दर्स में बताया ईद-उल-अज़हा की नमाज अदा करने का तरीका

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गोरखपुर (संदेशवाहक न्यूज)। तंजीम कारवाने अहले सुन्नत की ओर से यूट्यूब के नूरी नेटवर्क पर कुर्बानी पर दस दिवसीय ऑनलाइन दर्स (व्याख्यान) के नौवें दिन शुक्रवार को तिलावत-ए-कुरआन हाफिज अज़ीम अहमद नूरी ने किया। नात-ए-पाक हाफिज मो. शहादत हुसैन व अफरोज कादरी ने पेश की।

मुख्य वक्ता नायब काजी मुफ्ती मो. अज़हर शम्सी ने बताया कि पैगंबर-ए-आज़म हजरत मोहम्मद सल्लल्लाहो अलैहि वसल्लम ने फरमाया है कि यौम-ए-जिलहिज्जा यानी दसवीं जिलहिज्जा को इब्ने आदम का कोई अमल अल्लाह के नजदीक कुर्बानी करने से ज्यादा प्यारा नहीं है। कुर्बानी हजरत इब्राहीम अलैहिस्सलाम व हजरत इस्माईल अलैहिस्सलाम की सुन्नत है। जिसे अल्लाह ने इस उम्मत के लिए बाकी रखा। मालिके निसाब पर कुर्बानी वाजिब है।

सरकारी गाइडलाइन के मुताबिक ईदगाह व मस्जिदों में पांच-पांच लोग ईद-उल-अज़हा की नमाज अदा करेंगे। बाकी अवाम घरों में चार नमाज नफ्ल नमाज चाश्त की अदा करेगी। ईद-उल-अज़हा की नमाज का तरीका बताते हुए कहा कि पहले नियत कर लें कि “नियत की मैंने दो रकात नमाज ईद-उल-अज़हा वाजिब मा जायद छह तकबीरों के वास्ते अल्लाह तआला के इस इमाम के पीछे मुहं मेरा काबा शरीफ की तरफ। फिर कानों तक हाथ ले जाएं और तकबीरे तहरीमा यानी ‘अल्लाहु अकबर’ कहकर हाथ नाफ के नीचे बांध लें और ‘सना’ पढ़ें।

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दूसरी और तीसरी मर्तबा ‘अल्लाहु अकबर’ कहते हुए हाथ कानों तक ले जाएं फिर छोड़ दें। चौथी मर्तबा तकबीर कहकर हाथ कानों तक ले जाएं फिर नाफ के नीचे बांध लें। इमाम जब किरत करे तो मुक्तदी खामोशी से सुनें। अब इमाम के साथ पहली रकात पूरी करें।

दूसरी रकात में किरत के बाद तीन मर्तबा तकबीर कहते हुए हाथ को कानों तक ले जाएं और हाथ छोड़ दें, चौथी मर्तबा बगैर हाथ उठाए तकबीर कहते हुए रुकू में जाएं और नमाज पूरी कर लें, बाद नमाज इमाम खुतबा पढ़े और तमाम हाजिरीन खामोशी के साथ खुतबा सुनें। खुतबा सुनना वाजिब है। इसके बाद दुआ मांगें। सोशल मीडिया पर न ही कुर्बानी की फोटो डालें और न ही वीडियो।

कुर्बानी से निकलने वाले अपशिष्ट पदार्थों को गड्ढ़ों में दफ़न कर दें। हड्डियां सड़कों पर न फेंके। कुर्बानी के गोश्त के तीन हिस्से कर लें। एक हिस्सा गरीब के लिए, एक हिस्सा दोस्त व अहबाब और एक अपने घर वालों के लिए रख छोड़ें। जिनके यहां कुर्बानी न हुई हो उनके घर सबसे पहले गोश्त भेजवाएं।

उन्होंने कहा कि जिन लोगों के परिवार का कोई सदस्य विदेश में रह रहा हो और परिवार वाले भारत में उस सदस्य की तरफ से कुर्बानी करवाना चाहते हैं तो भारत में और जिस देश में परिवार का सदस्य रह रहा हो यानी दोनों देशों में कुर्बानी का दिन होना जरुरी है। तभी कुर्बानी होगी।

संचालन करते हुए मौलाना मो. कैसर रज़ा अमज़दी ने कहा कि खास जानवर को खास दिनों में कुर्बानी की नियत से जिब्ह करने को कुर्बानी कहते हैं। पैगंबर-ए-आज़म हजरत मोहम्मद सल्लल्लाहो अलैहि वसल्लम ने फरमाया है कि जिसे कुर्बानी की ताकत हो और वह कुर्बानी न करे वह हमारी ईदगाहों के करीब न आये। पर्व में साफ-सफाई का खास ध्यान रखा जाए।