संपादकीय: वृक्षारोपण के दावे और हकीकत

यूपी सरकार ने एक बार फिर प्रदेश को हरा-भरा बनाने के उद्देश्य से 35 करोड़ पौधों के वृक्षारोपण का ऐलान किया है।

संदेशवाहक डिजिटल डेस्क। यूपी सरकार ने एक बार फिर प्रदेश को हरा-भरा बनाने के उद्देश्य से 35 करोड़ पौधों के रोपण का ऐलान किया है। पहले भी वृक्षारोपण अभियान के तहत हर साल करोड़ों पौधे लगाए जाते रहे हैं। बावजूद इसके आज भी प्रदेश का वनक्षेत्र निर्धारित मानकों से काफी कम है। यदि सरकारी दावों को भी स्वीकार कर लें तो भी वनक्षेत्र में विस्तार की गति बेहद धीमी है और मानकों तक पहुंचने में लंबा वक्त लग सकता है।

सवाल यह है कि…

  • हर साल करोड़ों पौधों का रोपण करने के बाद भी प्रदेश का हरित क्षेत्र तेजी से क्यों नहीं बढ़ रहा है?
  • हर साल पौध रोपण अभियान चलाने और इनको संरक्षित रखने के दावों के बावजूद लाखों वृक्ष सूख क्यों जाते हैं?
  • राज्य के वन क्षेत्र बढऩे के बजाए घट क्यों रहे हैं?
  • वनों में अवैध कटान किसके इशारे पर धड़ल्ले से चल रहा है?
  • हर साल वृक्षारोपण के नाम पर करोड़ों रुपये खर्च करने का हासिल क्या है?

स्थितियां हो रहीं हैं गंभीर

सरकार के तमाम दावों के बावजूद प्रदेश में न तो हरित पट्टी का दायरा बढ़ रहा है न ही वन क्षेत्र। स्थितियां दिनों-दिन गंभीर होती जा रही हैं। राष्ट्रीय वन नीति (National Forest Policy) के मुताबिक प्रदेश में वन और वृक्षों से आच्छादित क्षेत्र कुल क्षेत्रफल का 33.33 फीसदी होना चाहिए, इसके विपरीत यह प्रदेश के कुल भौगोलिक क्षेत्रफल का 9.18 फीसदी है। वृक्षों की अंधाधुंध कटाई के कारण इसमें भी लगातार कमी हो रही है।

प्रदेश के तीस जिलों में वन क्षेत्र महज दो फीसदी

नेशनल ज्योग्रॉफिक सोसाइटी ऑफ इंडिया (National Geographic Society of India) के शोध पत्र के मुताबिक अकेले चंदौली का वन क्षेत्र 4.05 फीसदी से घटकर 2.55 फीसदी हो चुका है। भारतीय वन सर्वेक्षण की रिपोर्ट के मुताबिक 2019 तक सोनभद्र का वन क्षेत्र 2540.29 वर्ग किमी था, जो 2021 में घटकर 2436.75 वर्ग किमी हो गया है यानी सिर्फ दो सालों में सोनभद्र के वन क्षेत्र का दायरा 103.54 वर्ग किमी घट गया। सच यह है कि प्रदेश के तीस जिलों में वन क्षेत्र महज दो फीसदी है। इसमें दो राय नहीं कि वृक्षारोपण अभियान के जरिए सरकार वन और हरित पट्टी को बढ़ाना चाहती है लेकिन अफसरशाही की लापरवाही से यह जमीन पर नहीं दिख रही है।

हालत यह है कि वृक्षारोपण अभियान के दौरान लगाए जाने वाले पौधों के देखरेख और संरक्षण की जिम्मेदारी तक नहीं निभाई जा रही है। इसका परिणाम यह है कि हर साल लाखों पौधे सूख जाते हैं। वहीं दूसरी ओर जंगलों में वृक्षों की अवैध कटाई जारी है।

पौधों के व्यवहारिक संरक्षण की व्यवस्था भी लागू करनी होगी

हैरानी की बात यह है कि यह सारा काम विकास के नाम किया जा रहा है और इन वृक्षों के स्थान पर दूसरे वृक्ष नहीं लगाए जा रहे हैं। ऐसे में प्रदेश का हरित आवरण 2030 तक नौ से बढ़ाकर 15 फीसदी करने का लक्ष्य पूरा होता नहीं दिख रहा है। यदि वाकई सरकार प्रदेश को हरा-भरा बनाना चाहती है तो उसे न केवल विकास को प्रकृति केंद्रित बनाना होगा बल्कि वनों में हो रहे अवैध कटान को भी रोकना होगा। इसके अलावा वृक्षारोपण अभियान के तहत लगाए गए पौधों के व्यवहारिक संरक्षण की व्यवस्था भी लागू करनी होगी।

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