UP: आवास विकास के 500 करोड़ के घोटाले को दबाने के उच्चस्तरीय प्रयास

आगरा की सिकंदरा योजना में सीएम योगी के आदेश पर शुरू फर्जीवाड़े की जांच रिपोर्ट अभी तक शासन को नहीं मिली

Sandesh Wahak Digital Desk: यूपी आवास विकास परिषद में पिछली सरकारों के दौरान अंजाम दिए घोटालों की जांचें दबाने में अफसर बेहद महारथी है। हाल ही में उजागर हुए साढ़े तीन अरब के गाजियाबाद भूमि घोटाले में फंसे बड़े नौकरशाहों पर भी कोई कार्रवाई नहीं हुई। सीएम योगी ने जिस घोटाले की जांच के आदेश दिए, उसे भी फाइलों से बाहर नहीं आने दिया जाता है।

ऐसा ही एक घोटाला आगरा की सिकंदरा योजना की कीमती जमीन में 500 करोड़ से ज्यादा की हेराफेरी का है। जिसे सिर्फ 166 करोड़ आरक्षित मूल्य रखकर बेच कर परिषद को अरबों की बड़ी चोट पहुंचाई गयी थी। वहीं बिल्डर ने इस जमीन को कौड़ियों के भाव खरीदकर खुद हाऊसिंग प्रोजेक्ट शुरू करके कई गुना अधिक कमाई करने का खेल किया। मुख्यमंत्री के आदेश पर शुरू हुई जांच की रिपोर्ट आज तक शासन को नहीं मिली है।

जमीन से परिषद को 600 करोड़ की आय हो सकती

आवास विकास के अफसरों ने आगरा की सिकंदरा योजना में पॉकेट ए सेक्टर 15 में 121086 वर्ग मीटर और पॉकेट बी सेक्टर 12 में 23783 वर्ग मीटर भूमि को अविकसित बताकर इस घोटाले को अंजाम दिया था। इस जमीन से परिषद को 600 करोड़ की आय हो सकती थी। जिसे सुनियोजित षड्यंत्र के तहत भारत नगर सहकारी आवास समिति को दिया गया।

बिना किसी आदेश के समझौता तत्कालीन अधीक्षण अभियंता आरके अग्रवाल द्वारा कराकर पत्र संख्या 3089 द्वारा मुख्यालय भेजा गया। तत्कालीन उप आवास आयुक्त हीरा लाल ने अपनी जांच में सीधे अग्रवाल को कटघरे में खड़ा करते हुए कहा था कि परिषद हितों के विपरीत काम किया गया है।

कम कीमत पर बेची गई जमीन  

सीएम योगी को भेजी शिकायत में भी कहा गया कि जून 2016 में सार्वजनिक सूचना जारी करने के बाद अफसरों ने जमीन की नीलामी किए बिना ही 166 करोड़ की कीमत पर भारत नगर सहकारी समिति के साथ समझौते पर हस्ताक्षर कर दिए। जो नीलामी बोली के वास्तविक आधार मूल्य से छह करोड़ रुपये कम था।

इसके अलावा कुल नीलाम भूमि में से सात हजार वर्ग मीटर से अधिक सरकारी भूमि के लिए समिति से पैसा भी नहीं लिया, जिसका मूल्य परिषद के मुताबिक 8.47 करोड़ था। घोटाले में परिषद के कई बड़े अफसर फंसे हैं। इसमें कई रिटायर भी हो गए हैं। रजिस्ट्री विभाग के अफसरों की साठगांठ भी शामिल है, तभी डीएम सर्किल रेट से तीन गुना कम पर जमीन बेची गयी। जिस भूमि को अविकसित दर्शाया गया, उसके आस-पास तमाम विकसित निर्माण अफसरों पर सवाल खड़े कर रहे हैं।

चार सदस्यीय जांच समिति नहीं दिखा रही तेजी, शासन भी चुप

तत्कालीन आवास आयुक्त अजय चौहान ने अपर मुख्य सचिव आवास को पत्र लिखकर शासन स्तर से जांच कराने की मांग की थी। मामले की शिकायत मुख्यमंत्री योगी से भी होने पर शासन ने चार सदस्यीय जांच समिति का गठन किया था। जिसमें आगरा जिलाधिकारी के साथ ही वीसी आगरा विकास प्राधिकरण भी सदस्य हैं। आगरा कमिश्नर ने जांच के संबंध में कई बैठकें भी की। लेकिन नतीजा सिफर रहा। शासन में आवास विभाग के एक अफसर के मुताबिक जांच रिपोर्ट के लिए पुन: रिमाइंडर भेजा जायेगा।

तत्कालीन उप आवास आयुक्त ने की थी एफआईआर की संस्तुति

इस घोटाले में आवास आयुक्त को तत्कालीन उप आवास आयुक्त रहे हीरा लाल ने गोपनीय जांच रिपोर्ट भेजी थी। जिसके मुताबिक अफसरों-इंजीनियरों के रैकेट ने मामले को जानबूझकर उलझाया था। रिपोर्ट में लिखा था कि समिति निबंधितकर्ता के साथ ही धोखाधड़ी और साठगांठ के माध्यम से गलत दबाव बनाकर जमीने लेने का प्रयास कर रही है। समिति का ये कृत्य आपराधिक है। ऐसे में भारत नगर सहकारी समिति के खिलाफ आपराधिक मुकदमा कायम करना चाहिए, लेकिन परिषद के अफसरों ने रिपोर्ट पर कार्रवाई नहीं की।

 

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