों से विश्व के अन्य देशों खासकर अरब देशों को आपूर्ति किये जाते रहे। जिसके बदले भारत को उन देशों से बहुमूल्य धातुएं जैसे सोना और चांदी धन के रूप में मिलता था। जबकि भारत की भूंमि में सोने-चांदी के साथ ही हीरे भी प्रचुर मात्रा में मौजूद थे। बावजूद इसके प्राकृतिक संपदा जैसे जड़ी-बूंटी और मसालों के साथ ही मोटे अनाज (चना, मटर, उर्द, मूंग मक्का, ज्वार, बाजरा, सोयाबीन, रेशम और कपास) की प्रचुरता भारत को हमेशा धनी बनाये रही। क्योंकि ये प्राकृतिक सम्पदाएँ भारत के अलावा अन्य देशों के पास भौगोलिक स्थिति व जलवायु न होने की वजह से पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध नहीं रहीं। भारत में मौजूद इन्हीं सम्पदाओं की आपूर्ति के बदले एकत्रित हुए धन को लूटने के लिए पहले हूड़ों, मुगलों और फिर अंग्रेजों ने हमारे देश पर सुनियोजित ढंग से व्यापारी बनकर हमला किया। जिस कारण हमारे देश को न सिर्फ अपूरणीय क्षति हुई बल्कि 750 साल तक भारत वासियों को गुलामी की जिंदगी भी जीनी पड़ी। स्वतंत्रत भारत के लोगों को यह जानना बहुत जरूरी है कि ब्रिटिश शासन से पहले करीब 150 साल तक ईस्ट इंडिया कम्पनी ने अप्रत्यक्ष रूप से भारत पर शासन किया। इससे पहले करीब 190 साल तक मुगलों और उससे भी पहले 320 सालों तक गुलाम वंश के मुग़ल शासकों ने भारत पर राज किया।
एक गलती से हमारा देश जो विश्व का सबसे संपन्न व मजबूत देश था वह सदियों तक ग़ुलाम रहा
प्रत्येक भारतीय को यह भी जानना व समझना होगा कि उनके पूर्वजों की सिर्फ और सिर्फ़ एक गलती से हमारा देश जो विश्व का सबसे संपन्न व मजबूत देश था वह सदियों तक ग़ुलाम रहा। हमारे पूर्वजों की वह गलती थी आपसी मतभेद! जिसकी वजह से हमारे देश में एकता का अभाव था और पूरा देश एक राष्ट्र न होकर छोटे-छोटे राज्यों में बंटा था। प्रत्येक राज्य के अपने निजी स्वार्थ और निजी नियम तो थे ही साथ ही साथ अपने राज्य की सीमाओं के विस्तार के लिए अपने ही पड़ोसी राज्यों से वैमनष्यता भी थी। प्राकृतिक संपदाओं से संपन्न और बेहद सम्रद्ध होने के कारण विदेशी आक्रांताओं ने भारत के छोटे-छोटे राजाओं को एक-एक करके हराया और फिर धीरे-धीरे पूरे भारत पर अपना साम्राज्य स्थापित कर लिया। लेकिन समय बदला और दुनिया के सबसे बड़े साम्राज्य ब्रिटिश हुकूमत के खिलाफ विद्रोह करके लगभग 90 साल तक चले संघर्ष के बाद भारतीयों को 15 अगस्त 1947 को स्वतंत्रता मिली। किन्तु इस दौरान भी हमारे देश के अगुवाकारों ने एक बार फिर बड़ी गलती दोहराते हुए देश के भू-भाग को न सिर्फ दो हिस्सों में बांटने का काम किया, बल्कि एक भाग पर बने देश को धर्म के आधार पर पाकिस्तान के रूप में और दूसरे भाग पर बने देश को धर्मनिरपेक्षता के आधार पर भारत को पुनर्स्थापित कर दिया। यही नहीं दोनों देशों का विभाजन करते समय भारत के नेताओं ने वर्ग विशेष को खुश करने के लिए धर्मनिरपेक्षता के साथ ही उदारता दिखाते हुए मुस्लिमों को ससम्मान रहने की अनुमति दे दी। जिसके चलते भारत में हमेशा के लिए धार्मिक उन्माद की नींव पड़ गई। जो मौजूदा समय में देश के लिए घातक साबित होती रही है।
लोगों को यह भी याद रखना होगा कि दक्षिण व दक्षिण-पूर्व एशियाई राष्ट्रों के साथ व्यापार करने के लिए सन 1600 में जॉन वाट्स और जॉर्ज व्हाईट द्वारा ब्रिटिश जॉइंट स्टॉक कंपनी बनाई थी जिसे ईस्ट इंडिया कंपनी के नाम से जाना जाता है। शुरुआत में इस जॉइंट स्टॉक कंपनी के शेयर धारक मुख्य रूप से ब्रिटिश व्यापारी और अभिजात वर्ग के लोग थे और इस कंपनी का ब्रिटिश सरकार के साथ कोई सीधा संबंध नहीं था। लेकिन 24 अगस्त 1608 को जब ईस्ट इंडिया कम्पनी व्यापार के उद्देश्य से भारत के सूरत बंदरगाह पर पहुंची तो भारत की देशी रियासतों ने इसका विरोध किया। लेकिन उस समय अकबर के पुत्र सलीम जिसे भारतीय इतिहास में जहांगीर के नाम से जाना जाता है वह दिल्ली की सत्ता पर काबिज था। ईस्ट इंडिया कम्पनी ने जहांगीर से सांठगांठ करके 7 वर्षों के बाद 1615 में सर थॉमस रो के नेतृत्व में सूरत में पहला कारखाना स्थापित करने के लिए शाही फरमान प्राप्त कर लिया।
अंग्रेज मुख्य रूप से रेशम, नील, कपास, चाय और अफीम का व्यापार करते थे
बाद में ईस्ट इंडिया कंपनी को मद्रास में अपना दूसरा कारखाना स्थापित करने के लिए विजय नगर के साम्राज्य से शाही फरमान मिला। धीरे-धीरे अंग्रेजों ने अपनी कूटनीति के माध्यम से अन्य यूरोपीय व्यापारिक कंपनियों को भारत से बाहर खदेड़ दिया और अपनी व्यापारिक संस्थाओं का विस्तार किया। अंग्रेजों ने भारत के पूर्वी और पश्चिमी तटीय क्षेत्रों में कई व्यापारिक केंद्र स्थापित किए और कलकत्ता, बॉम्बे तथा मद्रास के आसपास ब्रिटिश संस्कृति को विकसित किया। अंग्रेज मुख्य रूप से रेशम, नील, कपास, चाय और अफीम का व्यापार करते थे। व्यापार के दौरान अंग्रेजो ने देखा कि भारत सामाजिक, राजनीतिक और आर्थिक तौर पर बिलकुल अस्त-व्यस्त है और लोगों में आपसी मतभेद भी है। यही सब कुछ देखकर अंग्रेजो ने भारत पर शासन करने की दिशा में सोचना प्रारंभ किया।
90 वर्षों तक संघर्ष के बाद ब्रिटिश हुकूमत ने भारत को दो देशों में विभाजित कर दिया
सन 1750 तक ईस्ट इंडिया कंपनी ने भारतीय राजनीति में हस्तक्षेप करना शुरू कर दिया। यही नहीं सन 1757 में प्लासी की लड़ाई में रॉबर्ट क्लाईव के नेतृत्व में ईस्ट इंडिया कंपनी ने बंगाल के नवाब सिराजुद्दौला को पराजित किया। इसके साथ ही भारत में ईस्ट इंडिया कंपनी का शासन स्थापित हो गया। स्वतंत्रता आंदोलन या सन 1857 के विद्रोह के बाद 1858 में भारत से ईस्ट इंडिया कंपनी के शासन का अंत हुआ। ईस्ट इंडिया कंपनी की विदाई के बाद ब्रिटिश क्राउन का भारत पर सीधा नियंत्रण हो गया जिसे ब्रिटिश राज के नाम से जाना जाता है। ब्रिटिश राज का इतिहास 1858 से 1947 के बीच की अवधि को संदर्भित करता है। करीब 90 वर्षों तक संघर्ष के बाद ब्रिटिश हुकूमत ने भारत को दो देशों में विभाजित कर दिया। जिसे भारतीय गणराज्य (धर्म निरपेक्ष) और पाकिस्तान (इस्लामी गणतंत्र) बनाया गया। भारत विभाजन के समय देश के अगुआकारों द्वारा की गई गलतियों को ठीक करने का फ़िलहाल कोई रास्ता नहीं हैं। ऐसे में अब जरूरत इस बात की है हम सभी भारतीयों को मिलकर जातीय कट्टरता और धर्मान्धता छोंड़ते हुए नए भारत के निर्माण के लिये कदम आगे बढ़ाने चाहिए।
लेखक स्वतंत्र पत्रकार हैं!