अगले 10 साल में पानी को तरसेगा Lucknow, बीबीएयू के शोध में दी गई चेतावनी

बाबा साहेब भीमराव अम्बेडकर केंद्रीय विश्वविद्यालय (बीबीएयू) के शोध में राजधानी लखनऊ (Lucknow) में पेयजल को लेकर गंभीर संकट की चेतावनी दी गई है।

Sandesh Wahak Digital Desk: बाबा साहेब भीमराव अम्बेडकर केंद्रीय विश्वविद्यालय (बीबीएयू) के शोध में राजधानी लखनऊ (Lucknow) में पेयजल को लेकर गंभीर संकट की चेतावनी दी गई है। शोध में कहा गया है कि अगर इसी तरह भूगर्भ जल का अंधाधुंध दोहन होता रहा, तो आने वाले 10 साल में यहां के लोग पेयजल के लिए तरसेंगे, क्योंकि लखनऊ में लगभग हर साल 1.39 मीटर जलस्तर में गिरावट दर्ज की जा रही है, जो काफी चिंताजनक है। यहीं नहीं पूरे जिले में लोगों को जहरीले पानी की समस्या से भी दोचार होना पड़ेगा।

भूगर्भ और पर्यावरण वैज्ञानिक लगातार राजधानी लखनऊ (Capital Lucknow) को लेेकर सरकार को चेता रहे हैं कि अगर भूगर्भ जल के दोहन पर लगाम नहीं लगाई गई तो आने वाले समय में पेयजल की विकट समस्या से जूझना होगा। शहर का विस्तार लगातार होता जा रहा है। हर तरफ कंक्रीट के जंगल खड़े हो रहे हैं। जिससे भूगर्भ जल रिचार्ज होने की क्षमता कम होती जा रही है। इसके विपरीत पेयजल के लिए भूगर्भ जल पर निर्भरता निरन्तर बढ़ती जा रही है। अब बीबीएयू द्वारा किए गए शोध में भी इसे सही साबित कर दिया है।

शोधकर्ता प्रो. वेंकटेश दत्ता ने बताया कि राजधानी लखनऊ के कई इलाके हैं जहां पर भूजल का स्तर करीब 25 से 30 मीटर तक पहुंच गया है। यानी जमीन से पानी निकालना अब खतरनाक स्तर तक पहुंच गया है। उन्होंने बताया कि 90 के दशक में राजधानी लखनऊ का भूजल स्तर करीब नौ मीटर के आसपास था।

पानी निकाल रहे हैं, पर वापस जमीन में डाल नहीं रहे

प्रोफेसर दत्ता (Professor Dutta) ने बताया कि भूजल स्तर इसलिए गिर रहा है कि हम पानी तो जमीन से निकाल रहे हैं, लेकिन वापस नहीं डाल रहे हैं। पहले गड्ढे और तालाब हुआ करते थे। अब सडक़ के किनारे भी टाइल्स लग रहे हैं। कंक्रीट के जंगलों के वजह से प्राकृतिक द्वार बंद हो गए हैं। आर्टिफिशियल रिचार्ज के लिए रेन वॉटर हार्वेस्टिंग कागजों तक सीमित है।

प्रतिदिन बड़ी मात्रा में जमीन से निकाला जा रहा पानी

केंद्रीय भूजल बोर्ड की रिपोर्ट (Report of Central Ground Water Board) के अनुसार शहर में रोजाना लगभग 1000 करोड़ लीटर से अधिक पानी का दोहन प्रतिदिन किया जा रहा है। जिसमें से जलकल विभाग द्वारा आपूर्ति के लिए 750 ट्यूबवेल पंपों के जरिए लगभग 300 करोड़ लीटर पानी का दोहन रोजाना किया जा रहा है। इसके अलावा निजी कंपनियों, बहुमंजिला इमारतों, निजी प्रतिष्ठानों, सरकारी कार्यालयों, परिसरों और घरों में लगे पम्पों से रोजाना तीन गुणा लगभग 1000 करोड़ लीटर जल जमीन से निकाला जा रहा है।

प्रो. दत्ता के मुताबिक एक वर्ग किलोमीटर में प्रतिदिन 40 लाख लीटर पानी जमीन से निकल रहा है। सरकारी आंकड़ों के मुताबिक लखनऊ (Lucknow) के रकाबगंज, गणेशगंज, ठाकुरगंज, लालबाग, इंदिरानगर, अलीगंज, गोमतीनगर, आलमबाग, जेल रोड, कैंटोनमेंट और ठाकुरगंज इलाके में दो साल में भूजल स्तर में दो से तीन मीटर की गिरावट दर्ज हुई है।

सबमर्सिबल पंप, घटते भूजल का प्रमुख कारण

जलकल विभाग के जारी आंकड़ों (Data released by the water department) के अनुसार अभी राजधानी के लगभग 48 फीसदी हिस्से में ही वॉटर लाइन पड़ी है। इससे शहर की आधी आबादी को ही पाइपलाइन से पेयजल की आपूर्ति हो रही है। प्रोफेसर वेंकटेश दत्ता ने बताया कि ऐसे में लोगों को अपनी पानी की जरूरतों को पूरा करने के लिए घरों में सबमर्सिबल पंप लगवा रखे हैं। वर्ष 2019 के बाद केंद्रीय भूजल बोर्ड के तर्ज पर उत्तर प्रदेश के गांवों में वॉटर डिपार्टमेंट का गठन तो हुआ, लेकिन सबमर्सिबल पंप लगाने के लिए कोई गाइडलाइन अभी तक जारी नहीं हो पाई है।

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