UP की 18 लोकसभा सीटों पर जाट वोटरों का पड़ेगा सीधा असर, भाजपा सतर्क

दिल्ली में पहलवानों के आंदोलन का यूपी (UP) में कितना नफा नुकसान होगा, इस पर चर्चा शुरू हो गयी है। मिशन 2024 को देखते हुए यूपी में भाजपा इस मामले में बेहद सतर्क है।

Sandesh Wahak Digital Desk: दिल्ली में पहलवानों के आंदोलन का यूपी (UP) में कितना नफा नुकसान होगा, इस पर चर्चा शुरू हो गयी है। मिशन 2024 को देखते हुए यूपी में भाजपा इस मामले में बेहद सतर्क है। इसके बावजूद कम से कम दस सीटों पर इसका सियासी असर बताया जा रहा है। हालांकि भाजपा इसे किसान आंदोलन की तर्ज पर निष्प्रभावी करार दे रही है।

यूपी में जाटों की कुल आबादी करीब 8 फीसदी बताई जाती है। पश्चिमी यूपी (Western UP) में 17 फीसदी से ज्यादा वोटर जाट समुदाय से हैं। यूपी की 18 लोकसभा सीटों पर जाट वोट बैंक चुनावी नतीजों पर सीधा असर डालता है। इनमें सहारनपुर, कैराना, मुजफ्फरनगर, मेरठ, बागपत, बिजनौर, गाजियाबाद, गौतमबुद्धनगर, मुरादाबाद, संभल, अमरोहा, बुलंदशहर, हाथरस, अलीगढ़, नगीना, फतेहपुर सीकरी और फिरोजाबाद शामिल हैं।

दूसरी तरफ विधानसभा की कुल 120 सीटों पर जाट वोट बैंक का दखल है। फिलहाल संसद में 24 सांसद जाट समुदाय से हैं। जिनमें सिर्फ 4 सांसद भारतेंदु सिंह, सत्यपाल सिंह, चौधरी बाबूलाल और संजीव बालियान यूपी से आते हैं। विधानसभा में कुल 14 जाट विधायक हैं। लोकसभा सीटों पर मथुरा में 40 फीसदी, बागपत में 30 फीसदी, सहारनपुर में 20 फीसदी जाट आबादी है।

पहलवानों के प्रदर्शन का चुनाव पर पड़ेगा असर!

पहलवानों के प्रदर्शन में जाट भी शामिल हो रहे हैं तो क्या लोकसभा चुनाव (Loksabha Election) में पहलवानों के इस प्रदर्शन का यूपी के जाट बाहुल्य इन जिलों पर कोई प्रभाव पड़ेगा? यूपी की 18 लोकसभा सीटों पर जाट वोटरों का सीधा असर है। इनमें बागपत में 30 फीसदी जाट वोटरों का दबदबा है। मेरठ में 26 फीसदी जाट वोटरों का दबदबा है। ये भाजपा की परंपरागत सीट भी है। सहारनपुर में 20 फीसदी जाट वोटर हैं। मथुरा में 18 फीसदी जाट वोटर हैं। अलीगढ़, मुजफ्फरनगर, बिजनौर, मुरादाबाद, आगरा, कैराना सीटों को भी जाट वोटरों का दबदबा माना जाता है। इन सभी सीटों पर जाट वोटरों का सीधा असर भाजपा पर पड़ सकता है।

किसानों को साधने की कोशिश में भाजपा

चुनाव नजदीक आते ही ऐसे वोटरों को विपक्ष अपनी तरफ करने की कोशिश में लग चुका है। जिस तरह से किसान पहलवानों के साथ आंदोलन में उतर आए हैं, वो एक वक्ती गुस्सा हो सकता है। दूसरा पहलू ये है कि किसानों के खाते में हर महीने 6 हजार रुपए केंद्र सरकार डाल रही है। यानी भाजपा ने आज से नहीं बल्कि कई साल पहले से ही किसानों को साधने की कोशिश जारी रखे हुए है।

किसान आंदोलन का असर भी नहीं दिखा था- भाजपा

भाजपा के एक नेता के मुताबिक पहलवानों का मुद्दा चुनाव के पास आने तक कितना बड़ा रहेगा, इस बारे में अभी से कुछ कहना ठीक नहीं होगा। किसान आंदोलन को लेकर भी कहा जा रहा था कि इस आंदोलन का असर भाजपा पर चुनाव में पड़ेगा। लेकिन यूपी चुनाव (UP Election) से ठीक पहले केंद्र सरकार ने कानून वापस ले लिया था। पिछली बार सपा और बसपा दोनों मिलकर चुनाव लड़ी थी। इसके बावजूद भाजपा ने यूपी में भारी बहुमत से सत्ता हासिल की थी। इस बार दोनों पार्टियां अलग-अलग चुनाव लड़ रही हैं, जो भाजपा को और मजबूत बनाएगा।

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