संपादक की कलम से : ईवीएम पर मुहर के मायने

Sandesh Wahak Digital Desk: सुप्रीम कोर्ट ने वीवीपैट की सौ फीसदी पर्चियों के मिलान और बैलेट पेपर से चुनाव कराने की मांग वाली याचिकाओं को खारिज कर दिया। इसके पहले सुनवाई के दौरान पीठ ने याचिकाकर्ताओं से कहा था कि उन्हें मालूम है कि जब बैलेट पेपर से चुनाव होते थे तो क्या होता था। सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले को जहां विपक्ष के लिए झटका माना जा रहा है वहीं यह चुनाव आयोग के लिए राहत की बात है क्योंकि विपक्ष ईवीएम को लेकर चुनाव आयोग को लगातार निशाने पर ले रहा था।

सवाल यह है कि :

  • क्या अब ईवीएम और चुनाव आयोग की कार्य प्रणाली पर सवाल उठने बंद हो जाएंगे?
  • क्या ईवीएम के जरिए चुनाव में धांधली के आरोप सियासी फायदे के लिए उठाए जा रहे थे?
  • क्या पुराने बैलेट पेपर से चुनाव का राग अलापना बंद होगा?
  • क्या सुप्रीम कोर्ट के फैसले से सियासी दल कोई सबक लेंगे और संवैधानिक संस्थाओं की साख को दांव पर लगाने वाली अपनी प्रवृत्ति पर अंकुश लगाएंगे?

ईवीएम यानी इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन से होने वाले चुनाव पर पिछले एक दशक से अधिक सवाल उठाए जाने लगे हैं। विपक्षी दल न केवल सत्ताधारी दल भाजपा बल्कि चुनाव आयोग पर भी ईवीएम को लेकर निशाना साधते रहे हैं। वे सार्वजनिक मंचों से कहते थे कि ईवीएम में धांधली कर चुनाव जीते जा रहे हैं। ईवीएम को हैक करने की बातें जोर-शोर से उठायी गयीं।

सुप्रीम कोर्ट ने खारिज की याचिकाएं

हालांकि चुनाव आयोग ने इस पर सभी दलों को बुलाया था और ईवीएम हैक कर दिखाने की चुनौती दी थी लेकिन किसी भी दल ने इस चुनौती को स्वीकार नहीं किया। बावजूद इसके विदेशों में बैलेट पेपर से चुनाव कराए जाने के तर्क के साथ यहां भी इस पद्धति से चुनाव कराने की मांग को लेकर सुप्रीम कोर्ट में याचिकाएं दायर की गयी थीं। कोर्ट ने इन याचिकाओं को खारिज कर दिया है। दरअसल, ईवीएम को मतदान के लिए निष्पक्ष चुनाव कराने के लिए प्रयोग में लाया गया था क्योंकि बैलेट पेपर से चुनाव कराने के दौरान बैलेट पेपर को लूटने व बूथ कैप्चरिंग जैसी घटनाएं होती थी।

इससे निष्पक्ष चुनाव पर सवाल उठते थे। हालांकि जब ईवीएम से चुनाव की प्रक्रिया शुरू हुई तब इस पर अधिक सवाल नहीं उठाए गए लेकिन जैसे ही भाजपा केंद्र की सत्ता में आयी इस पर विपक्ष ने सवाल उठाने शुरू कर दिए और हर चुनाव के बाद आयोग और ईवीएम में धांधली की बातें सार्वजनिक मंच से की जाने लगी है।

अब जब सुप्रीम कोर्ट ने यह फैसला सुना दिया है तो एक बात साफ हो चुकी है कि अब देश में बैलेट पेपर से चुनाव का युग इतिहास बन चुका है और वह दौर वापस नहीं आने वाला है। दूसरा इसने चुनाव आयोग पर निशाना साधने वाले सियासी दलों को भी आईना दिखा दिया है। साथ ही ईवीएम से चुनाव पर अपनी मुहर लगा दी है। साफ है कि इस फैसले का असर भारत की सियासत में दूर तक पड़ेगा और लोकसभा चुनाव के दौरान भाजपा इसे लेकर विपक्ष पर हमलावर दिखेगी।

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