संपादक की कलम से:  कानून व्यवस्था का सवाल

Sandesh Wahak Digital Desk : यूपी के आगरा में अवैध कब्जा हटाने गई पुलिस टीम पर सत्संगियों ने हमला कर दिया। इस दौरान सत्संगियों ने पथराव के साथ कांटेदार डंडों का इस्तेमाल भी किया। महिला सत्संगी भी पुलिस के सामने ही दबंगई दिखाती नजर आईं।

इस हमले में एक दर्जन से अधिक पुलिस वाले घायल हो गए। पुलिस के लौटते ही इन लोगों ने फिर से कब्जा मुक्त कराई जमीन पर बाड़बंदी कर दी। ये घटना प्रदेश के कानून व्यवस्था की बानगी भर है। इसके पहले भी पुलिस पर हमले होते रहे हैं।

सवाल यह है कि :-

  • क्या पुलिस बिना पर्याप्त व्यवस्था के मौके पर पहुंच गयी थी?
  • सत्संगियों के आगे पुलिस ने हथियार क्यों डाल दिए?
  • यदि कब्जे वाली जमीन के दस्तावेजों की मांग ही करनी थी तो इतनी संख्या में पुलिसकर्मियों को क्यों भेजा गया?
  • हमले के बाद भी पुलिस ने कोई कड़ी कानूनी कार्रवाई क्यों नहीं की?
  • क्या पुलिस पर कार्रवाई न करने का दबाव था? क्या पुलिस अवैध कब्जाधारियों के सामने नतमस्तक हो चुकी है?
  • क्या वह अपने इकबाल को पूरी तरह खो चुकी है?
  • कब्जाधारियों के मन में कानून का कोई खौफ क्यों नहीं है?

प्रदेश में पुलिस पर हमला आम होता जा रहा है। कभी अपराधी को पकडऩे, कभी शराब की अवैध भट्ठियों को बंद कराने और कभी कब्जा हटाने के दौरान पुलिस दबंगों के हमले का शिकार हो रही है। दूसरी ओर सरकारी जमीनों पर अवैध कब्जे का खेल पूरे प्रदेश में खेला जा रहा है। जिसको मन आ रहा है वही सरकारी जमीनों पर कब्जा कर लेता है। सब छोड़िए, प्रदेश का कोई ऐसा शहर नहीं है जहां अतिक्रमणकारी सडक़ों पर कब्जा किए नहीं बैठे हैं।

अवैध कब्जा करने वालों में अपराधी किस्म के लोग अधिक शामिल

हालांकि ये अतिक्रमणकारी पुलिस के आते ही अपना सामान समेट कर तुरंत चले जाते हैं बाद में फिर अपने स्थान पर जम जाते हैं। यह स्थितियां तब हैं जब सरकार प्रदेश में बेहतर कानून व्यवस्था का दावा करती है। अवैध कब्जा करने वालों में अपराधी किस्म के लोग अधिक शामिल होते हैं और पुलिस से भी इनकी साठ-गांठ रहती है। पुलिस और अन्य विभागों के कर्मियों की शह पर प्रदेश के तमाम शहरों में सरकारी और रेलवे की जमीनों पर झोपड़पट्टियां आबाद हैं। इन झोपड़पट्टियों को बिजली से लेकर पानी तक की सप्लाई की जाती है।

हैरानी की बात यह है कि इन झोपड़पट्टियों को बसाने वाले दबंग प्रति झोपड़ी हर महीने बाकायदा किराया वसूल करते हैं। साफ है, सरकारी जमीनों पर कब्जा मिलीभगत से किया जा रहा है और पुलिस के पहुंचते ही ये लोग हमला कर देते हैं। इसका परिणाम यह होता है कि इससे पुलिस की साख और कानून व्यवस्था का राज दोनों को आघात पहुंच रहा है। यदि सरकार वाकई अपनी जमीनों को कब्जा मुक्त कराना चाहती है तो उसे इसके लिए ठोस कार्ययोजना बनानी होगी और इसके लिए व्यापक अभियान चलाना होगा। साथ ही पुलिस टीम पर हमला करने वालों को चिन्हित कर सलाखों के पीछे पहुंचाना होगा अन्यथा खाकी का इकबाल धूल-धूसरित हो जाएगा।

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