संपादक की कलम से: पवार का पावर गेम

राजनीति के मंझे हुए खिलाडिय़ों में शुमार किए जाने वाले दिग्गज नेता शरद पवार (Sharad Pawar) ने अपनी पार्टी में पावर फ्रंट लाइन में युवा पीढ़ी को अहम जिम्मेदारी सौंपी है।

Sandesh Wahak Digital Desk: राजनीति के मंझे हुए खिलाडिय़ों में शुमार किए जाने वाले दिग्गज नेता शरद पवार (Sharad Pawar) ने अपनी पार्टी में पावर फ्रंट लाइन में युवा पीढ़ी को अहम जिम्मेदारी सौंपी है। महाराष्ट्र के साथ ही देश की राजनीति में खासा दखल रखने वाले इस नेता ने दो नए कार्यकारी अध्यक्षों की घोषणा करके नई पीढ़ी को नेतृत्व सौंपने की प्रक्रिया आगे बढ़ाई।

पवार ने अपनी बेटी सुप्रिया सुले को पार्टी का कार्यकारी अध्यक्ष बनाने के साथ महाराष्ट्र जैसे अहम राज्य का प्रभारी भी बनाया। वहीं प्रफुल्ल पटेल भी कार्यकारी अध्यक्ष बनाए गए हैं, जो पवार परिवार के नहीं हैं। इसके साथ उनको दूसरे राज्यों की जिम्मेदारी दी गई है, जहां पर एनसीपी का अस्तित्व अभी कुछ खास नहीं है।

अजीत से ऊपर सुप्रिया, अतिरिक्त जिम्मेदारी भी नहीं

खास बात यह है कि सुप्रिया सुले को पार्टी की केंद्रीय चुनाव समिति की कमान भी दी गई है। कुल मिलाकर देखा जाए तो इसमें संदेह की कोई गुंजाइश नहीं है कि इन फैसलों के जरिए पार्टी अध्यक्ष शरद पवार ने सुप्रिया सुले को सबसे अहम भूमिका सौंपी है। इन्हीं फैसलों का दूसरा और उतना ही अहम पक्ष यह है कि पवार के भतीजे और हाल तक उनके उत्तराधिकारी के रूप में देखे जा रहे अजित को कोई अतिरिक्त जिम्मेदारी नहीं दी गई है। हालांकि महाराष्ट्र विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष का महत्वपूर्ण पद उनके पास पहले से है और पार्टी के महाराष्ट्र से जुड़े मामलों में सबसे मजबूत आवाज भी उन्हीं की मानी जाती है। लेकिन अब सुप्रिया सुले के महाराष्ट्र प्रभारी बनने के बाद इन मामलों में भी उन्हें सुले को ही रिपोर्ट करना पड़ेगा। निश्चित रूप से यह उनके लिए कोई अच्छी स्थिति नहीं मानी जा सकती।

अजीत ने नहीं दी कोई प्रतिक्रिया, लेकिन क्यों?

सुप्रिया सुले का दर्जा स्पष्ट रूप से अजित से ऊपर हो गया है। इसके बावजूद अजित पवार ने किसी तरह के असंतोष या नाराजगी के संकेत नहीं दिए हैं, जिससे ऐसा लगता है कि कम से कम तत्काल उनकी तरफ से इस फैसले को कोई चुनौती नहीं दी जाने वाली। इससे पहले चली उस कवायद की भी सार्थकता साबित होती है, जो शरद पवार के इस्तीफे की घोषणा के रूप में सामने आई और फिर नेताओं, कार्यकर्ताओं के दबाव में उसे वापस लेने के साथ समाप्त हुई थी।

अजीत पवार हुए कमजोर!

उस कवायद ने पार्टी पर सीनियर पवार की पकड़ को फिर से इतना मजबूत बना दिया कि वह बगैर किसी आशंका के इन बड़े फैसलों की घोषणा कर सके। हालांकि इसका मतलब यह नहीं माना जा सकता कि पार्टी में अजित पवार कमजोर पड़ गए हैं। राज्य में आज भी संगठन पर उनका दबदबा कायम है।

पार्टी का भविष्य और महाराष्ट्र में काफी हद तक विपक्ष का प्रदर्शन भी इस बात पर निर्भर करेगा कि सुप्रिया सुले को पार्टी ने जो भूमिका सौंपी है, उसे वह कितनी कुशलता से अंजाम दे पाती हैं और इस क्रम में अजित पवार से उनका कितना और कैसा तालमेल बन पाता है।

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