यादों में विजय कुमार सिन्हा: कालांतर में 16 जुलाई 1992 को पटना में हुआ था इनका निधन

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हमीरपुर (संदेशवाहक न्यूज़ डेस्क)। आजादी के संघर्ष के सूरमा विजय कुमार सिन्हा की पुण्यतिथि 17 जुलाई पर श्रद्धा सुमन अर्पित करते हुए विमर्श विधा संस्था के अध्यक्ष डॉक्टर भवानीदीन ने कहा कि विजय कुमार सिन्हा एक समर्पित योद्धा थे। इनके योगदान को भुलाया नहीं जा सकता है।

फिरोजशाह में दिया था अविस्मरणीय भाषण

विजय कुमार का जन्म 17 जनवरी 1909 को कानपुर में मार्कन्ड के घर हुआ था, मां का नाम शरतकुमारी था। इनके दल के लिए दूसरे नाम बच्चू और बिजाय था। सिन्हा ने अपनी शिक्षा क्राइस्ट चर्च कॉलेज कानपुर में प्राप्त की। 1923 में इनकी मुलाकात भगत सिंह से हुई। असहयोग आंदोलन में सिन्हा की भूमिका प्रभावी रहे किंतु उसके बाद सिन्हा निराश हो गए। यह हिंदुस्तान प्रजातांत्रिक संघ के सदस्य थे। 1927 में पार्टी ने यह निर्णय लिया कि सिन्हा, सोवियत संघ जाकर भारत के लिए समर्थन प्राप्त करें। सिन्हा केंद्रीय समिति के सदस्य भी थे। 8 और 9 सितंबर 1928 को फिरोज शाह कोटला किले के खंडहरों में दिया गया भाषण क्रांतिकारी साथियों के दिल को छू गया।

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लगभग क्रांतिकारीयों के साथ थे अच्छे सम्बन्ध

विजय कुमार सिन्हा के बड़े भाई राजकुमार सिन्हा भी क्रांतिकारी थे। उन्हें काकोरी कांड में जेल की सजा हुई थी। विजय कुमार एक अच्छे लेखक और संपादक थे। गणेश शंकर विद्यार्थी से सिन्हा के अच्छे संबंध थे। चन्द्र शेखर आजाद, भगत सिंह, शिव वर्मा, जयदेव कपूर और भगवानदास माहौर जैसे महान क्रांतिकारी विजय कुमार सिन्हा की प्रतिभा के कायल थे।

सिन्हा क्रांतिकारी दल के परामर्शदाता थे

वहीं, लाला लाजपत राय जैसे महान देशभक्त जब साइमन कमीशन के विरोध के अगुआकार बन करक्षगोरों की क्रूरता के शिकार हो गए थे, उनके इतनी लाठियां बरसाई थी उनका निधन हो गया था। इस पर चंद शेखर आजाद ने उनके खून का बदला लेने के लिए सांडर्स बध हेतु जो मोर्चाबंदी की थी। उसके तीसरे मोर्चे पर माहौर के साथ विजय कुमार सिन्हा थे। सिन्हा क्रांतिकारी दल के परामर्शदाता थे। उनकी सलाह पर आजाद हमेशा यकीन करते थे। कोलकाता और आगरा के प्रशिक्षण शिविर में मौजूद रहे।

17 वर्षों तक जेल में रहे

काकोरी केस में सजा काट रहे योगेश सर जी को आगरा जेल से छुड़ाने की कार्य योजना में शिव वर्मा के साथ विजय कुमार सिन्हा थे। भगत सिंह और उनके साथियो के साथ जेल मे अमानवीय व्यवहार किए जाने पर भूख हड़ताल में भी सिन्हा ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। असेम्बली बम केस मे सिन्हा को आजन्म कारावास की सजा मिली थी। वे आंध्र प्रदेश की जेल और अंडमान की जेल में रहे, ये कुल मिलाकर यह 17 वर्षों तक जेल में रहे। आजादी के बाद भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी से जुड़ गए।

सिन्हा को भुलाना मुश्किल

कालांतर में 16 जुलाई 1992 में पटना में इनका निधन हो गया। इस महान क्रांतिकारी के योगदान को भुलाया नहीं जा सकता है। कार्यक्रम में अवधेश कुमार गुप्ता एडवोकेट, राजकुमार सर्राफ, कल्लू चौरसिया, लल्लन गुप्ता और गौरी शंकर गुप्ता मौजूद रहे।

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