Uttar Pradesh: एचआईवी और हेपेटाइटिस किट खरीद में करोड़ों का फर्जीवाड़ा

उत्तर प्रदेश (Uttar Pradesh) में मेडिकल सप्लाई कारपोरेशन अफसरों के खेल निराले हैं। ये अफसर सरकारी अस्पतालों को दवाओं की आपूर्ति करने में भले फिसड्डी हैं।

संदेशवाहक डिजिटल डेस्क/मनीष श्रीवास्तव। उत्तर प्रदेश (Uttar Pradesh) में मेडिकल सप्लाई कारपोरेशन अफसरों के खेल निराले हैं। ये अफसर सरकारी अस्पतालों को दवाओं की आपूर्ति करने में भले फिसड्डी हैं, लेकिन कमीशनखोरी के खातिर मानकों से अधिक करोड़ों की खरीद में इनका कोई सानी नहीं है। तभी एनएचएम के बजट से एचआईवी (HIV) और एचसीवी (हेपेटाइटिस सी) एलाइजा किटों को तय मात्रा से 96 गुना अधिक खरीदकर कार्पोरेशन में एक बड़े घोटाले की नींव रख दी गयी। घोटाले को दबाने की नीयत से अफसरों का पूरा जोर सिर्फ भुगतान कराने पर है।

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उत्तर प्रदेश (Uttar Pradesh) में 83 अस्पतालों के ब्लड बैंकों में हेपेटाइटिस सी और एचआईवी (HIV) की जांच के लिए एनएचएम ने 10 अगस्त 2020 को यूपीएमएससीएल (UPMSCL) को डायग्नोस्टिक किटों की आपूर्ति के लिए मांग पत्र भेजा था। एनएचएम (National Health Mission) को एचसीवी एलिजा किट के 61390 टेस्ट और एचआईवी (HIV) के 61390 टेस्ट के लिए किटें चाहिए थी। टेस्टों की संख्या भी एनएचएम के पत्र में साफ तौर पर अंकित थी। एक किट से 96 टेस्ट होते हैं। दोनों मिलाकर एनएचएम को तकरीबन 1300 किटों की ही दरकार थी।

कमीशनखोरी के खातिर अफसरों ने 3 नवंबर 2021 को दोनों किटों के लिए टेंडर संख्या 90/327 निकाला। जिसमें न्यूनतम दरें दिखाकर दिल्ली की कम्पनी ऑस्कर मेडिकेयर (Oscar Medicare) को 15 करोड़ 27 लाख 89 हजार 15 रूपए के क्रयादेश थमा दिए। एचआईवी किटों के 61390 बॉक्स (5893440 यूनिट) प्रति 1559.25 की दर से कुल 9 करोड़ 57 लाख 22 हजार 357 रुपयों में खरीदे। वहीं एचसीवी (हेपेटाइटिस सी) एलाइजा किटों की कीमत 61390 बॉक्स (5893440 यूनिट) प्रति 929. 29 की दर से 5 करोड़ 70 लाख 46 हजार 657 रूपए फाइनल हुई। एक बॉक्स में 96 यूनिट किटें हैं। जिनसे लाखों की तादाद में इतने एचआईवी और हेपेटाइटिस सी के टेस्ट (HIV and Hepatitis C tests) हो सकते हैं।

भुगतान में पेंच फंसा

जो कभी पूरे उत्तर प्रदेश (Uttar Pradesh) में भी नहीं हुए होंगे। कार्पोरेशन और एनएचएम की वित्तीय इकाई ने करोड़ों की इस खरीद को नियमों के विपरीत करार देते हुए भुगतान में पेंच फंसा दिया है। 13 जनवरी को एनएचएम की मिशन निदेशक ने कार्पोरेशन को पत्र भेजकर भुगतान करने से इनकार कर दिया। उन्होंने कहा किया गया क्रय भेजे गए इंडेंट से अधिक है। इसलिए सिर्फ 15 लाख 91 हजार 229 रुपयों की धनराशि ही समायोजित की जा सकती है। पूर्व एमडी मुथुस्वामी बी (Former MD Muthuswamy B) ने भी इस फाइल को हाथ लगाने से इंकार कर दिया था। उनका ध्यान सिर्फ इन किटों को खपाने में लगा रहा।

फुलप्रूफ प्लानिंग : फाइनेंशियल कमेटी की बैठक तक नहीं

फर्जीवाड़ा करने के लिए किटों की खरीद के समय अफसरों ने टेंडर को अंतिम रूप देने से पहले फाइनेंशियल कमेटी की बैठक तक नहीं बुलाई। सूत्रों के मुताबिक वित्तीय बिड में एक कम्पनी ने प्रति टेस्ट का रेट भी दिया था। फिर भी टेंडर निरस्त नहीं किया। क्रयादेश में भी खेल हुआ। पहले रैपिड टेस्ट लिखा गया, उसके बाद इसे बदलवा दिया गया। सितंबर या अगस्त 2021 में हुई बैठक में एनएचएम ने कहा था कि किट नहीं टेस्ट चाहिए। तब तक सिर्फ दस हजार किटें कम्पनी ने आपूर्ति की थी। तब ये खरीद रोकी भी जा सकती थी। कोल्ड चेन न होने के कारण मार्च 2022 में क्रयादेश को विस्तार दिया गया था। सूत्रों के मुताबिक एएमडी सिर्फ एक लाख की जमा कराई गयी थी। मतलब ऑर्डर की कीमत एक करोड़ से ऊपर नहीं थी।

कोल्डचेन का ध्यान नहीं, जल्दबाजी में किटों की आपूर्ति

किटों के परिवहन में कोल्डचेन का भी ध्यान नहीं रखा गया। जिसका खुलासा वेयर हॉउस प्रभारियों के पत्रों से हुआ है। सूत्रों की माने तो कोल्ड चेन टूटने से किटों के निगेटिव और पॉजिटिव कंट्रोल खराब हो गए थे। एक्स्पायरी होने के डर से अफसरों ने इसे बिना जरूरत ही कई जगह भेज दिया। एक विभागीय ईमेल में लिखा गया कि कई बार अनुरोध के बावजूद ट्रांसपोर्टनगर नगर वेयरहाउस में रखी किटों को कोई लेने नहीं आ रहा है। एक जून 2022 को एनएचएम ने कार्पोरेशन से कहा कि जिलों में किटों की आपूर्ति नहीं हुई है।

जिस किसी ने भी गलती की है, उसे हम कतई नहीं छोड़ेंगे। पारदर्शी व्यवस्था के तहत हम जांच कराएंगे। रिपोर्ट के आधार पर आगे की कार्रवाई की जायेगी।
ब्रजेश पाठक, उप मुख्यमंत्री

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