संपादक की कलम से : जातिवादी सोच पर प्रहार

Sandesh Wahak Digital Desk : सीएम योगी आदित्यनाथ के निर्देश के बाद एक बार फिर वाहनों पर जाति और धर्म सूचक शब्दों का प्रयोग करने वालों के खिलाफ यातायात और पुलिस विभाग ने अभियान चलाना शुरू कर दिया है। गाजियाबाद, नोएडा, लखनऊ और आगरा समेत प्रदेश के अधिकांश जिलों में वाहनों पर लिखे मिले जातिसूचक शब्दों पर चालान काटे जा रहे हैं। जुर्माने का प्रावधान भी किया गया है। इससे वाहनों पर जातिसूचक शब्दों का इस्तेमाल करने वालों में हड़कंप मचा है।

सवाल यह है कि :-  

  • मोटर वाहन अधिनियम को दरकिनार कर लोग वाहनों पर जाति-धर्म सूचक शब्द क्यों लिखवाते हैं?
  • क्या इसके लिए आर्थिक-सामाजिक और सियासी कारण जिम्मेदार हैं?
  • यह प्रवृत्ति क्यों बढ़ रही है?
  • क्या लोकतांत्रिक देश में इस प्रकार की प्रवृत्ति घातक नहीं साबित होगी?
  • क्या यह जातिवाद को बढ़ावा दे रहा है?
  • क्या यह अभियान इस प्रकार की प्रवृत्ति पर अंकुश लगाने में सफल रहेगा?

भारत का समाज धर्मों व जातियों से मिलकर बना है। कई जातियां सामाजिक वर्गीकरण में उच्च और अन्य निम्न मानी जाती हैं। मध्यकाल में उच्च जातियों को कुछ विशेषाधिकार भी मिले थे लेकिन आजाद भारत में जब संविधान का निर्माण हुआ तो हमारे संविधान निर्माताओं ने जाति और धर्म के नाम पर किसी प्रकार के भेदभाव को स्वीकार नहीं किया और स्पष्ट कर दिया कि भारत का हर नागरिक समान है।

यह दीगर है कि कुछ जातियों को समाज की मूलधारा में लाने के लिए आरक्षण की सुविधाएं प्रदान की गईं लेकिन जातिवाद आज भी हावी है। लोग वाहनों तक पर जातिसूचक शब्दों का प्रयोग कर रहे हैं। मनोवैज्ञानिकों के मुताबिक ऐसे शब्दों का प्रयोग समाज में अपने आर्थिक और सामाजिक ओहदे को बताने के लिए किया जाता है। हालांकि इसके सियासी कारण भी हैं।

सियासी दल चुनाव के दौरान जाति के आधार पर प्रत्याशियों का चयन करते

देश में आज भी जातिवाद की राजनीति जारी है। सियासी दल चुनाव के दौरान जाति के आधार पर प्रत्याशियों का चयन करते हैं। कई क्षेत्रीय दल जातियों के आधार पर बने हुए हैं। इसका भी समाज पर असर पड़ा है और जातिवाद तेजी से फैल रहा है। वाहनों पर जातिसूचक शब्दों का प्रयोग बहुत कुछ इसी प्रकार की मानसिकता से प्रेरित है। हालांकि मोटर वाहन अधिनियम के तहत वाहनों पर जातिसूचक ही नहीं बल्कि अन्य किसी प्रकार के शब्दों का प्रयोग नहीं किया जा सकता है, बावजूद इसके उत्तर प्रदेश में यह धड़ल्ले से चल रहा है।

इसे रोकने के लिए भारत सरकार ने 2020 में यूपी सरकार को वाहनों से जातिसूचक शब्दों को हटाने के लिए पत्र लिखा था तब छिटपुट कार्रवाई की गई थी लेकिन बाद में इसे ठंडे बस्ते में डाल दिया गया था। अब फिर इसे शुरू किया गया है। अब यह देखना होगा कि यह अभियान मुकाम तक पहुंचता है या नहीं। बावजूद इसके प्रदेश सरकार ने वाहनों पर लिखे जातिसूचक शब्दों के खिलाफ सख्त कदम उठाकर सराहनीय कार्य किया है। इससे कम से कम प्रदेश में तेज हो रही जातिवादी सोच पर अंकुश लगेगा।

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