कृत्रिम बाढ़, भूकंप और सुनामी लाना इस टेक्नोलॉजी से है मुमकिन
परमाणु कार्यक्रम और उसके विनाशकारी प्रभाव को लेकर व्याप्त चिंताओं के बीच पर्यावरण को भी हथियार बनाकर दुनिया को नष्ट करने की तकनीक अब तैयार हो गई है।

लखनऊ। परमाणु कार्यक्रम और उसके विनाशकारी प्रभाव को लेकर व्याप्त चिंताओं के बीच पर्यावरण को भी हथियार बनाकर दुनिया को नष्ट करने की तकनीक अब तैयार हो गई है। हालांकि इसे शोध का नाम दिया जा रहा है लेकिन इसके भयानक परिणामों को लेकर दबी जुबान में इसका विरोध भी शुरू हो चुका है। इस खतरनाक तकनीक का नाम है हार्प। अमेरिकी वायुसेना, नौसेना और अलास्का विश्वविद्यालय के सहयोग से अलास्का के गाकोन में वर्ष 1990 में हार्प कार्यक्रम को प्रारंभ किया गया था। अमेरिका ने अपने इस कार्यक्रम को बेहद गोपनीय रखा है लेकिन इसे लेकर उठने वाले हजारों सवालों के कारण अब हार्प कार्यक्रम की वेबसाइट पर कुछ जानकारी साझा गई है।
पिछले कुछ दशकों से दुनिया ने कई बड़े बदलाव देखे गए हैं। जिसने न सिर्फ दुनिया के सोचने का नजरिया बदला है बल्कि प्रकृति और प्राकृतिक क्रियाकलापों में भी बहुत बदलाव आया है। बादल फटने जैसी नयी-नयी प्राकृतिक आपदाएं तो अस्तित्त्व में आयी ही हैं इसके साथ ही मौसम चक्र में भी भारी बदलाव आये हैं। सूखे जैसी स्थितियां तो वर्तमान में आम हो गयी है। विज्ञान इतना आगे निकल चुका है कि अब बारिश करवाना हो या बारिश रोकना हो या फिर किसी स्थान पर बर्फ पड़वाना हो यह सब आम हो गया है। इन सब के पीछे जो तकनीकि कार्य करती है वह आज हमारी सोच से कहीं ज्यादा आगे निकल चुकी है। आज हम आपको बता रहे हैं ऐसी ही एक तकनीकि हार्प के बारे में…….
क्या है हार्प
हार्प यानी ‘हाई फ्रीक्वेंसी एक्टिव एरोरल रिसर्च प्रोग्राम’ 1993 में अमेरिकी वायुसेना, नौसेना, अलास्का विश्वविद्यालय, अमेरिकन डिफेन्स रिसर्च संस्थान एवं दुनियाभर के अमेरिका में काम करने वाले वैज्ञानिकों के संयुक्त अभियान द्वारा अलास्का के गाकोन में बनाया गया एक ऐसा वैज्ञानिक प्रोग्राम हैं जिसे धरती के आयनमंडल पर शोध करने के लिए स्थापित किया गया था।
आयनमंडल क्या होता है
पृथ्वी से लगभग 8० किलोमीटर के बाद का सम्पूर्ण वायुमंडल आयनमंडल कहलाता है व पृथ्वी से प्रेषित होने वाली सभी रेडियो तरंगे इसी मंडल से परावर्तित होकर पुनः पृथ्वी पर लौट जाती हैं, हम शुरू से ही विज्ञान की किताबों में पढ़ते आये हैं कि आयनमंडल की उपयोगिता रेडियो तरंगो (विद्युत् चुम्बकीय तरंगो) के प्रसारण में सबसे अधिक मानी जाती है। धरती पर परिवर्तित होने वाले मौसमों एवं सूर्य से धरती पर आने वाली धूप की तीव्रता में भी आयनमंडल की महत्त्वपूर्ण भूमिका होती है। अगर आयनमंडल पर कोई प्रभाव पड़े तो उसका सीधा असर धरती पर होता है। अगर आयनमंडल पर नियंत्रण पा लिया जाय तो पृथ्वी पर भारी बदलाव लाये जा सकते हैं जो कि अब संभव हो गया है।
हार्प कैसे काम करता है
दरअसल हार्प को अस्तित्व में लाने वाले वैज्ञानिकों ने पहले प्रकृति को समझा व प्रकृति कैसे काम करती है इस विषय पर गहन शोध करने के बाद उन्होंने ऐसे-ऐसे साधन विकसित किये जो बिल्कुल प्रकृति की तरह ही काम करते हैं बस अंतर है तो समय का क्योंकि प्रकृति हर कार्य अपने समय पर ही करती है अचानक कुछ भी नहीं लेकिन हार्प द्वारा किसी भी समय किसी भी मौसम में कुछ भी किया जा सकता है। भूकंप, बारिश, सूखा या फिर चक्रवात यह सब हार्प की सहायता से लाये जा सकते हैं। अगर वैज्ञानिक रूप से कहा जाय तो हार्प उच्च क्षमता वाले उर्जा संयोजन केंद्र है जिसे संचयित करने के लिए हार्प संस्थान में बड़े-बड़े इलेक्ट्रो मैग्नेटिक टावर व एंटीना लगाये गये हैं जहां पर हार्प विज्ञानी ‘विद्युत् चुम्बकीय ऊर्जा’ का भंडारण करके उसे आवश्यकतानुसार कहीं पर भी छोड़ा जा सकता है।
इस तकनीकि में विद्युत् चुंबकीय तरंगें वायुमंडल के आयनमंडल वाले हिस्से में छोड़ी जाती है जिससे आयनमंडल का एक सीमित हिस्सा नियंत्रित किया जा सकता है। फिर एक सीमित क्षेत्र में आयनमंडल पर नियंत्रण प्राप्त करने के बाद उससे मनचाहा काम लिया जा सकता है जैसे- बारिश करवाना, लगातार बारिश करवाकर बाढ़ लाना व बादलों में उपस्थित वाष्प को सोखकर सूखे जैसी स्थिति उत्पन्न करना। इस प्रकार से मौसमों में मनचाहा परिवर्तन किया जा सकता हैं। प्रकृति से किसी भी प्रकार की छेड़छाड़ की जा सकती है। कहीं पे कभी भी बारिश करवाई जा सकती है। बारिश रुकवाई जा सकती है। बाढ़ व सूखे जैसे हालात पैदा किये जा सकते हैं। कहीं पर बर्फ गिरवा सकते हैं रुकवा सकते हैं। भीषण चक्रवात, भूकम्प व सुनामी लाई जा सकती है अर्थात अगर संक्षेप में कहा जाय तो इसी तरह की अन्य प्राकृतिक क्रियाकलापों को वैज्ञानिकों ने अब अंजाम देना बखूबी सीख लिया है।
इंसानी दिमाग को भी नियंत्रित कर सकता है हार्प
रूस की सेना द्वारा प्रकाशित किये जाने वाले एक जर्नल ने यहाँ तक दावा किया था कि, हार्प के आयनमंडल परीक्षण के द्वारा भारी मात्रा में इलेक्ट्रॉन्स के झरने बहाकर धरती के चुंबकीय ध्रुवों को भी झटका दिया जा सकता है। अलास्का के सीनेटर रहे मार्क बेगिज के भाई निक बेगिज जूनियरके अनुसार, हार्प का प्रयोग न ही मात्र भूकंप लाने के लिए किया जा सकता है बल्कि इसका प्रयोग लोगों के दिमाग को नियंत्रित करने के लिए भी किया जा सकता है।
कैसे है यह खतरनाक
हार्प कार्यक्रम की अधिकारिक वेबसाइट पर इस तकनीक के बारे में बताया गया है कि इस तकनीक में विद्युत चुंबकीय तरंगें वायुमंडल में उच्च आवृत्ति के तहत छोड़ी जाती है, जिससे वायुमंडल का एक सीमित हिस्सा नियंत्रित किया जा सकता है। इससे बाढ़ तक की स्थिति पैदा की जा सकती है या फिर तूफान भी लाया जा सकता है। साफ है कि इसमें पर्यावरण को नियंत्रित करके उसे हथियार के रूप में इस्तेमाल किया जा सकता है।
निकोला टेस्ला की तकनीक का प्रयोग
हार्प तकनीक विज्ञान के जिन नियमों पर कार्य करती है उसका सबसे पहले अविष्कार धरती के सबसे महान वैज्ञानिकों में शुमार किये जाने वाले निकोला टेस्ला ने सन 1900 के आसपास किया था। उन्होंने एक मैकेनिकल ओसीलेटर भी बनाया था जो वाइब्रेशन तकनीकि पर चलता था तथा उसकी फ्रीक्वेंसी शक्ति इतनी ज्यादा थी कि उससे भूकम्प तक लाया जा सकता था। कहा जाता है टेस्ला का उस आविष्कार जैसा ही कुछ हार्प वैज्ञानिकों के पास भी है जिसे अपग्रेड करके उन्होंने बड़े लेवल पर ऐसे ओसीलेटर बनाये जिससे किसी भी स्थान पर भूकम्प व सुनामी लायी जा सकती है।