आयुष घोटाला : करोड़ों की मनी लांड्रिंग के बावजूद ईडी अफसरों की चुप्पी

घूसखोरी में पूर्व मंत्री धर्म सिंह सैनी व अपर मुख्य सचिव रहे प्रशांत त्रिवेदी का नाम आने के बाद बदले सुर

Sandesh Wahak Digital Desk : यूपी सरकार ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया और उत्तरप्रदेश के आयुष कॉलेजों में दाखिला फर्जीवाड़े की जांच सीबीआई के हाथों में जाने से रुकवा दी गयी। लेकिन इस घोटाले में जिन बड़े भ्रष्टों ने करोड़ों की मनी लांड्रिंग की है, उसकी जांच प्रवर्तन निदेशालय(ईडी) ने अभी तक नहीं शुरू की है। इसका सीधा अर्थ है कि आयुष फर्जीवाड़े में शामिल रसूखदार भ्रष्टों के दबाव ने अपना असर दिखाना शुरू कर दिया है।

CBI
पूर्व मंत्री धर्म सिंह सैनी
आयुष
तत्कालीन प्रमुख सचिव प्रशांत त्रिवेदी

एसटीएफ की चार्जशीट के मुताबिक इस घोटाले में तत्कालीन आयुष मंत्री धर्म सिंह सैनी और अपर मुख्य सचिव डॉ प्रशांत त्रिवेदी ने मिलकर एक करोड़ से ऊपर की घूस कॉलेज संचालकों से ली थी। जिसके बाद पीएमएलए ऐक्ट के प्रावधानों के तहत एसटीएफ की एफआईआर को आधार बनाकर ईडी को तत्काल प्रवर्तन मामला सूचना रिपोर्ट (ईसीआईआर) दर्ज करनी चाहिए थी।

कॉलेज मालिकों ने भी छात्रों से वसूले करोड़ों रुपए

कॉलेज मालिकों ने भी छात्रों से करोड़ों रुपए वसूले हैं। जिसका बड़ा हिस्सा आयुर्वेद कॉलेज के तत्कालीन निदेशक एसएन सिंह समेत बाकी अफसरों में बंटा है। एसटीएफ की जांच में सामने आया कि प्रवेश में फर्जीवाड़ा कर कमाए गए पैसों को आरोपियों ने अलग-अलग जगह निवेश भी कर दिया है। दूसरे मायनों में कहें तो वर्षों से जारी इस खेल के सहारे करोड़ों रुपए कमाने वाले भ्रष्टों ने इन्ही कॉलेजों में काली कमाई निवेश कर रखी है।

तकरीबन 53 सरकारी और आठ सौ से ऊपर निजी कॉलेज इस फर्जीवाड़े में लिप्त बताये जा रहे हैं। सिर्फ यूनानी कॉलेजों की ही साढ़े तीन सौ से अधिक सीटों पर हेराफेरी की गयी। सूत्रों के मुताबिक ईडी के अफसरों ने एफआईआर को मंगा कर मनी लांड्रिंग का केस दर्ज करने की पूरी तैयारी की थी। लेकिन पूर्व मंत्री धर्म सिंह सैनी और रिटायर अपर मुख्य सचिव डॉ प्रशांत त्रिवेदी का नाम घोटाले में आने के बाद ईडी ने भी मानो हाथ पीछे खींच लिए हैं।

तकरीबन 50 करोड़ से ऊपर की वसूली हुई

प्रति छात्र जिन अफसरों और कॉलेजों ने पांच-पांच लाख के जरिये अरबों रूपए की वसूली की कलंक कथा लिखी थी। उनका कहीं कोई पता नहीं है। आरोपियों ने कबूल किया था कि सरकारी कॉलेजों में दाखिले के लिए पांच लाख रुपये और निजी कॉलेजों में दाखिले के लिए दो से ढाई लाख रुपये तय किए गए थे। हालांकि कुछ दाखिलों के एवज में पैसे नहीं मिले थे, बल्कि गिफ्ट लेकर ही काम कर दिया गया था। 50 करोड़ से ऊपर की रकम वसूल की गयी थी।

कई वर्षों से जारी था दाखिलों में खेल

आयुर्वेदिक और होम्योपैथिक की सीटों पर दाखिले बिना अफसरों की मर्जी के नहीं होते थे। आयुष निदेशालय के कर्मियों की तकदीर काली कमाई से बदल चुकी है। एसटीएफ पिछले तीन वर्ष के दौरान हुए आयुष कॉलेजों के दाखिलों की गहराई से जांच करे तो एक और घोटाला बेनकाब होते देर नहीं लगेगी।

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