Mission 2024: सियासी जोखिम लेने के मूड में नहीं नजर आ रही भाजपा

बृजभूषण मामले ने भाजपा के माथे पर चिंता की लकीरें खींच दी हैं। मिशन (Mission 2024) से पहले सिर्फ निकाय चुनावों में ही जाटों ने अपनी अहमियत भाजपा को पूरी तरह समझाते हुए सपा और रालोद से करीबी का एहसास करा दिया।

Sandesh Wahak Digital Desk: बृजभूषण मामले ने भाजपा के माथे पर चिंता की लकीरें खींच दी हैं। मिशन (Mission 2024) से पहले सिर्फ निकाय चुनावों में ही जाटों ने अपनी अहमियत भाजपा को पूरी तरह समझाते हुए सपा और रालोद से करीबी का एहसास करा दिया। रविवार को दिल्ली में भाजपा के शीर्ष नेतृत्व संग होने वाली मुख्यमंत्रियों और उप मुख्यमंत्रियों की बैठक में इस मुद्दे पर सबसे पहले गंभीर मंथन होना तय है।

दरअसल भाजपा ने हाल ही में हुए निकाय चुनाव में जाट बहुल जिलों में 56 नगरपालिका अध्यक्ष सीटों में से केवल 20 और 124 नगर पंचायत अध्यक्ष सीटों में से 34 सीटें जीतीं। भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष भूपेंद्र सिंह चौधरी भी जाट समुदाय से हैं। निकाय चुनाव में उनका क्षेत्र मुरादाबाद हो या पार्टी सांसद संजीव बालियान का मुजफ्फरनगर या फिर सांसद सत्यपाल सिंह का क्षेत्र बागपत, भाजपा की उम्मीदें हर जगह टूटीं। इन क्षेत्रों में रालोद और उसकी सहयोगी समाजवादी पार्टी के बेहतर प्रदर्शन ने भाजपा के शीर्ष नेतृत्व के माथे पर शिकन इसलिए भी गहरी की, क्योंकि पहलवानों की नाराजगी का असर मिशन 2024 (Mission 2024) के तहत चार राज्यों में भी देखा जा सकता है।

जाटों की नाराजगी भाजपा को पड़ेगी भारी

इसी के मद्देनजर भाजपा के शीर्ष नेतृत्व के इशारे पर केंद्रीय मंत्री अनुराग ठाकुर ने पहलवानों संग बैठक करके उन्हें आश्वस्त किया था कि उनके खिलाफ दर्ज एफआईआर वापस ली जायेगी। नतीजतन 15 जून तक पहलवानों का प्रदर्शन स्थगित किया गया। मौजूदा दौर में जाटों की नाराजगी से भाजपा को सियासी तौर पर काफी नुकसान हो सकता है। उत्तरप्रदेश में खासतौर पर पश्चिम जिलों में जाटों की संख्या अधिक है।

40 लोकसभा सीटों को प्रभावित कर सकते हैं जाट

करीब 12 लोकसभा और लगभग 40 विधानसभा सीटों पर जाटों का यूपी में खास असर है। राजनीतिक रूप से शक्तिशाली जाट कुल मिलाकर लगभग 40 लोकसभा सीटों और 160 विधानसभा सीटों के नतीजों को प्रभावित करने की क्षमता रखते हैं। जाट समुदाय के लोग यूपी, हरियाणा, राजस्थान और दिल्ली तक फैले हुए हैं। जिसको देखते हुए भाजपा किसी भी प्रकार का सियासी जोखिम उठाने के मूड में नहीं है। पिछले साल हुए विधानसभा चुनाव में भी जाटों के बीच आरएलडी को मजबूत स्थिति में देखा गया था। भाजपा ने यादव फैक्टर को कमजोर करने के लिए कभी जाट फैक्टर को आगे किया था। लेकिन आज परिस्थितियां ठीक इसके उलट है।

मुजफ्फरनगर दंगे से पहले भाजपा की तरफ नहीं था झुकाव

2013 के मुजफ्फरनगर दंगे से पहले जाटों का झुकाव भाजपा की तरफ नहीं था। 2014 के लोकसभा चुनाव के बाद जाटों ने अपने नेता अजित सिंह और जयंत चौधरी से मुंह मोड़ लिया। जाटों के भाजपा की तरफ रुख करने के कारण 2017 में हुए यूपी विधानसभा चुनाव में भाजपा के 15 में से 14 प्रत्याशी जीत गए। हालांकि अगले पांच सालों में ही स्थितियां बदल गईं। 2022 के यूपी विधानसभा चुनाव में भाजपा के पास सबसे अधिक 10 जाट विधायक तो हैं, लेकिन आरएलडी और सपा ने क्रमश: चार और तीन विधायकों के साथ पहले से अपनी स्थिति और बेहतर कर ली। चरण सिंह द्वारा बनाए राजनीतिक आधार का इस्तेमाल सबसे पहले सपा सुप्रीमो मुलायम सिंह ने किया था।

चरण सिंह के बाद कोई जाट यूपी में सीएम नहीं बना

चौधरी चरण सिंह दो बार यूपी के सीएम बने। उनकी पूछ सिर्फ जाटों में नहीं बल्कि अन्य जातियों और मुसलमानों में भी थी। वो 1979-80 में करीब-करीब छह महीने के लिए भारत के प्रधानमंत्री भी बने। चरण सिंह का मई 1987 में निधन हो गया और उनके बाद कोई भी जाट यूपी का सीएम नहीं बन सका।

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