पायलट नहीं माया राजस्थान में ला सकतीं हैं सियासी बवंडर !

Sandesh Wahak Digital Desk/Suryakant Tripathi : राजस्थान कांग्रेस के लिए कल यानी 11 जून का दिन बेहद खास होने वाला है। युवा नेता सचिन पायलट कांग्रेस से अलग होकर अपनी पार्टी का ऐलान कर सकते हैं। खबर यह भी है कि उन्होंने दो नामों से पार्टियों का रजिस्ट्रेशन करा दिया है और इसमें से किसी एक नाम का ऐलान वे कल करेंगे। भले ही कांग्रेस के कुछ विधायकों ने इसका खंडन कर रहे हो लेकिन सियासत की फिजां में अंतिम समय ही हकीकत का पता चलता है। ऐसा हुआ तो यह भाजपा और कांग्रेस के लिए बड़ा झटका होगा लेकिन इस सियासी बवंडर की असली कुंजी बसपा प्रमुख मायावती के पास ही होगी।

राजस्थान में 2018 में हुए विधानसभा चुनाव में कांग्रेस की जीत के साथ ही अशोक गहलोत और सचिन पायलट में ठनी है। चुनाव की आहट के साथ पायलट ने अपनी ही सरकार पर न केवल भ्रष्टाचार को प्रश्रय देने का आरोप लगाया बल्कि इसके खिलाफ कार्रवाई नहीं होने पर पदयात्रा के जरिए शक्ति प्रदर्शन भी किया और अब तकरार का यह घड़ा फूटने के करीब है। इतने के बाद भी कांग्रेस आलाकमान से पायलट को कोई तवज्जो नहीं मिलने से साफ है कि वे कुछ बड़ा कर सकते हैं।

हालांकि यदि सचिन ने नयी पार्टी का ऐलान किया तो उनके समर्थक विधायक सामने आएंगे या आचार संहिता के लागू होने का इंतजार करेंगे, यह कल ही पता चलेगा लेकिन यदि हुआ तो सचिन को यहां की हनुमान बेनीवाल की पार्टी आरएलपी और घनश्याम तिवारी की भारत वाहिनी पार्टी का समर्थन मिल सकता है।

तीसरे मोर्चे की सुगबुगाहट

बेनीवाल पहले भी पायलट को अपने साथ आने का न्योता दे चुके हैं और दोनों के बीच सियासी संबंध भी मधुर है। यानी एक तीसरे मोर्चा बन सकता है लेकिन इन दोनों पार्टियों के समर्थन के बावजूद सचिन तब तक वहां किंग मेकर बनने की स्थिति में नहीं आ सकते हैं जब तक बसपा का समर्थन नहीं मिले। यहां पिछले कुछ चुनाव में बसपा को विधान सभा चुनाव में छह सीटें मिली हैं। यह तब हुआ जब बसपा प्रमुख यहां कभी प्रचार नहीं करने गईं।

हालांकि जिस तरह अशोक गहलोत ने बसपा के सभी 6 विधायकों को कांग्रेस में शामिल करा लिया था, उससे मायावती नाराज हैं और इसका उन्होंने खुलकर इजहार भी किया था। यहां अनुसूचित जनजाति की संख्या 18 फीसदी है जबकि पायलट जिस गुर्जर जाति से आते हैं उसका प्रतिशत पांच है। वहीं बेनीवाल जिस जाट समुदाय से आते हैं उसका प्रतिशत 9 है।

साफ है यदि तीनों दलों ने हाथ मिलाया तो जातीय समीकरण के आधार पर बसपा का पलड़ा भारी है। यह स्थिति भाजपा और कांग्रेस दोनों के लिए मुश्किल पैदा करेगी। फिलहाल राजस्थान की सियासत किस मोड़ पर पहुंचेगी यह अभी नहीं कहा जा सकता लेकिन इतना साफ है कि राजनीति में कुछ भी संभव है।

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