संपादक की कलम से : जर्जर भवन, हादसे और तंत्र

Sandesh Wahak Digital Desk : लखनऊ के आलमबाग में स्थित रेलवे कॉलोनी में एक जर्जर भवन की छत गिरने से पांच लोगों का भरा पूरा परिवार मौत की आगोश में समा गया। इसके पहले भी यहां एक बहुमंजिला इमारत ढहने से कई लोगों की मौत हो गयी थी।

राजधानी में घटी ये दो घटनाएं सरकारी तंत्र की घोर लापरवाही की बानगी है। प्रदेश के कई जिलों में सैकड़ों जर्जर भवन हैं और हजारों लोग इन भवनों में आज भी रह रहे हैं लेकिन न तो नगरनिगमों और नगरपालिकाओं ने इसकी सुधि ली न जर्जर सरकारी भवनों के प्रति संबंधित विभागों का ही ध्यान गया।

सवाल यह है कि :-

  • सरकारी कॉलोनियों और जर्जर भवनों के प्रति संबंधित विभाग इतनी उदासीनता क्यों बरत रहे हैं?
  • इन भवनों की मरम्मत क्यों नहीं करायी जा रही है?
  • शहरों में जर्जर भवनों से लोगों को हटाया क्यों नहीं जा रहा है?
  • उनके पुनर्वास की व्यवस्था क्यों नहीं की जा रही है?
  • नगरनिगम और नगर पालिकाएं आखिर क्या कर रही हैं?
  • क्या किसी को भी लोगों की जान से खिलवाड़ करने की छूट दी जा सकती है?

उत्तर प्रदेश के हर शहर में जर्जर भवनों की संख्या लगातार बढ़ती जा रही है। अकेले लखनऊ में 241 जर्जर भवनों की पहचान की जा चुकी है। वहीं हादसे वाली रेलवे कॉलोनी के भी कई मकान जर्जर हो चुके हैं। हैरानी की बात यह है कि इन भवनों में लोग जान-जोखिम में डालकर रह रहे हैं। वहीं नगर निगम हर साल बारिश के मौसम में इन जर्जर भवनों पर नोटिस चस्पा कर अपने कर्तव्यों की इतिश्री कर लेता है। नगर निगम की ओर से यहां रह रहे लोगों को समझाने की जहमत तक नहीं उठायी जाती है।

पुनर्वास की कोई न कोई व्यवस्था सरकार की ओर से की जानी चाहिए

इसमें दो राय नहीं कि यहां रह रहे लोग इतने सक्षम नहीं है कि वे दूसरा बसेरा बना सके। ऐसी स्थिति में इनके पुनर्वास की कोई न कोई व्यवस्था सरकार की ओर से की जानी चाहिए। ताकि ये लोग हादसे का शिकार न हो सकें। लोकतांत्रिक सरकार से यह उम्मीद की भी जानी चाहिए। जहां तक सरकारी आवासों और कॉलोनियों का सवाल है उनकी स्थिति कोई अलग नहीं है। तमाम कॉलोनियों जब से बनी है तब से लेकर आज तक वहां रखरखाव की कोई व्यवस्था नहीं की गई है।

हैरानी की बात यह है कि ये जर्जर कॉलोनियों के आवास संबंधित विभाग अपने कर्मचारियों को अलॉट भी कर देता है। जब प्रदेश की राजधानी लखनऊ में यह हाल है तो अन्य जिलों के बारे में आसानी से अंदाजा लगाया जा सकता है। ऐसे में सवाल यह है कि जर्जर भवनों के ध्वस्त होने से होने वाली जान-माल की हानि का जिम्मेदार कौन है?

दरअसल, इस ओर सरकारी तंत्र पूरी तरह उदासीन है। लिहाजा ऐसी घटनाएं घटती रहती है। यह स्थितियां खतरनाक हैं। जाहिर है यदि सरकार लोगों की जान-माल की सुरक्षा करना चाहती है तो उसे इन जर्जर भवनों के लिए ठोस कार्ययोजना बनानी होगी। एक ओर इन भवनों को खाली कराना होगा दूसरी ओर इसमें रहने वाले लोगों के लिए पुनर्वास की व्यवस्था भी करनी होगी।

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