लखनऊ: कोरोना के खौफ से गांवों में भी नहीं दिखे सावन के झूले

लखनऊ। कोरोना वैश्विक महामारी के खौफ असर इस बार गांवों में सावन के महीने में पेड़ों पर पड़ने वाले झूलों पर दिखा। पहले गांवों में सावन के महीने में बेटियां अपने मायके आती थी। नागपंचमी पर दिन भर जहां दंगल चलता था वहीं शाम को घर की महिलाएं मोहल्लों में सामूहिक तौर पर पड़ने वाले झूला पर झूलने जाती थी। देर रात तक महिलाएं झूले पर पैंगा मार कर सावन गीत गाती थी। यह कार्यक्रम नागपंचमी से लेकर रक्षा बंधन तक बखूबी चलता था। लेकिन इस बार गांव में न कहीं पेड़ों में पड़ने वाले झूले दिखे और न वो सावन कर गीत ही सुनाई पड़े।
गोसाईंगंज के मीसा गांव निवासी बीरेंद्र कुमार बताते है कि इस बार कोरोना के चलते गांव में सामूहिक तौर पर महिलाओं के लिए पड़ने वाला झूला नहीं डाला गया। कारण महिलाएं एकत्र होकर झूला झूलेंगी तो कहीं कोई कोरोना की चपेट में न आ जाये। इस लिए इस बार डाला भी नहीं गया।
वहीं हसनपुर खेवली गांव निवासी दिनेश पाल बताते है कि वह घर के पास लगे नीम के पेड़ पर हर साल झूला डलवाते थे जिस पर गांव भर की औरतें आकर झूला झूलते वक्त सोहर, भजन व सावन के महीने पर आधरित फिल्मी गीत गाती थी। देर रात तक महिलाएं खूब मनोरंजन करती थी। लेकिन कोरोना के चलते इस बार झूला नहीं डलवाया गया।
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अहमामऊ गांव निवासी विनय कुमारी की माने तो पहले गांव पास कुल देवता के मंदिर पर सामूहिक तौर पर झूला डाला जाता था गांव के ज्यादा तक आदमी अपनी बहन बेटी को मायके बुलवा लेते थे। वह शाम ढलते ही घर की बहुओं को लेकर वही झूला झूलने जाती थी। रक्षाबंधन के दिन तक यह कार्यक्रम चलता था। लेकिन इस बार कोरोना के डर से लोग झूला नहीं डाले। गांव के लोगों का मानना है कि अगर महिलाएं एकत्र होकर झूला झूलने जाएंगी तो कोरोना का शिकार हो सकती है। जिससे गांव में कोरोना फैलने के खतरे से झूला नही। डाला गया।
गांवों से ओझल होते झूले
अब गांवों में भी सावन के महिला में पड़ने वाले झूले ओझल होते दिख रहे है। सामूहिक तौर पर पड़ने वाले झूले अब कुछ ही गांव में दिखते है। इस बार कोरोना के खौफ से झूले डाले की नहीं गए। ग्रामीणों की माने तो अब पहले जैसे पेड़ भी नहीं रह गए जिनपर झूला गाल सके। अब लोग अपने घरों में रेडीमेड झूलो से कम चला रहे है।
कोरोना के डर से आने जाने से कतरा रही बहन बेटियां
इस बार कोरोना का असर रक्षाबंधन पर भी देखने को मिला। इस बार लोग आने जाने से परहेज करते दिखे। गैर जनपद से आने व जाने वाले लोगों की संख्या 30 प्रतिशत ही रही। ज्यादा तर लोग इस बार डाक से राखी भेजना पसंद किए।