संपादक की कलम से: छुट्टा पशुओं का आतंक और तंत्र

राजधानी समेत प्रदेश के तमाम शहरों में कुत्तों और सांड़ों का आतंक बढ़ गया है। इनके हमलों में अब तक कई लोगों की मौत तक हो चुकी है।

Sandesh Wahak Digital Desk: यूपी की राजधानी लखनऊ के नामी चिकित्सा संस्थान केजीएमयू में एक कुत्ता अचानक आतंक मचाने लगा और आक्रामक हो गया। इसके हमले से नर्स, डॉक्टर समेत सात लोग घायल हो गए। ऐसी कई अन्य घटनाएं शहर में हो चुकी हैं। राजधानी समेत प्रदेश के तमाम शहरों में कुत्तों और सांड़ों का आतंक बढ़ गया है। इनके हमलों में अब तक कई लोगों की मौत तक हो चुकी है। यह हाल तब है जब यूपी सरकार ने सांड़ों को गो आश्रय स्थल में रखने व उनकी देखभाल के लिए बजट का प्रावधान किया है। श्वान केंद्र बनाने का भी प्लान तैयार किया गया था लेकिन अफसरों की लापरवाही के चलते ये बेसहारा पशु सडक़ों से लेकर सार्वजनिक स्थलों तक पर डेरा जमाए रहते हैं और अक्सर लोगों पर हमला करते हैं।

आतंक

सवाल यह है कि…

  • छुट्टा पशुओं की धर-पकड़ का इंतजाम क्यों नहीं किया जा रहा है?
  • नगर निगम और नगर पालिकाएं क्या कर रही हैं?
  • आश्रय स्थलों को जारी होने वाला पैसा आखिर कहां खर्च किया जा रहा है?
  • शिकायतों के बावजूद कैटल कैचिंग दस्ते सक्रिय क्यों नहीं हैं?
  • नसबंदी के दावों के बावजूद कुत्तों की संख्या में तेजी से इजाफा कैसे हो रहा है?
  • क्या निगम व पालिकाएं टैक्स वसूलने वाली संस्थाएं बन कर रह गयी हैं?
  • छुट्टा पशुओं के हमले से होने वाली मौतों के लिए कौन जिम्मेदार है?

पूरे प्रदेश में हाल है बेहाल

प्रदेश की सडक़ों और सार्वजनिक स्थलों पर घूम रहे छुट्टा पशु लोगों के लिए खतरा बन चुके हैं। कुत्तों व सांड़ों के हमलों में कई लोगों की जानें जा चुकी हैं। तमाम लोग घायल हो चुके हैं। कुत्तों के हमलों की संख्या कितनी बढ़ गयी है, इसका अंदाजा लखनऊ के बलरामपुर अस्पताल में एंटी रैबीज वैक्सीन लगवाने के लिए पहुंचने वाले लोगों की संख्या देखकर लगाया जा सकता है। यहां प्रतिदिन औसतन पचास व्यक्ति टीकाकरण कराते हैं। इसमें बच्चों और वयस्कों की संख्या सबसे अधिक होती है। यही हाल पूरे प्रदेश में है। वहीं सांड़ चौराहों और गलियों में घूमते रहते हैं।

विपक्ष इस मामले को लेकर सरकार पर अक्सर हमलावर रहता है। हालांकि सरकार ने इनको सडक़ों से हटाने के लिए गो-आश्रय स्थल खोल रखे हैं लेकिन इनकी संख्या कम होती नहीं नजर आ रही है।

धर-पकड़ अभियान राजधानी में फेल

दरअसल, कुत्तों की नसबंदी करने से लेकर सांड़ों को गो-आश्रय स्थल पहुंचाने की जिम्मेदारी नगर निगम व पालिकाओं के कैटल कैचिंग दस्ते को दी गयी है लेकिन कभी-कभी ही इन पशुओं की धर-पकड़ के लिए अभियान चलाया जाता है। नगर निगम हर साल कुत्तों की नसबंदी के बड़े-बड़े दावे करता है बावजूद अकेले राजधानी में इनकी संख्या में तेजी से इजाफा हुआ है।

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सरकार को उठाने होंगे ठोस कदम

साफ है दस्तावेजों में सबकुछ दुरुस्त का खेल खेला जा रहा है। यदि सरकार छुट्टा पशुओं के आतंक से शहरवासियों को मुक्त कराना चाहती है तो इस समस्या का उसे ठोस हल निकालना होगा। गो-आश्रय स्थलों की संख्या बढ़ानी होगी। साथ ही श्वान केंद्रों के निर्माण के प्लान और इनकी संख्या को नियंत्रित करने के उपाय को जमीन पर उतारना होगा।

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