उत्तर प्रदेश में सबसे ज्यादा दागी नेताओं के मामले लंबित

आंकड़ों के मुताबिक उत्तर प्रदेश में सबसे अधिक 1255 मामले लंबित है। इसके बाद महाराष्ट्र है, जहां 447 केस हैं। राजधानी दिल्ली में पिछले 5 साल में सिर्फ 11 केसों का निपटारा हुआ।

Sandesh Wahak Digital Desk: देश में दागी माननीयों की लम्बी फेहरिस्त है। इनके आपराधिक मामलों को निपटाने के लिए सुप्रीम कोर्ट की सलाह पर विधि मंत्रालय ने देशभर में दस फास्ट ट्रैक कोर्ट की स्थापना की थी। लेकिन त्वरित न्याय की उम्मीद पर ये कोर्ट भी भारी पड़ रहे हैं।
देश के सबसे बड़े राज्य उत्तर प्रदेश के फास्ट ट्रैक कोर्ट में ही माननीयों के हजार से ज्यादा आपराधिक मामले लंबित हैं।

हालांकि फास्ट ट्रैक कोर्ट से दोषी साबित होने के बाद अफजाल अंसारी, आजम और उनके बेटे अब्दुल्ला आजम व विक्रम सैनी समेत कितने ही विधायकों और सांसदों की सदस्यता ख़त्म हो चुकी है। राहुल गांधी भी इसी कड़ी का हिस्सा हैं। हाल ही में बाहुबली मुख्तार अंसारी पर गैंगस्टर मामले में एमपी-एमएलए कोर्ट ने फैसला सुनाया है। त्वरित न्याय की उम्मीद में खुले फास्ट ट्रैक कोर्ट पांच वर्षों में सिर्फ सिर्फ 6 प्रतिशत केसों का ही निपटारा कर पाए हैं।

उत्तर प्रदेश में साढ़े 12 सौ मामले लंबित

आंकड़ों के मुताबिक उत्तर प्रदेश (Uttar Pradesh) में सबसे अधिक 1255 मामले लंबित है। इसके बाद महाराष्ट्र है, जहां 447 केस हैं। राजधानी दिल्ली में पिछले 5 साल में सिर्फ 11 केसों का निपटारा हुआ। मध्य प्रदेश और तेलंगाना में पिछले 5 साल में एक भी केस में नेताओं के खिलाफ फैसला नहीं आया। मध्य प्रदेश में नेताओं के खिलाफ 307 और तेलंगाना में 353 मामले लंबित है।

देशभर में फास्ट ट्रैक कोर्ट में अभी 2729 केस लंबित

एडीआर की रिपोर्ट के मुताबिक वर्तमान में देशभर में 1783 विधायकों पर आपराधिक मामले लंबित हैं। कुल विधायकों की संख्या का यह 44 प्रतिशत है। लोकसभा के 543 में से 233 सांसदों पर आपराधिक मामले दर्ज हैं। 159 सांसदों पर गंभीर मामले दर्ज हैं। इसी तरह राज्यसभा के 233 में से 71 सांसदों पर आपराधिक केस है। न्याय मंत्रालय की एक रिपोर्ट के मुताबिक नेताओं के खिलाफ फास्ट ट्रैक कोर्ट में अभी 2729 केस लंबित है। पिछले 5 सालों में सिर्फ 168 केसों का ही निपटारा हुआ है। औसत के मुताबिक हर महीने करीब 3 केस निपटाए जा रहे हैं।

सुप्रीम कोर्ट भी सख्त, तीन माह में नहीं निपटते मामले

देश के शीर्ष न्यायालय ने दागी माननीयों के मामलों को तीन माह में निपटाने के निर्देश दे रखे हैं। सुप्रीम कोर्ट ने न्याय मित्र का गठन भी किया था। जिससे इन अदालतों में न्यायाधीशों की कमी भी बड़ी वजह के रूप में सामने आयी। दागी नेताओं के खिलाफ केस दर्ज होने के बावजूद वो चुनाव लड़ते रहते हैं। ऐसे में जनप्रतिनिधित्व कानून का कोई महत्व नहीं रह जाता है।

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