संपादक की कलम से: कोर्ट की सुरक्षा दरकिनार क्यों?

लखनऊ के एससी-एसटी कोर्ट में कुख्यात संजीव माहेश्वरी उर्फ जीवा की हत्या ने एक बार फिर उत्तर प्रदेश की अदालतों और पुलिस अभिरक्षा में आरोपी की सुरक्षा पर सवाल खड़े कर दिए हैं।

Sandesh Wahak Digital Desk: लखनऊ के एससी-एसटी कोर्ट में कुख्यात संजीव माहेश्वरी उर्फ जीवा की हत्या ने एक बार फिर उत्तर प्रदेश की अदालतों और पुलिस अभिरक्षा में आरोपी की सुरक्षा पर सवाल खड़े कर दिए हैं। इसके पहले भी प्रदेश की कई अदालतों में इस तरह की वारदातें हो चुकी हैं और हर बार की तरह इस बार भी पुलिस ने अदालतों में सुरक्षा के कड़े इंतजाम करने के वादे किए हैं। फिलहाल अदालतों की सुरक्षा कड़ी कर दी गई है लेकिन जीवा की हत्या ने अपने पीछे कई सवाल छोड़े हैं।

सवाल यह है कि…

  • हाईकोर्ट के आदेश और गाइडलाइन के बाद भी अदालतों की सुरक्षा पुख्ता क्यों नहीं की गई?
  • पुलिस अभिरक्षा में आरोपियों की हत्याएं कैसे हो रही हैं?
  • क्या अपराधियों के मन से पुलिस का डर समाप्त हो चुका है?
  • खुफिया तंत्र को वारदात की भनक क्यों नहीं लग सकी?
  • क्या बिना पुख्ता प्लान के भरी अदालत में गैंगस्टर को निशाना बनाया जा सकता था?
  • क्या अपराध के खिलाफ सरकार की जीरो टॉलरेंस की नीति बेअसर हो गई है?
  • क्या न्यायाधीशों और अधिवक्ताओं की सुरक्षा की जिम्मेदारी सरकार की नहीं है?

पुलिस की कार्यप्रणाली पर भी उठे सवालिया निशान

पिछले कुछ वर्षों से प्रदेश में अपराधी अपने विरोधी की पुलिस अभिरक्षा और अदालत परिसर में हत्याएं कर रहे हैं। हाल में मीडियाकर्मी बनकर आए तीन युवकों ने माफिया अतीक अहमद और उसके भाई अशरफ को पुलिस अभिरक्षा में ताबड़तोड़ गोलियां बरसाकर मौत के घाट उतार दिया था। इसी तर्ज पर वकील का भेष धरकर आए हमलावरों ने लखनऊ कोर्ट में पेशी पर आए कुख्यात संजीव माहेश्वरी उर्फ जीवा को पुलिस अभिरक्षा में मार गिराया। इस हमले में एक बच्ची और दो पुलिस वाले भी घायल हुए। अदालतों में इस प्रकार की बढ़ती वारदातों ने पुलिस की कार्यप्रणाली पर सवालिया निशान लगा दिए हैं।

कोर्ट में नहीं होते सुरक्षा के पुख्ता इंतज़ाम

सच यह है कि अदालतें कभी भी पुलिस के सुरक्षा के एजेंडे में नहीं रही हैं। अधिवक्ता और जजों की सुरक्षा पर फोकस नहीं किया जाता है। हैरानी की बात यह है कि कोर्ट में कोई भी व्यक्ति आसानी से असलहा लेकर घुस जाता है और घटना को अंजाम दे देता है। सुरक्षा के मद्देनजर कोई चेकिंग नहीं होती है। अपराधी इसी का फायदा उठा रहे हैं।

न्याय के मंदिर की गरिमा हो जाएगी तार-तार

अदालतों की सुरक्षा को लेकर जारी हाईकोर्ट के आदेश को भी दरकिनार कर दिया गया है। जाहिर है जिस तरह अदालतें असुरक्षित होती जा रही है, वह बेहद गंभीर चिंता का विषय है। यदि इस मामले को गंभीरता से नहीं लिया गया तो हालात बदतर हो जाएंगे और अदालतें आपसी रंजिश और गैंगवार का नया अड्डा बनकर रह जाएंगी। न्याय के मंदिर की गरिमा तार-तार हो जाएगी। यही नहीं पुलिस को भी इस बात का जवाब देना होगा कि उनकी सुरक्षा में भी आरोपी सुरक्षित क्यों नहीं है।

सरकार को चाहिए कि वह तत्काल अदालतों की सुरक्षा को पुख्ता करे और पुलिस अभिरक्षा में हत्या की वारदातों को रोकने के लिए फुलप्रूफ प्लान तैयार करे।

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