क्या है कालसर्प दोष, कैसे पा सकते है इससे मुक्ति…जाने कितने प्रकार का होता है कालसर्प दोष

नई दिल्ली। जातक कालसर्प दोष का नाम सुन कर ही घबरा जाते है। यह दोष तब बनता है जब कुंडली के कुछ विशेष भावों में राहु और केतू बैठा होता है। जिस कुंडली में राहु और केतू की मौजूदगी का ऐसा योग बनता है तो जातक के जीवन में इसका गहरा असर पड़ता है।
वस्तुत: ऐसा माना जाता है कि जिस कुंडली में कालसर्प योग है वह जातक परेशान ही रहता है, उसे ज्योतिष अनुसार कालसर्प योग से पीड़ित जातक को जीवन में कई तरह की समस्याओं का सामना करना पड़ता है। लेकिन यह पूरी तरह से सच नहीं है। कुंडली के आधार पर यह योग कष्टदायी ही नहीं बल्कि फलदायी भी हो सकता है। ज्योतिष के अनुसार कालसर्प योग कुंडली के 12 भावों में राहु और केतु की उपस्थिति क्रम से कुल 12 प्रकार के होते हैं। शास्त्रों में नागपंचमी के दिन इस दोष से मुक्ति के लिए उपाय भी वर्णित हैं।
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अनंत कालसर्प योग: यदि लग्न में राहु और सप्तम में केतु हो, तब यह योग बनता है। इस योग के कारण जातक कभी शांत नहीं रह पाता और षड़यंत्रों में फंस कर कोर्ट-कचहरी का चक्कर लगाता रहता है।
कुलिक कालसर्प योग: यदि राहु धन भाव में एवं केतु अष्टम में हो, तो यह योग बनता है, इस योग के कारण पुत्र एवं जीवन साथी सुख, पिता सुख का अभाव रहता है एवं कदम कदम पर अपमान सहना पड़ सकता है।
वासुकी कालसर्प योग: यदि कुंडली के तृतीय भाव में राहु एवं नवम भाव में केतु हो और इनके मध्य में सारे ग्रह हों, तो यह योग बनता है। इस योग में भाई-बहन को कष्ट, भाग्योदय में बाधा, नौकरी में कष्ट उठाने पड़ते हैं।
शंखपाल कालसर्प योग: यदि राहु नवम् भाव में एवं केतु तृतीय में हो, तब यह योग बनता है। इस योग के कारण पिता का सुख नहीं मिलता एवं नौकरी में परेशानी आती हैं।
पद्म कालसर्प योग: अगर पंचम भाव में राहु एवं एकादश भाव में केतु हो तो यह योग बनता है, इस योग से पीड़ित जातक को संतान सुख का अभाव रहता है, शत्रु बहुत होते हैं।
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महापद्म कालसर्प योग: यदि राहु छठें भाव में एवं केतु व्यय भाव में हो तब यह योग बनता है। इस योग के कारण पत्नी कष्ट, आय में कमी, अपमान का कष्ट भोगना पड़ता है।
तक्षक कालसर्प योग: यदि राहु सप्तम में एवं केतु लग्न में हो तो तक्षक कालसर्प योग बनता है, ऐसे जातक की पैतृक संपत्ति नष्ट हो जाती है, बार-बार जेल यात्रा करनी पड़ती है।
कर्कोटक कालसर्प योग: यदि राहु अष्टम में एवं केतु धन भाव में हो, तो यह योग बनता है। इस योग में भाग्योदय नहीं हो पाता, नौकरी की संभावनाएं कम रहती हैं, व्यापार नहीं चलता।
शंखचूड़ कालसर्प योग: यदि राहु सुख भाव में एवं केतु कर्म भाव में हो, तो यह योग बनता है। ऐसे जातकों को व्यवसाय में उतार-चढ़ाव देखना पड़ता है।
घातक कालसर्प योग: यदि राहु दशम एवं केतु सुख भाव में हो तो घातक कालसर्प योग बनता है। ऐसे जातक संतान के रोग से परेशान रहते हैं।
विषधर कालसर्प योग: यदि राहु लाभ भाव में एवं केतु पुत्र भाव में हो तो यह योग बनता है, ऐसा जातक किसी न किसी कारण घर से दूर रहते हैं। हृदय रोग होता है।
शेषनाग कालसर्प योग: यदि राहु व्यय भाव में एवं केतु रोग भाव में हो, तो यह योग बनता है। ऐसे जातक शत्रुओं से पीड़ित रहते हैं और न्यायालय का चक्कर बार बार लगाना पड़ता है।