संपादक की कलम से: पानी की किल्लत खतरे की घंटी

Sandesh Wahak Digital Desk: भीषण गर्मी के बीच कई राज्यों में पेयजल की किल्लत शुरू हो गयी है। हैंडपंप  से लेकर झीलों तक के पानी का स्तर लगातार घट रहा है। भूगर्भ जल के अंधाधुंध दोहन से जल स्तर हर साल नीचे जा रहा है। इसका परिणाम यह हुआ है कि कई इलाके डार्क जोन की श्रेणी में पहुंच गए हैं और कुछ पहुंचने की कगार पर हैं।

सवाल यह है कि :

  • बेहतर मानसून के बावजूद देश में पेयजल की किल्लत क्यों है?
  • भूगर्भ जल स्तर लगातार घटता क्यों जा रहा है?
  • जल संरक्षण को लेकर कोई ठोस योजना जमीन पर क्यों नहीं उतारी जा रही है?
  • पानी की बर्बादी को रोकने के प्रयत्न सरकारी और गैर सरकारी स्तर पर क्यों नहीं किए जा रहे हैं?
  • क्या बिना जन जागरूकता के इस समस्या का स्थायी किया जा सकता है?
  • क्या प्रकृति केंद्रित विकास नहीं होने के कारण हालात बिगड़ रहे हैं?
  • सियासी दलों के एजेंडे में जल संरक्षण का मुद्दा क्यों नहीं है?
  • क्या लगातार बढ़ रही पेयजल की किल्लत भावी पीढिय़ों के लिए खतरे की घंटी है?

यूपी समेत देश के कई राज्यों में हर बार गर्मी के दिनों में पेयजल का संकट गहरा जाता है। इसके लिए कोई एक कारण जिम्मेदार नहीं है। दरअसल, देश में हो रहे अंधाधुंध विकास कार्य प्रकृति केंद्रित नहीं होने के कारण ये हाल हो रहा है। विकास कार्यों के नाम पर जंगल और पहाड़ों को काटा जा रहा है। इसके चलते वर्षा जल को संरक्षित करने वाले पेड़ कम होते जा रहे हैं। इन पेड़ों की जड़ों से होकर पानी भूगर्भ में पहुंचता है लेकिन जंगलों के कम होने के कारण हालात खराब हो गए हैं।

पोखर, कुंए और तालाबों की संख्या भी लगातार कम हो रही

वहीं सरकार ने वर्षा जल संरक्षण के लिए रेन वाटर हार्वेस्टिंग सिस्टम से इमारतों को लैस करने का फरमाना जरूर सुनाया लेकिन इसका पालन खुद सरकारी विभाग नहीं कर रहे हैं। दूसरी ओर इस वर्षा जल को संरक्षित करने वाले पोखर, कुंए और तालाबों की संख्या भी लगातार कम हो रही है। कई तालाब और पोखर पर कब्जा कर बड़ी-बड़ी इमारतें बना दी गयी हैं।

जाहिर है एक ओर जल संरक्षण नहीं हो रहा है दूसरी ओर भूगर्भ जल का अंधाधुंध दोहन किया जा रहा है। कई शहरों में लोग सब मर्सिबल पंपों से लाखों गैलन पानी रोज जमीन से निकाल रहे हैं। इसके अलावा फिल्टर पानी का कारोबार चल रहा है। यह कारोबार भी भूगर्भ जल पर टिका है। इस कारोबार में तमाम लोग अवैध तरीके से घुसे हैं। वे बिना किसी अनुमति पानी का धंधा चला रहे हैं। इसके अलावा सिंचाई के लिए भी इसका जमकर इस्तेमाल किया जा रहा है।

ऐसे में स्थितियां लगातार विकट होती जा रही हैं। यदि सरकार वाकई पेयजल संकट को दूर करना चाहती है तो उसे एक ओर जनता को इसके प्रति जागरूक करना होगा दूसरी ओर जल संरक्षण के लिए बनायी गयी कार्ययोजना को जमीन पर तत्काल उतारना होगा। वर्षा जल संरक्षण के लिए जंगलों का दायरा बढ़ाना होगा और शहरों में रेन वाटर हार्वेस्टिंग सिस्टम को कड़ाई से लागू करना होगा।

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