बेटे को पेपर दिलाने पिता ने चलाई 105 किलोमीटर साइकिल, IPS ने शेयर की ये स्टोरी

लखनऊ. बच्चे को पढ़ाने के पीछे माता-पिता के परिश्रम का एक बेहतरीन मामला मध्य प्रदेश के धार में सामने आया है। पेशे से मज़दूर एक बेबस पिता साइकिल पर 105 किमी का रास्ता तय कर बेटे को परीक्षा दिलाने पहुंचा। कोरोना के कारण बसें और सवारी गाड़ियां बंद हैं, इसलिए पिता ने ये मुश्किल सफर साइकिल से तय किया। पिता के इस संघर्ष को देख यूपी के आईपीएस नवनीत सिकेरा काफी भावुक हो गए, जिसके बाद उन्होंने अपने पिता को याद करते हुए फेसबुक पर भावुक पोस्ट लिखी।
आईपीएस ने फेसबुक पर शेयर कर लिखी ये बात
आईपीएस ने लिखा, ये खबर देखी तो आंखे डबडबा गई। अब से कुछ दशक पहले मेरे पिता भी मुझे मांगी हुई साईकल पर बिठा कर IIT का एंट्रेंस एग्जाम दिलाने ले गए थे। वहां बहुत से स्टूडेंट्स कारों से भी आये थे। उनके साथ उनके अभिभावक पूरे मनोयोग से उनकी लास्ट मिनट की तैयारी भी करा रहे थे। मैं ललचाई आंखों से उनकी नई नई किताबों (जो मैंने कभी देखी भी नहीं थी) की ओर देख रहा था। मैं सोचने लगा कि इन लड़कों के सामने मैं कहां टिक पाऊंगा और एक निराशा सी मेरे मन में आने लगी।
नवनीत आगे लिखते हैं, मेरे पिता ने इस बात को नोटिस कर लिया और मुझे वहां से थोड़ा दूर अलग ले गए और एक शानदार पेप टॉक (उत्साह बढ़ाने वाली बातें) दी। उन्होंने कहा कि इमारत की मजबूती उसकी नींव पर निर्भर करती है नाकि उस पर लटके झाड़ फानूस पर। जोश से भर दिया उन्होंने फिर एग्जाम दिया। परिणाम भी आया। आगरा के उस सेन्टर से सिर्फ 2 ही लड़के पास हुए थे जिनमें एक नाम मेरा भी था। ईश्वर से प्रार्थना है कि इन पिता पुत्र को भी इनकी मेहनत का मीठा फल दें।
आज मेरे पिता हमारे साथ पर नहीं हैं। उनकी कड़ी मेहनत का फल उनकी सिखलाई हर सीख हर पल मेरे साथ है। हर पल यही लगता है कि एक बार और मिल जाएं तो जी भर के गले लगा लूं।
क्या है पूरा मामला
शोभाराम, धार जिला मुख्यालय से 105 किलोमीटर दूर बयडीपुरा गांव में रहते हैं। उनका बेटा आशीष 10वीं में पढ़ता है। इस साल परीक्षा में उसे सप्लीमेंट्री आई थी। आशीष को परीक्षा देने जिला मुख्यालय धार आना था, लेकिन कोरोना संक्रमण के कारण कोई साधन नहीं चल रहा था। जब कहीं किसी से कोई मदद नहीं मिली तो पिता शोभाराम ने बेटे आशीष को अपनी साइकिल पर बैठाकर परीक्षा केंद्र तक लाने का फैसला किया।
बेटे ने कही ये बात
आशीष की लगातार तीन दिन परीक्षाएं थी। इसलिए पिता-पुत्र दोनों घर से अपना राशन-पानी और सोने के लिए बिछौना लेकर आए थे। आशीष का कहना है, एक बार ऐसा लगा कि मैं परीक्षा नहीं दे पाऊंगा। फिर पिता ने तय किया कि वो मेरा एक साल बर्बाद नहीं होने देंगे। बस इसी संकल्प के साथ हम चल पड़े और समय पर धार पहुंच गए।