उत्तर प्रदेश की राजनीति: जब कन्नौज के ब्राह्मणों ने टीपू को बनाया सुल्तान

कन्नौज (संदेशवाहक न्यूज़ डेस्क)। राजनीतिक रूप से कन्नौज लोकसभा हमेशा चर्चा में रही है। राष्ट्रीय स्तर के नेताओं ने कन्नौज से प्रतिनिधित्व किया। वर्ष सन 1999 में हुए लोकसभा चुनाव में सपा सुप्रीमो मुलायम सिंह यादव ने कन्नौज लोकसभा से अपना नामांकन कराया यद्यपि बदायूं से भी उन्होंने अपना पर्चा भरा। चुनाव में मुलायम सिंह यादव, कन्नौज सहित बदायूं से भी चुनाव जीत गए और बाद में उन्होंने कन्नौज लोकसभा से त्यागपत्र दे दिया और रिक्त हुई कन्नौज सीट से उन्होंने ऑस्ट्रेलिया से पढ़ाई करके लौटे अखिलेश यादव को राजनीति में उतारने का फैसला किया। उन्होंने कन्नौज लोकसभा उप चुनाव ने अपनी राजनीतिक पारी शुरू करने के लिए अखिलेश यादव को उम्मीदवार चुना।
चूंकि कन्नौज लोकसभा क्षेत्र पर बसपा भी अपनी निगाहें गड़ाए थी और जैसे ही कन्नौज लोकसभा सीट से मुलायम सिंह ने त्यागपत्र दिया वैसे ही मायावती ने राज्यसभा सांसद गांधी आजाद को कन्नौज लोकसभा में पूरे टाइम रहकर संगठन को मजबूत बनाने के निर्देश दिए और गांधी आजाद ने कन्नौज आकर कमान संभाल ली।
मायावती ने अपने मुख्यमंत्रीत्व काल मे कन्नौज को जिला बनाया था। इसलिए उनकी मंशा कन्नौज को फतह करने की थी और इसके लिए उन्होंने उस समय के प्रदेश के कद्दावर मुस्लिम नेता अकबर अहमद डंपी को कन्नौज लोकसभा उपचुनाव में अपना प्रत्याशी बना दिया। डंपी के चुनाव लड़ने से चुनाव काफी दिलचस्प हो गया। बसपा ने पूरी ताकत चुनाव में झोंकी तो मुलायम सिंह यादव की अभय प्रतिष्ठा दांव पर लग गयी।
प्रदेश स्तर के तमान बड़े नेता विधायक चुनाव प्रचार में लगा दिए गए लेकिन चुनाव जब शबाब पर आया तो डंपी सपा पर भारी पड़ने लगे जिससे मुलायम सिंह की चिंताएं बढ़ गई और मुलायम सिंह ने ब्राह्मणों पर अपनी नजर गड़ाई। सपा के कद्दावर नेता विक्रमादित्त पांडेय को सपा ने ब्राह्मणों को अपने पाले में करने के लिए मोर्चे पर लगा दिया। पांडेय ने अपने कुशल नेतृत्व से ब्राह्मणों को मोड़ने के लिए संपर्क शुरू कर दिया और चुनाव के अंतिम दिनों में ब्राह्मणों की बहुत बड़ी गोपनीय सभा जिसमे सिर्फ ब्राह्मणों को ही बुलाया गया। अरौल के एक इंटर कालेज के बंद हाल में मुलायम सिंह और अखिलेश यादव सीधे ब्राह्मणों से रूबरू हुए। उस सभा मे मुलायम सिंह ने ब्राह्मणों को अपना सच्चा हितैषी बताया।
उस समय ब्राह्मण पूर्व सांसद छोटे सिंह से बहुत नाराज थे जिस पर सपा मुखिया ने सफाई दी और कहा कि उनकी राजनीति अब खत्म हो गयी है। सपा मुखिया ने अपने राजनैतिक कौशल के द्वारा ब्राह्मणों को अपने पक्ष में करने के लिए अपने द्वारा किये गए तमाम कार्यो की जानकारी दी और भरोसा दिया कि उनकी पार्टी हमेशा ब्राह्मणों का सम्मान करती रहेगा। यह सभा सपा के लिए वरदान साबित हुई क्योंकि उस समय सपा का अल्पसंख्यक वोट डंपी के साथ खुलकर आ गया था। जिसके कारण सपा को ब्राह्मण संजीवनी के रूप में मिला और जब चुनाव परिणाम की घोषणा हुई तो डंपी को पराजय का मुंह देखना पड़ा और ब्राह्मणों ने राजनीति में पहली बार कदम रख रहे टीपू को सुल्तान बना दिया।
कन्नौज ने अखिलेश यादव को नई पहचान दी जिसमे ब्राह्मणों का बहुत बड़ा योगदान रहा लेकिन बाद में चंद्र ब्राह्मण नेताओ ने अपनी जेबें भरने का काम किया और समाज का वो कोई हित नही कर पाए जिसके कारण ब्राह्मण व अखिलेश में दूरी बनती चली गयी और 2019 के चुनाव में इसका दुष्परिणाम सामने आया जब उनकी पत्नी डिंपल यादव कन्नौज लोकसभा से चुनाव हार गई।