संपादक की कलम से: राजनीति में अपराधीकरण

Sandesh Wahak Digital Desk : उत्तर प्रदेश में भाजपा विधायक रामदुलार गोंड को एमपी-एमएलए अदालत ने एक नाबालिग लडक़ी से दुष्कर्म करने के मामले में 25 साल के कारावास की सजा सुनाई है। यह कारावास सश्रम है। इसके अलावा कोर्ट ने 10 लाख का जुर्माना भी लगाया है।

यह मामला तब का है जब रामदुलार पर दुष्कर्म का मुकदमा चल रहा था और वह भाजपा के टिकट पर चुनाव जीतकर विधायक नहीं बने थे। यह महज एक बानगी है भारतीय राजनीति में अपराधीकरण की। यह तमाम दलों को आईना भी दिखाता है जो बाहुबलियों व दागियों को चुनाव में उतारकर जीत हासिल कर सत्ता तक पहुंचना चाहते हैं।

सवाल यह है कि:

  • क्या ऐसे दागी और बाहुबली देश और प्रदेश में कानून का राज स्थापित करने में सहयोग कर पाएंगे?
  • क्या सत्ता पाने के लिए सियासी दल किसी भी स्तर तक जा सकते हैं?
  • क्या कानून व्यवस्था की बात करने वाले सत्ता और विपक्षी दल अपने गिरेबां में झांकेंगे?
  • क्या ऐसे ही देश में लोकतंत्र को सुदृढ़ किया जा सकेगा?
  • क्या जनता इसे लेकर जागरूक होगी?
  • क्या चुनाव आयोग इस मामले में कोई ठोस कदम उठाएगा?

पिछले चार-पांच दशकों से राजनीति में अपराधीकरण तेजी से बढ़ा है। इसमें सबसे अधिक इजाफा तब हुआ जब क्षेत्रीय दलों का राजनीति में उभार आया। ये दल सत्ता पाने के लिए बाहुबलियों की फौज पर भरोसा करते रहे। दावा यह किया गया कि जब तक कोर्ट दोषी नहीं करार देता, उनका प्रतिनिधि निर्दोष है। तारीख पर तारीख पड़ती रही और बाहुबली अपने सियासी रसूख व धन बल से सजा से बचते रहे। क्षेत्रीय दल भी इनके जरिए सत्ता की मलाई खाते रहे और ऐसे लोगों को अभयदान देते रहे। सियासत में अपराधीकरण का यह असर धीरे-धीरे  राष्ट्रीय पार्टियों तक पहुंच गया है।

चुनाव आयोग इस मामले पर कोई ठोस कदम उठा रहा नहीं उठा रहा

हैरानी की बात यह है कि जो दल खुद को पाक साफ बता रहे थे, उनके मुखिया तक भ्रष्टाचार से लेकर तमाम प्रकार के अपराधों में लिप्त मिल रहे हैं। कुछ दलों के मुखिया तो सजा तक पा चुके हैं। सुप्रीम कोर्ट भी इस मामले को लेकर चिंतित है और चुनाव आयोग को इस पर नियंत्रण के लिए कई दिशा-निर्देश दिए। बावजूद इसके सियासी दलों का बाहुबलियों और दागियों के प्रति मोह भंग नहीं हो रहा है और न ही चुनाव आयोग इस मामले पर कोई ठोस कदम उठा रहा है।

चुनाव आयोग ने बस इतना किया है कि प्रत्याशियों को अपने आपराधिक मुकदमों के बारे में जानकारी सार्वजनिक करने को कहा है लेकिन उसके इस निर्देश का भी पालन नहीं किया जा रहा है। तमाम प्रत्याशी अपने खिलाफ दर्ज केसों की जानकारी तक सार्वजनिक नहीं कर रहे हैं। साफ है राजनीति से अपराधीकरण तब तक खत्म नहीं होगा जब तक जनता अपने मताधिकार के प्रयोग को लेकर सतर्क नहीं होगी। यदि जनता ऐसे लोगों को दरकिनार करना शुरू कर देगी तो सियासी दल खुद सुधार करने पर मजबूर होंगे। इसके अलावा चुनाव आयोग को भी इसे रोकने के लिए ठोस कदम उठाना होगा।

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