संपादक की कलम से : मुकदमों पर सुप्रीम कोर्ट की चिंता

Sandesh Wahak Digital Desk : भारत के मुख्य न्यायाधीश डी.वाई.चंद्रचूड़ ने न्यायिक प्रक्रिया में अधिवक्ताओं द्वारा मुकदमों में स्थगन के अनुरोध पर गंभीर चिंता जताई है। उन्होंने साफ कर दिया है कि पहले मुकदमों को सूचीबद्ध करने की जल्दबाजी की जाती है और फिर इसकी सुनवाई को टालने की लगातार कोशिश की जाती है। आंकड़ों के जरिए सीजेआई ने न्यायिक प्रक्रिया में शामिल अधिवक्ताओं को न केवल आईना दिखाया बल्कि यह भी कहा कि इससे आम आदमी का अदालतों से भरोसा उठ जाएगा।

सवाल यह है कि :- 

  • क्या सीजेआई की इस चिंता से अदालतों की कार्यप्रणाली में कोई परिवर्तन आएगा?
  • क्या सुनवाई टालने की प्रवृत्ति पर अंकुश लग सकेगा?
  • क्या आम आदमी को जल्द न्याय मिलने की उम्मीद बंधेगी?
  • क्या मुकदमों की अवधि सीमा तय किए बिना स्थितियों में सुधार हो सकता है?
  • क्या गाइडलाइन बनाए बिना स्थितियों में आमूल बदलाव आ सकता है?
  • क्या इस मामले में न्यायिक प्रणाली से जुड़े लोग सहयोग करेंगे?

भारत की अदालतें मुकदमों के बोझ से दबी जा रही है। हालांकि सुप्रीम कोर्ट इन मुकदमों की संख्या घटाने की लगातार कोशिश कर रहा है। खुद सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश इसके लिए न केवल चिंता जताते रहे हैं बल्कि न्यायिक प्रणाली से जुड़े अधिवक्ता से सहयोग की अपील भी करते रहे हैं। हाल में उन्होंने मुकदमों की सुनवाई टालने की प्रवृति पर सवाल उठाए हैं।

हालांकि केवल सुनवाई टालने से ही नहीं बल्कि अदालतों में न्यायाधीशों की संख्या में कमी भी केसों को जल्द निस्तारित करने में आड़े आ रही है। निचली से लेकर उच्च न्यायालयों तक में न्यायाधीशों की संख्या कम है। इसके अलावा केसों के सापेक्ष अदालतों की संख्या भी पर्याप्त नहीं है। दीवानी केसों की संख्या सबसे अधिक है।

केस को निपाटने में वर्षों का समय भी लग जाते हैं

हालत यह है कि इन केसों को निपटाने में वर्षों लग जाते हैं। कुछ केस तो कई पीढिय़ों तक चलते हैं और व्यक्ति को न्याय मिलने में काफी देरी होती है। हालांकि सरकार ने आपराधिक मामलों को जल्द निपटाने के लिए फास्ट ट्रैक अदालतें स्थापित की हैं लेकिन यह भी पर्याप्त साबित नहीं हो रही है। इसका फायदा अपराधी उठाते हैं। दीवानी मामलों में तारीख-पर-तारीख की परंपरा बन चुकी है। केस की सुनवाई समय से नहीं हो पाती है, लिहाजा निष्कर्ष यानी फैसला भी समय पर नहीं मिल पाता है।

बावजूद इसके सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश की इस चिंता पर विचार करने की जरूरत है कि अधिवक्ता बहुत जरूरी होने पर ही मुकदमों में स्थगन का अनुरोध करें। वे जानते हैं कि यदि यही हाल रहा तो लोगों का अदालतों पर से विश्वास हिल जाएगा और यह स्थिति भारतीय न्यायपालिका के लिए ठीक नहीं होगा। जाहिर है, संस्थाएं अकेले नहीं चल सकती हैं। इसके लिए न्यायप्रणाली से जुड़े हर व्यक्ति को प्रतिबद्ध होना होगा। यदि सुनवाई नहीं टाली जाती है तो निश्चित रूप से इसका केसों के निपटारे पर असर पड़ेगा और लोगों को वक्त पर न्याय मिल सकेगा।

Also Read : मंडी परिषद : राम विलास यादव के भर्ती…

Get real time updates directly on you device, subscribe now.