संपादक की कलम से: अदालत की छवि पर प्रहार खतरनाक

Sandesh Wahak Digital Desk: चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया डीवाई चंद्रचूड़ को छह सौ नामचीन अधिवक्ताओं ने पत्र लिखकर एक खास समूह द्वारा लगातार अदालतों की छवि को धूमिल करने की कोशिश पर रोक लगाने का अनुरोध किया है।

पत्र में लिखा गया है कि यह समूह भ्रष्टाचार के मामलों में घिरे सियासी चेहरों से जुड़े केसों में यह हथकंडे अपना रहा है। झूठे नैरेटिव गढ़कर यह समूह अदालतों के कामकाज की गलत छवि पेश कर रहा है और अदालत से जनता के विश्वास को डिगाना चाह रहा है। पत्र में यहां तक लिखा गया कि कुछ वकील दिन में ऐसे नेताओं का बचाव करते हैं और रात में संचार माध्यमों के जरिए न्यायाधीशों को प्रभावित करने की कोशिश करते हैं।

सवाल यह है कि :-

  • न्यायपालिका की छवि को धूमिल करने का प्रयास करने वाला यह खास समूह कौन है?
  • क्या यह अदालतों को प्रभावित कर अपनी मंशा के मुताबिक इन्हें संचालित करना चाहता है?
  • क्या विदेशों में भारतीय न्यायपालिका पर सवाल उठाने के पीछे इसकी भूमिका है?
  • क्या यह खास समूह अपने निहित स्वार्थों की पूर्ति के लिए इस प्रकार की गतिविधियां संचालित कर रहा है?
  • क्या देश के प्रधान न्यायाधीश और न्यायपालिका ऐसे लोगों या समूह को रोकने के लिए कोई खास कदम उठाएगी?

पिछले एक दशक से देश की न्यायपालिका के प्रति पूर्वाग्रह से ग्रसित एक खतरनाक प्रवृत्ति सक्रिय है। इसको एक खास समूह संचालित कर रहा है। इसमें खास विचारधारा से प्रभावित कई अधिवक्ताओं से लेकर कुछ सियासी दल के लोग भी शामिल हैं। हालांकि अदालती फैसलों पर सवाल उठाने की यह प्रवृत्ति तब तेज हुई जब भ्रष्टाचार के आरोपों में घिरे सियासी नेताओं के खिलाफ अदालतों ने भी सख्त रुख अपनाया है।

वकीलों द्वारा न्यायपालिका पर हो रहे हमले का सवाल बेहद गंभीर

यह ग्रुप न केवल सोशल मीडिया और अन्य संचार साधनों के माध्यम से इन फैसलों पर सवाल उठाते रहे हैं बल्कि जनता को अपने कथित तर्कों से गलत सूचनाएं भी प्रसारित करते रहते हैं। भारतीय न्यायपालिका की निष्पक्षता पर सुनियोजित ढंग से विदेशों तक में हमला कराया जा रहा है। ऐसे में सीजेआई को भेजे पत्र में वकीलों द्वारा न्यायपालिका पर हो रहे हमले का सवाल बेहद गंभीर है।

इसमें दो राय नहीं कि न्यायपालिका इस मामले की गंभीरता को समझती है और इस प्रकार के झूठे नैरेटिव से प्रभावित नहीं होती है। बावजूद इसके ये हालात बेहद चिंताजनक है। अपने निहित स्वार्थों की पूर्ति के लिए सुनियोजित ढंग से देश की न्यायपालिका के साख पर होने वाले प्रहार को रोकना होगा अन्यथा जनता में इसका गलत संदेश जाएगा। इसके लिए सरकार और न्यायपालिका दोनों को मिलकर काम करना होगा। ऐसे समूहों को चिन्हित कर इनके खिलाफ कानून सम्मत कार्रवाई करनी होगी। इसने निपटने की रणनीति बनानी होगी। यदि ऐसा नहीं किया गया तो यह लोकतांत्रिक देश के अहम स्तंभ न्यायपालिका के लिए भविष्य में खतरनाक साबित हो सकता।

Also Read: संपादक की कलम से : चुनाव और लोकलुभावन…

Get real time updates directly on you device, subscribe now.