सम्पादक की कलम से : आतंकवाद और विदेशनीति

Sandesh Wahak Digital Desk : करीब एक दशक में आतंकवाद को लेकर भारत की विदेश नीति में आमूलचूल  बदलाव हुए हैं। वैश्विक मंचों से लेकर घरेलू स्तर तक इससे निपटने के लिए नयी रणनीति पर काम किया जा रहा है। यही वजह है कि आतंकवादी घटनाओं को लेकर न केवल सर्जिकल स्ट्राइक की गई बल्कि विश्व के देशों को संदेश दिया गया कि विदेशी धरती से आतंकी गतिविधियों को बर्दाश्त नहीं किया जाएगा।

हाल के दिनों में सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल ने अपने ब्रिटिश समकक्ष टिम बैरो से दो टूक कहा कि या तो वह अपने यहां स्थित खालिस्तानी आतंकियों के खिलाफ कार्रवाई करें या उन्हें भारत को प्रत्यर्पित कर दें। यही संदेश कनाडा को भी दिया गया है। यही नहीं खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी आतंकवाद के खिलाफ सभी देशों को मिलकर लड़ाई लड़ने का आह्वान कर चुके हैं और इस मामले में दोहरा मापदंड अपनाने वाले चीन और पाकिस्तान को खरी-खरी सुना चुके हैं।

सवाल यह है कि :-

  • क्या बदली विदेशनीति व आतंकियों से निपटने की रणनीति का कोई असर दिखाई दे रहा है?
  • क्या आतंकवाद को प्रश्रय देने वाले पाकिस्तान और चीन इस मामले में कोई ठोस कदम उठाएंगे?
  • कश्मीर के बाद अब पंजाब में बढ़ती आतंकी घटनाएं किस ओर इशारा कर रही हैं?
  • क्या भारत को कूटनीति के साथ आतंकियों से निपटने के लिए अपनी रणनीति में कुछ और बदलाव करने होंगे?

भारत कई दशकों से आतंकवाद से जूझ रहा है। आतंकी हमलों में भारत अपने तमाम नागरिकों और सेना के जवानों को गंवा चुका है। इसमें दो राय नहीं कि अधिकांश आतंकवादी पाकिस्तान की ओर से भेजे जा रहे हैं। पाकिस्तान में कई आतंकी संगठन काम कर रहे हैं और कई आतंकी शिविर आज भी पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर में संचालित हो रहे हैं।

एनआईए की कार्रवाई से इसकी पुष्टि भी हो चुकी

ये आतंकी कश्मीर में घुसपैठ कर वहां हिंसक गतिविधियों को अंजाम दे रहे हैं। हालांकि अनुच्छेद 370 की समाप्ति के बाद जम्मू-कश्मीर के हालात कुछ बदले हैं लेकिन अभी भी आतंकी गतिविधियां थम नहीं रही हैं। वहीं अब पंजाब में आतंकी गतिविधियां शुरू हो चुकी हैं। इसमें स्थानीय माफिया और तस्करों का सहयोग भी उन्हें मिल रहा है। एनआईए की कार्रवाई से इसकी पुष्टि भी हो चुकी है। ऐसी हालत में भारत सरकार ने अपनी पूर्ववर्ती नीति को बदलते हुए नये सिरे से विदेश नीति बनायी है।

अब वह आतंक के खिलाफ वैश्विक मंचों से लगातार खुलकर बोल रहा है। इसका असर भी दिखने लगा है। अमेरिका और ब्रिटेन जैसे देश भारत के समर्थन में खड़े दिख रहे हैं। वहीं दूसरी ओर राज्यों में आतंक रोधी दस्तों को सक्रिय कर दिया गया है। इसके कारण स्थानीय स्तर पर आतंकियों पर नकेल कसी जा रही है। जम्मू-कश्मीर में आतंकियों के सफाए का अभियान जारी है। इस सबका असर यह पड़ा है कि पिछले नौ सालों में बड़ी आतंकी वारदातों में कमी आयी है लेकिन सरकार को अभी इसके खिलाफ बहुत कुछ करने की जरूरत है।

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