संपादक की कलम से: भूकंप पर जागरूकता की दरकार

Sandesh Wahak Digital Desk : नेपाल में एक बार फिर विनाशकारी भूकंप ने तबाही मचाई है। इसके कारण वहां 157 लोगों की मौत हो गई जबकि करीब दो सौ लोग घायल हो गए हैं। सैकड़ों मकान जमींदोज हो गए। सबसे ज्यादा जाजरकोट व रूकुम जिले प्रभावित हुए हैं। इस भूकंप के कारण नेपाल से सटे यूपी के सीमावर्ती इलाकों में भी कई मकानों में दरारें आ गयी हैं। भूकंप के झटके से यूपी समेत पूरा उत्तर भारत हिल गया था और लोगों में दहशत फैल गयी थी। ये भूकंप भारत के लिए सबक से कम नहीं हैं।

सवाल यह है कि :

  • गुजरात के भुज में आए विनाशकारी भूकंप के बावजूद सरकार ने इससे बचाव के लिए आज तक कोई ठोस रणनीति क्यों नहीं बनाई?
  • लोगों को भूकंप से बचाव के लिए जरूरी जानकारी क्यों नहीं उपलब्ध करायी जाती है?
  • देश में जागरूकता कार्यक्रम क्यों नहीं चलाए जा रहे हैं?
  • खतरनाक और बेहद खतरनाक जोन में स्थित इलाकों में अनिवार्य रूप से भूकंपरोधी मकानों का निर्माण क्यों नहीं किया जा रहा है?
  • पहाड़ी इलाकों में सरकार प्रकृति केंद्रित विकास पर फोकस क्यों नहीं कर रही है?
  • भूकंप को लेकर प्राचीन पद्धति से होने वाले भवन निर्माण को प्रोत्साहित क्यों नहीं किया जा रहा है?
  • क्या पड़ोसी नेपाल में लगातार आ रहे बड़े भूकंप को दरकिनार किया जा सकता है?

भारत के कुछ क्षेत्रों को छोड़ दिया जाए इसका अधिकांश इलाका भूकंप प्रभावित है। यूपी, उत्तराखंड, हिमाचल प्रदेश, जम्मू-कश्मीर, राजस्थान, बिहार, गुजरात, दिल्ली आदि भूकंप के बेहद खतरनाक जोन में आते हैं। इसके अलावा यह पड़ोस में स्थित नेपाल में होने वाली भूकंपीय हलचल से प्रभावित होता है। हालांकि अफगानिस्तान और पाकिस्तान में आने वाले भूकंप का भी असर यहां दिखाई पड़ता है। यही नहीं भारत पूर्व में कई विनाशकारी भूकंपों से दो-चार हो चुका है।

पहाड़ी राज्यों में हालात और भी खराब

बावजूद इसके केंद्र और राज्य सरकारें इसको लेकर गंभीर नहीं दिखाई पड़ रही है। बेहद खतरनाक जोन में बसे पहाड़ी राज्यों में हालात और भी खराब है। मसलन, उत्तराखंड और हिमाचल प्रदेश में हो रहे अंधाधुंध निर्माण कार्यों से इसकी जमीन कमजोर हो रही है। यहां प्रकृति से लगातार छेड़छाड़ की जा रही है। यही वजह है कि हाल में दोनों राज्यों में बारिश के कारण भारी तबाही हुई। इसमें दो राय नहीं कि आज तक भूकंप की भविष्यवाणी करना संभव नहीं हो सका है बावजूद इसके बचाव के लिए जरूरी उपाय तो किए ही जा सकते हैं।

मसलन पहाड़ी क्षेत्रों में प्रकृति केंद्रित विकास और भवन निर्माण में पुरानी पद्धति यानी लकड़ी से मकान बनाए जाएं क्योंकि भूकंप आने पर सबसे ज्यादा जन हानि पक्के मकानों के ढहने से ही होती है। इसके अलावा पूरे देश में भूकंप से बचाव के लिए जरूरी जानकारी पाठ्यक्रम में शामिल की जाए और लोगों को इसके लिए प्रशिक्षित किया जाए। वहीं भूकंप प्रभावित राज्यों में भूकंपरोधी भवनों का निर्माण अनिवार्य किया जाए और इसकी मानीटरिंग की जाए अन्यथा स्थितियां भयावह हो सकती हैं।

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