100 साल पहले गंगाधर तिलक ने रखी थी गणेश उत्सव की नींव, जानें क्यों 10 दिन बाद करते हैं विसर्जन

मुंबई. गणेश चतुर्थी का त्योहार इस साल 22 अगस्त से मनाया जा रहा। गणेश चतुर्थी का त्योहार आस्था से तो जुड़ा ही है लेकिन स्वतंत्रता आंदोलन के इतिहास में भी इसकी खास अहमियत है। आज हम आपको बताने जा रहे हैं गणेशोत्सव का बाल गंगाधर तिलक और देश की आजादी की लड़ाई से जुड़े इतिहास के बारे में।
आज से करीब 100 साल पहले लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक ने ही गणेशोत्सव की नींव रखी थी। इस त्योहार को मनाने के पीछे का उद्देशय अंग्रेजों के खिलाफ भारतीयों को एकजुट करना था। आज जिस गणेशोत्सव को लोग इतनी धूम-धाम से मनाते हैं, उस पर्व को शुरू करने में लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक को काफी मुश्किलों का सामना करना पड़ा था।
1890 के दशक में स्वतंत्रता संग्राम के दौरान तिलक अक्सर चौपाटी पर समुद्र के किनारे बैठते थे। वे इसी सोच में डूबे रहते थे कि आखिर लोगों को जोड़ा कैसे जाए? अंग्रेजों के खिलाफ एकजुटता बनाने के लिए उन्होंने धार्मिक मार्ग चुना। तिलक ने सोचा कि क्यों न गणेशोत्सव को घरों से निकालकर सार्वजनिक स्थल पर मनाया जाए, ताकि इसमें हर जाति के लोग शिरकत कर सकें।
धार्मिक ग्रन्थों के अनुसार, श्री वेद व्यास ने गणेश चतुर्थी से महाभारत कथा श्री गणेश को लगातार 10 दिन तक सुनाई थी, जिसे श्री गणेश जी ने अक्षरश: लिखा था। 10 दिन बाद जब वेद व्यास जी ने आंखें खोली तो पाया कि 10 दिन की अथक मेहनत के बाद गणेश जी का तापमान बहुत बढ़ गया। तुरंत वेद व्यास जी ने गणेश जी को पास के सरोवर में ले जाकर ठंडे पानी से स्नान कराया। इसलिए गणेश स्थापना कर चतुर्दशी को उनको शीतल किया जाता है।
इसी कथा में यह भी वर्णित है कि श्री गणपति जी के शरीर का तापमान ना बढ़े इसलिए वेद व्यास जी ने उनके शरीर पर सुगंधित सौंधी माटी का लेप किया। यह लेप सूखने पर गणेश जी के शरीर में अकड़न आ गई। माटी झरने भी लगी। तब उन्हें शीतल सरोवर में ले जाकर पानी में उतारा। इस बीच वेदव्यास जी ने 10 दिनों तक श्री गणेश को मनपसंद आहार अर्पित किए। तभी से प्रतीकात्मक रूप से श्री गणेश प्रतिमा का स्थापन और विसर्जन किया जाता है। 10 दिनों तक उन्हें सुस्वादु आहार चढ़ाने की भी प्रथा है।
मान्यता है कि गणपति उत्सव के दौरान लोग अपनी जिस इच्छा की पूर्ति करना चाहते हैं, वे भगवान गणपति के कानों में कह देते हैं। गणेश स्थापना के बाद से 10 दिनों तक भगवान गणपति लोगों की इच्छाएं सुन-सुनकर इतना गर्म हो जाते हैं कि चतुर्दशी को बहते जल में विसर्जित कर उन्हें शीतल किया जाता है।
गणपति बप्पा से जुड़े मोरया नाम के पीछे गणपति जी का मयूरेश्वर स्वरूप माना जाता है। गणेश-पुराण के अनुसार, सिंधु नामक दानव के अत्याचार से बचने के लिए देवगणों ने गणपति जी का आह्वान किया। सिंधु का संहार करने के लिए गणेश जी ने मयूर को वाहन चुना और छह भुजाओं का अवतार धारण किया। इस अवतार की पूजा भक्त गणपति बप्पा मोरया के जयकारे के साथ करते हैं।