सरकार की अनदेखी के चलते सूनी रह जाएंगी भाइयों की कलाइयाँ

बहराइच। सावन माह का अंतिम दिन सोमवार है। सोमवार को ही रक्षाबंधन का पावन पर्व है। इस दिन बहनें अपने भाई की कलाई से प्यार बाँधती हैं, प्यार के दो धागों से संसार बाँध अपनी रक्षा का वचन लेती है। लेकिन संसार मे इस समय कोरोना महामारी का प्रकोप फैला है। इस प्रकोप के चलते लगातार मरीजों के मिलने से उनके इलाके हॉटस्पॉट बने हुए हैं। हॉटस्पॉट इलाके में प्रशासन की निगरानी में आवश्यक वस्तुओं की सप्लाई के अलावा अन्य गतिविधियों पर प्रतिबंध लगा हुआ है। यदि कोई इन नियमों का उल्लंघन करता है तो उस पर महामारी अधिनियम के तहत दोषी ठहराते हुए मुकदमा दर्ज किया जायेगा।
हॉटस्पॉट के इस दुरूह नियम के चलते तमाम बहनें अपने भाइयों की कलाई पर राखी नहीं बांध पाएंगी। क्योंकि जिन भाइयों के घर हॉटस्पॉट क्षेत्र में है वहां बहनों का पहुचना मुश्किल है और जिन बहनों का घर हॉटस्पॉट क्षेत्र में है, वहां बहनों का निकलना प्रतिबंधित रहेगा। ऐसे में इन हॉटस्पॉट में रहने वाले भाइयों या हॉटस्पॉट क्षेत्र में रहने वाली बहनों के भाइयों की कलाइयाँ सूनी रह जाएंगी। जब हॉटस्पॉट क्षेत्र में रहने वाले लोगों तक राखी पहुंचाने की व्यवस्था पर प्रशासन से सवाल किया गया तो अधिकारी बगलें झांकते नजर आये और हमारे रहनुमा सिर्फ अफसोस जाहिर करते हुए कहते हैं कि कोरोना काल है किया क्या जा सकता, शासन के नियमों का पालन करना सभी की जिम्मेदारी है।
भाई-बहन के अटूट रिश्ते, प्यार और समर्पण के त्योहार रक्षाबंधन का हिंदू धर्म में अपना विशेष महत्व है। धर्मग्रंथों के मुताबिक, इस त्योहार की शुरुआत छह हजार साल से भी पहले होने के प्रमाण हैं। इससे जुड़ी पौराणिक कथाओं की डोर देवराज इंद्र से लेकर कृष्ण और पांडवों से लेकर राजा-महाराजाओं तक जुड़ती है। लेकिन न सिर्फ हिंदू राजाओं ने बल्कि मुसलमान मुगल राजाओं ने भी इस त्योहार को मनाया है। प्रचलित कहानियों में ऐसी ही एक कहानी कर्णावती और हुमायूं की भी है। जब सुल्तान बहादुर शाह के कहर से बचाने के लिए चितौड़गढ़ की रानी कर्णावती ने हुमायूं को भी राखी भेजी थी।
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बताया जाता है कि तब हुमायूं ने भी कर्णावती को बहन का दर्जा देकर उनकी जान बचाई थी। मध्य काल में राजपूत और मुस्लिमों के बीच संघर्ष चल रहा था। रानी कर्णावती चितौड़ के राजा की विधवा थीं। रानी कर्णावती को जब बहादुरशाह द्वारा मेवाड़ पर हमला करने की खबर मिली, तो वह घबरा गईं। कर्णावती, बहादुरशाह से युद्ध कर पाने में सक्षम नहीं थीं। लिहाजा, उन्होंने प्रजा की सुरक्षा के लिए हुमायूं को राखी भेजा। तब हुमायूं ने राखी की लाज रखी और मेवाड़ पहुंचकर बहादुरशाह के खिलाफ युद्ध लड़ा।
अब प्रश्न यह उठता है कि जब एक मुगल ने अपनी हिन्दू बहन की रक्षा के लिये अपना फर्ज निभाया तो फिर पिछले हर वर्ष में लाखों बहनों की राखियां भाइयों तक पहुंचा रिकॉर्ड बनाने वाले डाक विभाग, हर वर्ष महिलाओं को राखी के दिन बसों की यात्रा की मुफ्त सेवा देने वाले सूबे के मुख्यमंत्री योगी और शासन प्रशासन ने हॉटस्पॉट क्षेत्र में अपने घरों में कैद बहनों की राखियों को भाइयों तक या हॉटस्पॉट के घरों में कैद भाइयों तक बहनों की राखियां भिजवाने के मामलों की अनदेखी क्यों कर रहा है।
जबकि आवश्यक वस्तुओं की तर्ज पर हॉटस्पॉट क्षेत्रों में भी राखियां भिजवायी जा सकती है। लेकिन शासन की आधी आबादी यानी महिलाओं के प्रति अनदेखी के चलते तमाम भाइयों की कलाइयाँ कोरोना काल में सूनी रह जाएंगी। आखिर हिन्दू हितों का दम्भ भरने वाली यह भगवा सरकार बहनों के प्रति अपना फर्ज कब निभायेगी।