संपादक की कलम से: रेल हादसों से सबक कब?

Sandesh Wahak Digital Desk : देश में चार माह पूर्व दो जून को बालासोर में हुए भीषण रेल हादसे के बाद बिहार के रघुनाथपुर में नॉर्थ ईस्ट एक्सप्रेस दुर्घटनाग्रस्त हो गयी। इसमें ट्रेन की 21 बोगिया पटरी से उतर गई। हादसे में चार यात्रियों की मौत हो गयी जबकि कई दर्जन घायल हो गए। सरकार ने एक बार फिर दुर्घटना की जांच के आदेश और पीड़ितों को मुआवजा देने का ऐलान किया है।

सवाल यह है कि :-

  • तमाम सुरक्षा दावों के बावजूद रेल हादसे थम क्यों नहीं रहे हैं?
  • तकनीकी खामियों को समाप्त क्यों नहीं किया जा रहा है?
  • क्या रेलवे केवल टिकट बेचने का साधन भर बनकर रह गया है?
  • यात्रियों की मौतों का जिम्मेदार कौन है?
  • क्या यात्रियों के जीवन की सुरक्षा की जिम्मेदारी रेलवे की नहीं है?
  • रेल संचालन में लापरवाही क्यों बरती जा रही है?
  • क्या मंत्रालय और सरकार की उदासीनता के कारण हालात खराब हो रहे हैं?
  • क्या पटरियों के नवीनीकरण और देखभाल में अभी सुधार की बहुत जरूरत है?

भारतीय रेल 13 हजार से अधिक सवारी गाडिय़ां चलाती है। इसमें रोजाना लाखों यात्री सफर करते हैं। ये यात्री देश के एक कोने से दूसरे कोने तक जाते हैं। ऐसे में यात्री ट्रेनों का हादसाग्रस्त होना बेहद चिंताजनक हैं। हालांकि रेलवे लगातार रेलों के संचालन को सुरक्षित व आधुनिक तकनीक से लैस करने के दावे करता रहता है। ऐसे में रेलों का पटरियों से उतरना इसके रख-रखाव पर सवालिया निशान लगाता है। ट्रेनों की संख्या के सापेक्ष रेल पटरियों का विस्तार नहीं हो पा रहा है।

इसके कारण इनकी देखभाल और मरम्मत में लापरवाही बरती जा रही है। इसका सीधा असर रेल संचालन पर पड़ता है और कई बार रेल पटरी से उतर जाती है। अभी भी पुराने तरीकों में बदलाव नहीं किया गया है जबकि वंदे भारत जैसी ट्रेनें संचालित की जा रही हैं।

सरकार ने रेलवे प्रबंधन सेवा में सबको समाहित कर दिया

रेलवे में एकरूपता लाने के नाम पर सरकार ने रेलवे प्रबंधन सेवा में सबको समाहित कर दिया है। पहले जो विशेषज्ञ सेवाएं थीं, उसको खत्म कर दिया गया है। इसका सीधा असर रेल संचालन पर पड़ा है। वहीं रेलवे में काफी संख्या में पद रिक्त हैं। इससे रेलवे के पास जरूरी मानव संसाधन की कमी बनी हुई है। रेलवे में सुधार के लिए तमाम कमेटियों की रिपोर्ट ठंडे बस्ते में पड़ी हैं। सुरक्षा मानकों की दृष्टि से भी जरूरी कदम नहीं उठाए जा सके हैं। इन सबका नतीजा बालासोर और रघुनाथपुर दुर्घटनाएं हैं।

साफ है स्थितियां विकट होती जा रही हैं। यह रेलवे के लिए गंभीर चिंता का विषय है। अधिकांश लोग आज भी लंबी दूरी की यात्रा रेल से करना पसंद करते हैं क्योंकि वे इसे अधिक सुरक्षित मानते हैं लेकिन यदि ऐसे ही हादसे होते रहे तो रेलवे की व्यवस्था पर सवाल उठेंगे। इससे रेलवे और सरकार की साख प्रभावित होगी। वहीं यात्री दूसरे साधनों के इस्तेमाल पर जोर देंगे। साफ है यदि सरकार रेल यात्रा को सुरक्षित बनाना चाहती है तो उसे इन समस्याओं का त्वरित समाधान करना होगा और यात्रियों को सुरक्षित यात्रा का भरोसा देना होगा।

Also Read : संपादक की कलम से : सुप्रीम कोर्ट की चिंता

Get real time updates directly on you device, subscribe now.