संपादक की कलम से : ब्रिक्स का विस्तार और भारत

ब्रिक्स के 15वें शिखर सम्मेलन में इसके विस्तार का ऐलान किया गया। इसमें छह नए देशों मिस्र, सऊदी अरब, यूएई, इथियोपिया, अर्जेंटीना व ईरान को शामिल किया गया है...

Sandesh Wahak Digital Desk : ब्रिक्स के 15वें शिखर सम्मेलन में इसके विस्तार का ऐलान किया गया। इसमें छह नए देशों मिस्र, सऊदी अरब, यूएई, इथियोपिया, अर्जेंटीना व ईरान को शामिल किया गया है। ये सभी जनवरी 2024 से आधिकारिक सदस्य होंगे। इसके अलावा सम्मेलन में भारत ने सदस्य देशों को अंतरिक्ष, शिक्षा, दक्षता विकास व तकनीक, स्किल मैपिंग, बिग कैट यानी बाघ व इस परिवार के अन्य जानवरों से संबंधित व पारंपरिक औषधि के क्षेत्र में आपसी सहयोग बढ़ाने की वकालत की। साथ ही नए सहयोगी देशों को सदस्यता देने का भी समर्थन किया।

सवाल यह है कि :-

  1. ब्रिक्स के विस्तार का भारत समेत अन्य सदस्य देशों पर क्या प्रभाव पड़ेगा?
  2. क्या संस्थापक और नए सदस्य देश भारत के आपसी सहयोग के सुझाव पर भविष्य में अमल करेंगे?
  3. क्या इससे दुनिया में भारत का कद बढ़ेगा?
  4. क्या ब्रिक्स में शामिल देशों के बीच जारी विवाद खत्म होंगे?
  5. क्या ब्रिक्स देश डॉलर के समानान्तर अपनी नयी आर्थिक बनाने में सफल हो सकेंगे? 

ब्रिक्स दुनिया की पांच सबसे तेजी से उभरती अर्थव्यवस्था वाले देशों का एक समूह है। इसमें ब्राजील, रूस, भारत, चीन और दक्षिण अफ्रीका शामिल हैं। ब्रिक्स के अंग्रेजी का हर अक्षर एक देश का प्रतिनिधित्व करता है। ब्राजील-बी, आर-रूस, आई-भारत, सी-चीन और एस-दक्षिण अफ्रीका के लिए प्रयोग किया गया है। इस संगठन का उद्देश्य सदस्य देशों के बीच हर क्षेत्र में आपसी सहयोग को बढ़ाना है। अब इसमें छह और देशों की इंट्री हो गयी है।

ब्रिक्स सम्मेलन कमोबेश अपने लक्ष्य में सफल नहीं हो पा रहा

ताजा सम्मेलन में भी आपसी सहयोग पर जोर दिया गया। भारत ने भी कुछ चुनिंदा क्षेत्रों में सहयोग का सुझाव दिया है। बावजूद इसके ब्रिक्स सम्मेलन कमोबेश अपने लक्ष्य में सफल नहीं हो पा रहा है। मसलन चीन-भारत दोनों ही इस संगठन के सदस्य देश हैं लेकिन दोनों के बीच आपसी संबंध बुरी तरह खराब हो चुके हैं। दोनों के बीच सीमा पर हिंसक संघर्ष हो चुके हैं। विस्तारवादी नीति के कारण अन्य देश चीन को शक की निगाह से देखते हैं। सहयोग की जगह दुराव अधिक दिखाई दे रहा है।

ऐसे सम्मेलन आपसी संवाद के लिए जरूरी

नए देश भी अपने राष्ट्रीय हितों से प्रेरित होकर काम करेंगे। ऐसे में सम्मेलन से बहुत उम्मीद नहीं की जा सकती है। हालांकि ऐसे सम्मेलन आपसी संवाद के लिए जरूरी होते हैं और कई बार इससे समस्या का समाधान भी निकल आता है। इसमें दो राय नहीं कि नए देश विभिन्न क्षेत्रों में सहयोग के लिए ब्रिक्स के संस्थापक देशों पर अधिक निर्भर होंगे। हालांकि मिस्र, सऊदी अरब और इरान से अन्य देशों के बीच दोतरफा सहयोग की उम्मीद है। ऐसे में भारत का विभिन्न क्षेत्रों में सहयोग का सुझाव जमीन पर तभी उतर सकता है जब चीन, भारत से अपने विवादों का समाधान कर लें।

बावजूद इसके ब्रिक्स के विस्तार से भारत को सभी देशों से फायदा मिल सकता है क्योंकि उसके अधिकांश देशों से मित्रवत संबंध हैं। वहीं इन देशों को भी फायदा होगा। हालांकि एक आर्थिक तंत्र विकसित करने में अभी वक्त लगेगा।

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