संपादकीय: भ्रष्टाचार की गहरी जड़ें

संदेश वाहक न्यूज डेस्क। भ्रष्टाचार की जड़ें देश में कितनी गहरी हैं यह बात किसी से छिपी नहीं है। राजनेताओं से लेकर नौकरशाहों पर तक पर भ्रष्टाचार के गंभीर आरोप लगे हैं। यह बात दीगर है कि जितने आरोप राजनेताओं और अफसरों पर लगे हैं उसके मुकाबले सजा का प्रतिशत बेहद कम है। देश में भ्रष्टाचार को लेकर कड़े कानून न हों ऐसा भी नहीं है।

सवाल यह है कि :- 

  • नौकरशाहों को हर साल अपनी संपत्ति का ब्यौरा सार्वजनिक करना होता है, तो क्या हर साल प्रत्येक ब्यूरोक्रेट्स अपनी संपत्ति का ब्यौरा सार्वजनिक करते हैं?
  • अगर वो ऐसा नहीं करते हैं तो उनके खिलाफ क्या कार्रवाई की गई?
  • नौकरशाहों के इस रवैये के लिए कौन जिम्मेदार है?

जैसे तमाम सवाल आम आदमी के दिमाग में आते हैं। इस मामले से जुड़ी संसद की स्थायी समिति ने बताया कि देश भर में प्रशासनिक सेवा के तकरीबन चौदह सौ ऐसे अधिकारी हैं जिन्होंने पिछले लगभग ग्यारह सालों से अपनी संपत्ति व आय का ब्यौरा सार्वजनिक नहीं किया है।  नौकरशाहों के करप्शन के तरीके उजागर हैं।

हर सरकार करती है भ्रष्टाचार खत्म करने का दावा

हर सरकार भ्रष्टाचार समाप्त करने का दावा करती है, मगर अधिकारियों के आचरण पर उसका कोई असर पड़ता नजर नहीं आता। वे धन और संपत्ति जमा करने के रास्ते निकाल ही लेते हैं। तबादले वगैरह का भी उन पर बहुत असर नहीं पड़ता। इन हालातों में संसद की स्थायी समिति ने कार्मिक एवं प्रशिक्षण विभाग को सुझाव दिया है कि एक ऐसे तंत्र का गठन करे, जो अधिकारियों द्वारा पेश किए गए आय और संपत्ति के ब्यौरों की जांच करे और उनकी वास्तविक कमाई का खुलासा करे।

प्रथम दृष्टया यह सुझाव अच्छा है, अगर ऐसा कोई तंत्र बनता है, तो शायद नौकशाहों के भ्रष्ट आचरण पर कुछ लगाम लगे। मगर उस नियामक तंत्र में भी जो अधिकारी-कर्मचारी होंगे, उनका आचरण कितना पारदर्शी होगा, इसका कैसे दावा किया जा सकता है?

नौकरशाहों को शह राजनीतिक नेतृत्व से मिलती

फिर, ऐसा नहीं कि अधिकारियों के भ्रष्ट आचरण पर नजर रखने के लिए पहले से तंत्र नहीं है। कुछ जगहों पर खुद ब्यूरोक्रेट्स ने भी भ्रष्ट अधिकारियों पर नजर रखने के लिए अलग से तंत्र तैयार कर रखा है, जैसे उत्तर प्रदेश में प्रशासनिक अधिकारियों का संघ हर साल भ्रष्ट अधिकारियों की सूची जारी करता है। मगर इन सबके बावजूद उनके आचरण में कोई बदलाव नजर नहीं आता। इस बात से कोई अंजान नहीं कि नौकरशाहों को शह राजनीतिक नेतृत्व से मिलती है।

मौजूदा केंद्र सरकार पिछली सरकारों के समय हुए भ्रष्टाचारों की पोल खोलने के इरादे से जांचों का सिलसिला चला रही है। उससे जाहिर है कि किस तरह नौकरशाही और राजनेताओं की मिलीभगत से भ्रष्टाचार फैलता है। इसलिए अगर सचमुच भ्रष्टाचार खत्म करना है, जिससे संबंधित संधि पर भारत ने हस्ताक्षर भी किए हैं, तो एक ऐसे तंत्र का गठन करने पर विचार करना चाहिए, जो भ्रष्टाचार के इस तंत्र को खत्म कर सके। जब तक ऐसी व्यवस्था वजूद में नहीं आती है भ्रष्टाचार पर लगाम कसना आसान न होगा। सरकार के दावे खोखले ही साबित होंगे।

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