कपड़े से बना मास्क नही बचा सकता कोरोना से, ये है वजह

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हेल्थ डेस्क। भारत में कोरोना वायरस संक्रमण से कुल मामले 7 लाख 20 हज़ार से ज़्यादा हो चुके हैं और दिल्ली में यह आंकड़ा एक लाख होने के करीब है। इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता ​कि इस इन्फेक्शन से बचने के लिए बचाव के उपायों की अहमियत है। मास्क पहनने की हिदायत हमेशा दी गई है और हाल ही में बताया गया था कि किस तरह सूक्ष्मकण यानी एयरोसॉल्स हवा के ज़रिये भी Transmission का कारण बन सकते हैं। अब आपको जानना चाहिए कि किस तरह का मास्क पहनना चाहिए।

दुनिया भर के 239 वैज्ञानिकों ने विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) को लिखे पत्र में जब यह साफ कह दिया है कि कोरोना वायरस एयरबोर्न वायरस है यानी हवा के ज़रिये भी फैल सकता है तो ऐसे में मास्क पहनना अति आवश्यक हो जाता है। लेकिन किसी भी तरह का मास्क आपके लिए सुरक्षित नहीं है। आपको जानना चाहिए कि किस कपड़े और किस आकार का मास्क आपको कोविड 19 से बचाने में कारगर होगा।

चूंकि सभी के पास यह सुविधा नहीं है कि वो N-95 मास्क का इस्तेमाल कर सकें। ऐसे में, ज़रूरी है कि सुरक्षा के लिहाज़ से आप समझें कि किस तरह का मास्क बेहतर है। हालांकि इस बारे में कई पहलुओं पर अभी शोध जारी हैं। फ्लोरिडा अटलांटिक यूनिवर्सिटी ने हाल में मास्क के प्रभाव को लेकर एक शोध किया और जाना कि किस तरह मास्क खांसी या छींक से निकलने वाले द्रव कणों से सुरक्षा कर सकता है।

घर पर बना एक मास्क सामने से आने वाले ड्रॉपलेट्स को रोकने में कारगर होता है लेकिन ऊपर यानी नाक से मुंह की तरफ जो गैप बनता है, वहां से ये कारगर नहीं दिखता। इस शोध के कुछ प्रमुख बिंदु इस तरह रहे।

  •  जिन मास्कों में कपड़े की कई तहें हों, कोन जैसा आकार हो और जो चेहरे पर ठीक से फिट हो, वह रेस्पिरेटरी ड्रॉपलेट्स को रोकने में कारगर दिखा।
  • जो मास्क रूमाल को फोल्ड करके या बांधना स्टाइल से बनाए गए, वो एयरोसॉल्स रेस्पिरेटरी ड्रॉपलेट्स रोकने में बहुत कम कारगर दिखे।
  • घर पर बने कोन आकार के मास्कों में भी कपड़े की क्वालिटी के हिसाब से कुछ लीकेज देखे गए।
  • ये भी देखा गया कि बगैर मास्क पहने जब खांसा गया तो ड्रॉपलेट्स 6 फीट (सोशल डिस्टेंसिंग की अब तक बताई गई गाइडलाइन) से भी ज़्यादा दूरी तक गए।

इस तरह है मास्क का असर

शोधकर्ताओं ने मास्क पहनने का असर जानने के लिए एक खोखले आदमकद मैनिक्विन का इस्तेमाल किया, जिसके नाक और मुंह के सामने एक पंप के ज़रिये ड्रॉपलेट्स फेंके गए, उसी दबाव से, जिससे खांसी या छींक के समय ड्रॉपलेट्स जारी होते हैं। फॉग/स्मोक ट्रैसर और लेज़र तकनीक के ज़रिये इन ड्रॉपलेट्स को हवा में घुलते और बहते देखा गया। और फिर इन ड्रॉपलेट्स को कौन सा मास्क रोक सका, कौन सा नहीं और क्यों, ये भी देखा गया।

इस प्रयोग में पाया गया कि रूमाल और बांधना स्टाइल के कवर या मास्क ज़्यादा कारगर साबित नहीं हुए और ड्रॉपलेट्स इस तरह के कवर्स को भेद सके। जबकि कई तहों वाले मोटे या रजाई के कपड़े के कोन आकार के मास्क ड्रॉपलेट्स को रोकने में ज़्यादा प्रभावी दिखे।

ये भी गौरतलब है कि प्रयोग में बांधना स्टाइल के मास्क में टीशर्ट जैसे कपड़े, रूमाल के मास्क में कॉटन, सिले हुए तहदार मास्क में रजाई कॉटन और कोन आकार के मास्क में मिले जुले कपड़े का इस्तेमाल किया गया।

इससे पहले बड़ा खुलासा यह हुआ था कि अगर कोई कोविड 19 संक्रमित व्यक्ति किसी माहौल में रहकर वहां से गुज़र जाता है, तो भी उस वातावरण में वायरस मौजूद रह सकता है और इस वातावरण में आने वाले दूसरे लोग संक्रमित हो सकते हैं। इस खुलासे के बाद मास्क और सोशल डिस्टेंसिंग संबंधी नई गाइडलाइन्स का इंतज़ार किया जा रहा है।