बकरा ईद में है कुर्बानी देने का महत्व, जानें कैसे शुरू हुई थी कुर्बानी की प्रथा

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लखनऊ. बकरीद (Eid-ul-Adha) मुसलमानों के प्रमुख त्योहारों में से एक है। इस साल यानी 2020 में यह भारत में एक अगस्त को मनाया जाएगा। इस त्योहार को ईद-उल-अजहा, ईद-उल-जुहा या बकरा ईद के नाम से भी जानते हैं। इसे रमजान खत्म होने के करीब 70 दिनों के बाद मनाया जाता है। इस दिन कुर्बानी देने की प्रथा है।

जानें क्या है बकरा ईद पर कुर्बानी का महत्व

इस्लाम मजहब की मान्यताओं के अनुसार, कहा जाता है कि पैगंबर हजरत इब्राहिम से ही कुर्बानी देने की प्रथा शुरू हुई थी। अल्लाह ने एक बार पैगंबर इब्राहिम से कहा था, वह अपने प्यार और विश्वास को साबित करने के लिए सबसे प्यारी चीज का त्याग करें। जिसके बाद पैगंबर इब्राहिम ने अपने इकलौते बेटे की कुर्बानी देने का फैसला किया। कहते हैं कि जब पैगंबर अपने बेटे को मारने वाले थे। उसी वक्त अल्लाह ने अपने दूत को भेजकर बेटे को एक बकरे से बदल दिया। तभी से बकरा ईद अल्लाह में पैगंबर इब्राहिम के विश्वास को याद करने के लिए मनाई जाती है।

इस त्योहार को नर बकरे की कुर्बानी देकर मनाया जाता है। जिसे तीन भागों में बांटा जाता है। पहला भाग रिश्तेदारों, दोस्तों और पड़ोसियों को दिया जाता है। दूसरा हिस्सा गरीबों, जरूरतमंदों और तीसरा परिवार के लिए होता है।

जानें क्या है ईद और बकरीद में अंतर

इस्लामी साल में 2 ईद मनाई जाती हैं, जिनमें से एक ईद-उल-जुहा और दूसरी ईद-उल-फितर। ईद-उल-फितर को मीठी ईद भी कहा जाता है। इसे रमजान को खत्म करते हुए मनाया जाता है। लेकिन बकरीद का महत्व अलग है। हज की समाप्ति पर इसे मनाया जाता है।