संपादक की कलम से: खेल भावना पर आघात

Sandesh Wahak Digital Desk : क्रिकेट के विश्व कप में एक नया रिकॉर्ड बना है। बांग्लादेश के कप्तान शाकिब अल हसन ने श्रीलंकाई बल्लेबाज एंजेलो मैथ्यूज के खिलाफ टाइम आउट की अपील की और अंपायर ने नियमों के मुताबिक उन्हें आउट करार दे दिया। भले ही यह नियमानुसार किया गया लेकिन इससे पूरी खेल भावना को आहत किया है। खतरा यह भी है कि आने वाले दिनों में क्रिकेट जगत में यह नियम परंपरा न बन जाए और खिलाड़ी अपने विरोधियों के खिलाफ इसका प्रयोग करते नजर आएं।

सवाल यह है कि : 

  • क्या खेल में वाजिब कारणों के चलते हुई देरी पर भी इस नियम का फायदा उठाया जाना चाहिए था?
  • क्या खेल में इस प्रकार की दुर्भावना को जगह दी जानी चाहिए?
  • क्या बांग्लादेश के कप्तान ने यह जानबूझकर किया?
  • क्या हेलमेट को बदलने में देरी पर किसी खिलाड़ी को आउट करार देने के नियम में फेरबदल किए जाने की जरूरत नहीं है?
  • क्या विश्व कप जैसी गरिमामय प्रतियोगिता में इस प्रकार से खेल भावना को कुचला जाना चाहिए?
  • क्या इस फैसले ने क्रिकेट जगत को गहरा जख्म नहीं दिया है?

क्रिकेट के जिस नियम का शिकार श्रीलंकाई बल्लेबाज एंजेलो मैथ्यूज हुए उसने अपने पीछे बड़े सवाल खड़े कर दिए हैं। दरअसल, बांग्लादेश व श्रीलंका के बीच हुए मुकाबले के दौरान सदीरा समारविक्रमा के आउट होने के बाद मैथ्यूज क्रीज पर पहुंचे। जब वे अपना हेलमेट लगा रहे थे तो उसकी स्ट्रैप टूट गई। इस पर उन्होंने ड्रेसिंग रूम से दूसरा हेलमेट मंगवाया।

नियमों के चलते मैथ्यूज हुए आउट

यही नहीं उन्होंने फील्ड में हेलमेट की टूटी स्ट्रैप बंग्लादेशी खिलाड़ियों और अंपायर को दिखाई। नया हेलमेट आने पर दो मिनट से अधिक का समय लग गया और खेल भावना को दरकिनार करते हुए बंग्लादेश के कप्तान ने नियमों का फायदा उठाते हुए मैथ्यूज को टाइम आउट करने की अपील अंपायर से की। नियम के मुताबिक यदि कोई खिलाड़ी दो मिनट के भीतर नयी गेंद का सामना करने के लिए नहीं आता है तो उसे टाइम आउट करार दे दिया जाता है।

अंपायर को नियम के मुताबिक मैथ्यूज को आउट देना पड़ा। इसके साथ ही क्रिकेट की सबसे बड़ी प्रतिस्पर्धा में खेल भावना को कुचल दिया गया। इससे करोड़ों क्रिकेट प्रेमियों को आघात पहुंचा है। यदि मैथ्यूज जानबूझकर देरी करते तो इसे स्वीकार भी किया जा सकता था लेकिन वाजिब कारण के चलते कुछ मिनट की देरी पर इस प्रकार की अपील बेहद क्षुब्ध करने वाली रही।

दूसरे, यदि किसी बॉलर के जूते के फीते टूट जाए तो क्या उसे भी बाहर बैठाने का नियम भी बनाया जाना चाहिए? 2006-07 में न्यूलैंड्स में एक टेस्ट मैच के दौरान साउथ अफ्रीका के तत्कालीन कप्तान ग्रीम स्मिथ ने सचिन के खिलाफ खेल भावना का ध्यान रखते हुए टाइम आउट की अपील नहीं की थी जबकि वे क्रीज पर देरी से पहुंचे थे। साफ है इस पर खिलाडिय़ों और क्रिकेट बोर्ड को फिर से सोचना होगा क्योंकि बिना खेल भावना के खेलों का कोई मतलब नहीं रह जाएगा।

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