इन लोगों की वजह से अयोध्या में पूरा हुआ राम मंदिर का सपना, ये रहे चर्चित के साथ गुमनाम चेहरे

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अयोध्या. 5 अगस्त को अयोध्या (Ayodhya) में राम मंदिर निर्माण के लिए भूमि पूजन ​होने जा रहा है। करीब 500 साल की लंबी लड़ाई के बाद ये शुभी घड़ी आई है। इस लड़ाई में कई लोगों ने अपनी पूरी जिंदगी कुर्बान कर दी। कई चर्चित चेहरे हैं, जिनकी बदौलत यह सफर निर्माण तक पहुंचा। लेकिन कुछ गुमनाम चेहरे भी हैं, जिनके जिक्र के बिना यह आंदोलन अधूरा माना जाएगा। आज हम आपको राम मंदिर आंदोलन से जुड़े चर्चित और गुमनाम चेहरों के बारे में बताने जा रहे हैं।

महंत रघुबर दास: साल 1853 में अयोध्या में मंदिर और मस्जिद को लेकर फसाद हुआ। उस समय अयोध्या, अवध के नवाब वाजिद अली शाह के शासन में आती थी। हिंदू धर्म को मानने वाले निर्मोही पंथ के लोगों ने दावा किया था कि मंदिर को तोड़कर यहां पर बाबर के समय मस्जिद बनवाई गई। 1859 में अंग्रेजी हुकूमत ने मस्जिद के आसपास तार लगवा दिए और दोनों समुदायों के पूजा स्थल को अलग-अलग कर दिया। मुस्लिमों को अंदर की जगह दी गई जबकि हिंदुओं को बाहर की। लेकिन इस फसाद के बाद पहली बार 1885 में मामला अदालत पहुंचा। महंत रघुबर दास ने फैजाबाद अदालत में बाबरी मस्जिद के पास राम मंदिर के निर्माण की इजाजजत के लिए अपील दायर की थी।

गोपाल सिंह विशारद: आजादी के बाद पहला मुकदमा (नियमित वाद क्रमांक 2/1950) एक दर्शनार्थी भक्त गोपाल सिंह विशारद ने 16 जनवरी, 1950 ई. को सिविल जज, फैजाबाद की अदालत में दायर किया था। वे उत्तर प्रदेश के तत्कालीन जिला गोंडा, वर्तमान जिला बलरामपुर के निवासी और हिंदू महासभा, गोंडा के जिलाध्यक्ष थे। गोपाल सिंह 14 जनवरी, 1950 को जब भगवान के दर्शन करने श्रीराम जन्मभूमि जा रहे थे, तब पुलिस ने उनको रोका। उन्होंने जिला अदालत से प्रार्थना कि- ‘‘प्रतिवादीगणों के विरुद्ध स्थायी व सतत निषेधात्मक आदेश जारी किया जाए ताकि प्रतिवादी स्थान जन्मभूमि से भगवान रामचन्द्र आदि की विराजमान मूर्तियों को उस स्थान से जहां वे हैं, कभी न हटावें तथा उसके प्रवेशद्वार व अन्य आने-जाने के मार्ग बंद न करें और पूजा-दर्शन में किसी प्रकार की विघ्न-बाधा न डालें।’’

केके नायर: केरल के अलप्पी के रहने वाले केके नायर भी राम मंदिर की यात्रा के गुमनाम नायक हैं। ये 1930 बैच के आईसीएस अफसर थे। एक जून 1949 को फैजाबाद के कलेक्टर बने। 23 दिसंबर 1949 को जब भगवान राम की मूर्तियां मस्जिद में स्थापित हुईं तो उस समय के प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू और मुख्यमंत्री गोविंद बल्लभ पंत के दो बार कहने के बावजूद नायर ने आदेश को पूरा करने में असमर्थता जताई। यहां तक कहा कि मूर्तियां हटाने से पहले मुझे हटाया जाए। देश के सांप्रदायिक माहौल को देखते हुए सरकार पीछे हट गई। डीएम नायर ने 1952 में स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति ले ली। चौथी लोकसभा के लिए वे यूपी की बहराइच सीट से जनसंघ के टिकट पर लोकसभा पहुंचे। इस इलाके में नायर हिंदुत्व के इतने बड़े प्रतीक बन गए कि उनकी पत्नी शकुंतला नायर भी कैसरगंज से तीन बार जनसंघ के टिकट पर लोकसभा पहुंचीं। उनका ड्राइवर भी यूपी विधानसभा का सदस्य बना।

सुरेश बघेल: 30 साल पहले 1990 में राम मंदिर आंदोलन में शामिल होकर बाबरी मस्जिद के विवादित ढांचे को गिराने की पहली और मजबूत कोशिश करने वाले वृंदावन के हिंदूवादी नेता सुरेश बघेल का नाम शायद ही किसी को याद हो। उन्होंने मंदिर के लिए कोर्ट-कचहरी, गिरफ्तारियां, जेल, धमकियां, मुफलिसी और परिवार से दूरी सबकुछ झेला। इस समय वो एक निजी कंपनी में 6000 रुपए प्रतिमाह पर काम करके गुजर-बसर कर रहे हैं। उन्होंने मंदिर आंदोलन में अपने योगदान को कभी सियासी तौर पर नहीं भुनाया। न तो किसी पार्टी के सामने हाथ फैलाया।

मंदिर आंदोलन में चर्चा में रहे ये किरदार

महंत दिग्विजय नाथ: गोरक्षनाथ मठ के महंत दिग्विजय नाथ उन चंद शख्सियतों में थे, जिन्होंने बाबरी मस्जिद को मंदिर में बदलने की कल्पना की थी। इन्हीं की अगुवाई में 22 दिसंबर 1949 को विवादित ढांचे के अंदर भगवान राम की प्रतिमा रखवाई गई थी। उस समय हिंदू महासभा के विनायक दामोदर सावरकर के साथ दिग्विजय नाथ ही थे, जिनके हाथ में इस आंदोलन की कमान थी। हिंदू महासभा के सदस्यों ने तब अयोध्या में इस काम को अंजाम दिया था।

एलके आडवाणी: जून 1989 में बीजेपी ने वीएचपी को औपचारिक समर्थन देना शुरू किया। इससे मंदिर आंदोलन को नया जीवन मिला। तब बीजेपी के शीर्ष नेता लालकृष्ण आडवाणी ने 25 सितंबर 1990 को सोमनाथ से राम रथयात्रा शुरू की। आडवाणी को 23 अक्टूबर 1990 को समस्तीपुर में लालू प्रसाद यादव ने गिरफ्तार करवा दिया। सीबीआई की मूल चार्जशीट में विवादित ढांचा गिराने के ‘षड्यंत्र’ के ये मुख्य सूत्रधार रहे।

कल्याण सिंह: 1991 में ये यूपी के मुख्यमंत्री बने। सीबीआई की मूल चार्जशीट में ये ढांचा गिराने के ‘षड्यंत्र’ में शामिल थे, तकनीकी कारणों से मुकदमे से बाहर हो गए। छह दिसंबर 1992 को ये मुख्यमंत्री के पद पर थे। पुलिस और प्रशासन ने जान बूझकर कारसेवकों को नहीं रोका।

अशोक सिंघल: विश्व हिंदू परिषद नेता अशोक सिंघल रामजन्म भूमि मंदिर निर्माण आंदोलन के प्रमुख रहे। कारसेवकों से नारा लगवाया “राम लला हम आए हैं, मंदिर वहीं बनाएंगे। कई लोगों की नजरों में वह राम मंदिर आंदोलन के ‘चीफ आर्किटेक्ट’ थे। वह 2011 तक वीएचपी के अध्यक्ष रहे। 17 नवंबर 2015 को उनका निधन हो गया।

महंत अवैद्यनाथ: महंत अवैद्यनाथ मंदिर आंदोलन का प्रमुख चेहरा थे। श्रीराम जन्मभूमि मुक्ति यज्ञ समिति के अध्यक्ष थे। माना जाता है कि 6 दिसंबर 1992 को अयोध्या में विवादित ढांचा ढहाने का प्लान उनकी देखरेख में बनाया गया। मंदिर के लिए विश्व हिंदू परिषद ने इलाहाबाद में जिस धर्म संसद (साल 1989 में) का आयोजन किया, उसमें अवैद्यनाथ के भाषण ने ही इस आंदोलन का आधार तैयार किया।

विनय कटियार: विश्व हिंदू परिषद के सहयोगी संगठन बजरंग दल के नेता हैं। चार्जशीट के मुताबिक कटियार ने 6 दिसंबर को भाषण में कहा था, हमारे बजरंगियों का उत्साह समुद्री तूफान से भी आगे बढ़ चुका है, जो एक नहीं तमाम बाबरी मस्जिदों को ध्वस्त कर देगा। छह दिसंबर के बाद कटियार का राजनीतिक कद तेजी से बढ़ा। बीजेपी के राष्ट्रीय महासचिव भी बने। कटियार फैजाबाद लोकसभा सीट से तीन बार सांसद चुने गए।

मुरली मनोहर जोशी: 1992 में विवादित ढांचे को गिराने के समय मुरली मनोहर जोशी आडवाणी के बाद बीजेपी के दूसरे बड़े नेता थे। छह दिसंबर 1992 को घटना के समय वह विवादित परिसर में मौजूद थे। गुंबद गिरने पर उमा भारती उनसे गले मिली थीं।

साध्वी ऋतंभरा: ये एक समय हिंदुत्व की फायरब्रांड नेता थीं। विवादित ढांचे को गिराने के मामले में उनके विरुद्ध आपराधिक साजिश के आरोप तय किए गए थे। उनके उग्र भाषणों के ऑडियो कैसेट पूरे देश में बंटे थे, जिसमें वे विरोधियों को ‘बाबर की आलौद’ कहकर ललकारती थीं।