गड़बड़झाला : अरबों के पीएफ घोटाले की जांच पर पर्दा डालने की मंशा

Sandesh Wahak Digital Desk : उत्तर-प्रदेश पावर कार्पोरेशन में एक बार फिर पीएफ घोटाला सुर्खियां बटोर रहा है। मामला इस बार कारपोरेशन अंशदायी भविष्य निधि ट्रस्ट के दो कार्मिक ट्रस्टी (न्यासी) को हटाए जाने की घटना से जुड़ा है। कर्मचारियों में प्रबंधन के इस फैसले के खिलाफ आक्रोश भी देखा जा रहा है।

पावर कार्पोरेशन के भविष्य निधि ट्रस्ट से हटाए गए दोनों ट्रस्टी ने लगाए संगीन आरोप

ट्रस्टियों ने भी रविवार को कार्पोरेशन के अफसरों पर कई संगीन आरोप लगाते हुए 4200 करोड़ के पीएफ घोटाले का जिक़्र किया। डीएचएफएल में असुरक्षित निवेश से जुड़े अन्य संस्थाओं की जांच सीबीआई कर रही है, लेकिन पावर कारपोरेशन या ट्रस्ट बोर्ड की बैठक से सीबीआई को बिजली कर्मियों के मामले में जांच की अनुमति नहीं दी जा रही है। जांच होने पर कई बड़े अफसर फंस सकते हैं। इसीलिए ट्रस्टियों को बाहर का रास्ता दिखाया गया है।

बोर्ड की बैठक में बार-बार उठाए जा रहे सवालों से बचने के लिए यह कदम उठाया गया है। ऐसा कहना हटाए गए कार्मिक ट्रस्टी जय प्रकाश और चंद्रभूषण उपाध्याय का है। सूत्रों के मुताबिक कर्मचारियों की गाढ़ी कमाई से खिलवाड़ की आशंका भी जताई गयी है। ट्रस्टियों ने मीडिया के लिए बयान जारी करते हुए कहा है कि पूर्व में हुए अरबों रुपये घोटाले की जांच को प्रभावित करने की मंशा से निर्वाचित ट्रस्टियों को अवैधानिक तरीके से हटाया गया है।

कहा, 35 हजार सीपीएफ खाताधारकों के भविष्य के साथ पुन: खिलवाड़ की आशंका

ट्रस्ट के नियमों व कानूनों का उल्लंघन करते हुए निर्वाचित ट्रस्टियों के स्थान पर अन्य कार्मिकों को ट्रस्टी नामित किया गया है। इससे ऐसा प्रतीत होता है कि ट्रस्ट में 35 हजार सीपीएफ खाताधारकों के भविष्य के साथ  पुन: खिलवाड़ किया जा सकता है। यह खाता धारकों के लोकतांत्रिक अधिकार का हनन है। मांग की है कि ट्रस्ट में अवैधानिक रूप से नामित किए गए कार्मिक ट्रस्टीज के आदेश को तत्काल निरस्त किए जाए।

डीएचएफएल में निवेश का फैसला किसका, टाल रहे चेयरमैन

हटाए गए ट्रस्टी जय प्रकाश  के मुताबिक 2004 में ट्रस्ट के गठन के बाद से अक्तूबर 2020 तक नियमों से इतर असंवैधानिक तरीके से ट्रस्ट का संचालन किया गया। जिसके कारण ट्रस्ट में बड़े पैमाने पर अनियमितता और भ्रष्टाचार सामने आया। इस मामले में सीबीआई जांच की कार्यवाही के साथ ही उच्चतम न्यायालय में वाद की कार्यवाही प्रक्रियाधीन है द्य उनके द्वारा ट्रस्ट बोर्ड की बैठक में दो बार इस मुद्दे को उठाया गया कि डीएचएफएल में कर्मचारियों की संचित निधि का निवेश करने का फैसला किसका था, दोनों बार चेयरमैन ने इसे अगली बैठक के नाम पर टाल दिया।

अभी भी फंसी है 1770 करोड़ की गाढ़ी कमाई

पूर्व में निर्वाचित बोर्ड नहीं होने के कारण कर्मचारियों के सीपीएफ का करीब 4200 करोड़ डीएचएफएल में निवेश किया गया था। सरकार की कोशिशों से डीएचएफएल में निवेश कराया गया करीब 2430 करोड़ रुपये वापस आया था। अब भी करीब 1770 करोड़ रुपये डीएचएफएल में फंसा है। ये धन दाऊद के सहयोगी इकबाल मिर्ची की कंपनी सनब्लिंक में भी गया है।

तीन आईएएस का रसूख, सीबीआई बेबस, जांच थमी 

पावर कार्पोरेशन के तकरीबन 40 हजार कर्मियों की गाढ़ी कमाई डूबने की जांच सीबीआई के हवाले है। लेकिन सरकार ने तत्कालीन चेयरमैन संजय अग्रवाल, आलोक कुमार और एमडी रहीं अपर्णा यू के खिलाफ सीबीआई को जांच आगे बढ़ाने की मंजूरी नहीं दी थी। आलोक फिलहाल केंद्रीय बिजली सचिव के पद पर हैं। वहीं संजय अग्रवाल केंद्रीय कृषि सचिव के पद से रिटायर हुए हैं और अपर्णा एनएचएम में मिशन निदेशक हैं। फिलहाल पीएफ घोटाले में डीएचएफएल के प्रमोटर्स वाधवन बंधुओं की जमानत हो चुकी है। साथ ही पीएफ घोटाले की जांच ठन्डे बस्ते में है।

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