ट्रेन की पटरी को धागे से जोड़ कर किया मजबूत, इस युवा इंजीनियर ने बचाए रेलवे के करोड़ो रुपए

लखनऊ। आवश्यकता ही अविष्कार की जननी है। ये बात आज सच हो गई है। फिल्म सुपर 30 के इस डायलाग को रेलवे के एक युवा इंजीनियर ने सच कर दिखाया है। इस इंजीनियरिंग अधिकारी ने पटरियों को जोडऩे वाली फिश प्लेट के ग्लूड ज्वाइंट फेल होने पर उनको बदलने की वर्षों पुरानी तकनीक को ही बदल दिया। इस अधिकारी ने पटरियों के ग्लूड ज्वाइंट फेल होने के बाद उनको सुई के साथ लगने वाले महीन धागा और तकनीक से दोबारा रिपेयर कर दिया। जिससे अब तक रेलवे का ग्लूड ज्वाइंट पर खर्च होने वाला करीब एक करोड़ रुपये बच गया है। रेलवे अब इस इंजीनियर तक तकनीक को पूरे देश में इस्तेमाल करने की तैयारी कर रही है।
पटरियों को जोड़े रखने के लिए रेलवे ग्लूड ज्वाइंट प्लेट का इस्तेमाल करता है। ग्लूड प्लेट से सिगनल के आइसोलेट और सर्किट भी जुड़े रहते हैं। यह ग्लूड प्लेट तीन कारणों से फेल हो जाती है। यार्ड और ब्लॉक सेक्शन में सिगनलिंग के लिए रेल लाइन के दोनों ओर बंधी प्लेट के बीच में इंसोलेटिंग मेटल रहता है। एक तरफ पॉजीटिव एक तरफ निगेटिव डीसी करंट का चार्ज रहता है। उसको आइसोलेट करते हैं जिसका इस्तेमाल सिगनलिंग के लिए होता है। इसकी प्लेट टूट जाती है।
वही दूसरा बीच में प्लास्टिक की तरह बने मेटल टूट जाते हैं। दूसरी इसकी टी या तो उखड़ जाती है या फिर टूटकर गायब हो जाती है। वहीं ग्लूड प्लेट के छह बोल्ट के बीच लगा इंसोलेशन भी कट जाता है। इस पूरे पैक को ग्लूड साइट कहते हैं। अब तक माना जा रहा था कि फैक्ट्री से लाकर लगाया गया ग्लूड साइट बेहतर होता है। जबकि मौके पर बनने वाले ग्लूड साइट की गुणवत्ता अच्छी नहीं होती है। फैक्ट्री से एक ग्लूड साइट की पैकिंग को लाकर लगाने का खर्च करीब 50 हजार रुपये आता है। जिसमें मौके पर जाने वाले रेलकर्मियों के टीए भी शामिल है।
इस तरह बनायी ये तकनीक
पिछले साल जनवरी 2019 तक त ग्लूड ज्वाइंट फेल होने की कई घटनाएं हो रही थी इस कारण ट्रेनों को कॉशन पर धीमी गति से चलाना पड़ रहा था। रेलवे ने पिछले साल ही ग्लूड ज्वाइंट रिपेयर की गाइड लाइन के लिए ड्राफ्ट बनाना शुरू किया था। ऐसे में सुलतानपुर में तैनात सहायक मंडल अभियंता मंगल यादव ने ग्लूड ज्वाइंट फेल होने के कारणों की जांच की। उन्होंने ग्लूड पैकिंग बदलने पर आने वाले खर्च को बचाने के लिए पुरानी ग्लूड प्लेटों का इस्तेमाल किया। उनको रेगमाल से साफ करके उनको फाइवर कपड़े लगाए। ग्लूड ज्वाइंट की रिपेयर में इस्तेमाल होने वाले बोल्ट को फाइबर कपड़े लगाकर उनको धागे से बांधा। जिससे प्लेट और बोल्ट ट्रेन गुजरते समय आपस में टकराकर न कट सके।
बनेगी पालिसी
देश में ग्लूड रिपेयर मरम्मत के लिए सुलतानपुर रेल सेक्शन के मॉडल को अपनाया जाएगा। भविष्य में टेंडर प्रक्रिया को लागू करने के लिए उत्तर रेलवे के प्रिंसिपल चीफ इंजीनियर ने पॉलिसी बनाने को कहा है। इंजीनियरिंग अधिकारी ने उतरेठिया से सुलतानपुर तक आठ कर्मचारियों की टीम के साथ 145 ग्लूड प्लेट को रिपेयर किया है।
जानिए इस अभियंता के बारे में
मंगल यादव भारतीय रेलवे इंजीनियरिंग सेवा (आइआरएसईई) 2015 बैच के अधिकारी हैं। मूल रूप से जौनपुर निवासी मंगल सिंह यादव ने दिल्ली आइआइटी से सिविल इंजीनियरिंग की है। आइआरएसईई में पहले ही प्रयास में उनकी नौंवी रैंक आयी थी।
डीआरएम लखनऊ संजय त्रिपाठी ने बताया कि होनहार युवा इंजीनियर के इस अभिनव प्रयोग से रेलवे को एक साल में एक करोड़ रुपये का लाभ हुआ है। साथ ही सहारनपुर रेलवे ने भी इसी तकनीक से रिपेयर के लिए प्रस्ताव दिया है। वहां प्रशिक्षण के लिए दो ट्रैकमैन कर्मचारियों को भेजा गया है।