जातिगत जनगणना को चुनावी हथियार बनाएंगे विपक्षी दल, पसोपेश में भाजपा

सहयोगियों के समर्थन करने पर बढ़ीं एनडीए सरकार की मुश्किलें

Sandesh Wahak Digital Desk : बिहार में हुए जाति सर्वेक्षण की गूंज अब यूपी में भाजपा विरोधी दलों के लिए मानो चुनाव जीतने वाले अमोघ अस्त्र जैसी लगने लगी है। यूपी में समाजवादी पार्टी तो पहले से ही इसकी पक्षधर रही है। अब सरकार के सहयोगियों ने समर्थन करके अहम संकेत दिए हैं। दरअसल इन आंकड़ों में पिछड़ों-अति पिछड़ों की आबादी सर्वाधिक दिखने लगी है।

अगर दलितों को भी जोड़ दें तो गैर सवर्ण आबादी तकरीबन 80 फीसद है। अपनी जाति की राजनीति करने वाले दल बिहार को नमूने के तौर पर देख रहे हैं और इसी से अनुमान लगा रहे हैं कि उनके यहां भी कमोबेश ऐसी ही स्थिति है। यानी उन्हें इसे चुनावी हथियार बनाने में आसानी होगी।

जाति सर्वे को राजनीतिक दल जितना तूल दे रहे, उतना आम आदमी नहीं दे रहा। आम आदमी को रोजी चाहिए, सुशासन चाहिए, स्वास्थ्य सुविधाएं चाहिए और बेहतर शिक्षा चाहिए। अगर किसी सरकार ने इसके लिए कुछ नहीं किया है तो जाति सर्वेक्षण सिर्फ सियासी शिगूफा बन कर रह जाएगा। खासतौर पर भाजपा के लिए मिशन 2024 के लिहाज से ये मुद्दा गले की फांस बनता नजर आ रहा है।

BJP के सहयोगी दल भी जातीय गणना की मांग को फिर से उठाने लगे

इस मुद्दे पर विपक्ष ही नहीं बल्कि सत्ता पक्ष में शामिल भाजपा के सहयोगी दल भी जातीय गणना की मांग को फिर से उठाने लगे हैं। वहीं योगी सरकार पर खासा दबाव बनाया जा रहा है। भाजपा के जिम्मेदारों का कहना है कि पार्टी को गैर यादव और गैर जाटव के समीकरणों पर पुन: लौटना पड़ेगा।

इस रणनीति का इस्तेमाल भाजपा ने तकरीबन डेढ़ दशक पहले किया था। बुधवार को निषाद पार्टी के अध्यक्ष डॉ. संजय निषाद ने बाकायदा प्रेस वार्ता में जातीय गणना कराने की मांग रखी। एनडीए की घटक दल अपना दल (एस) और सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी ने भी जाति जनगणना करने की मांग उठाकर भाजपा पर दबाव बना दिया है।

अपना दल (एस) की मुखिया अनुप्रिया पटेल का कहना है कि उनकी पार्टी हमेशा से जाति आधारित जनगणना करने की पक्षधर रही है और इस मुद्दे को उन्होंने सडक़ से लेकर संसद तक उठाया है। वहीं सुभासपा के मुख्य प्रवक्ता अरुण राजभर का कहना है कि उनकी पार्टी का गठन ही इस मुद्दे की लड़ाई को लेकर हुआ है।

पीएम ने निकाली काट, गरीबी मिटाना ज्यादा जरूरी

हालांकि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इसकी काट निकाल ली है। उन्होंने गैर सवर्ण जातियों की अधिक आबादी को अपने पक्ष में करने के लिए कह दिया है कि हमारे लिए जातियां महत्वपूर्ण नहीं हैं, बल्कि गरीबी मिटाना ज्यादा जरूरी है। देश में अब भी गरीबों की आबादी सर्वाधिक है। कोरोना काल से ही नरेंद्र मोदी की सरकार गरीबों को मुफ्त राशन दे रही है। मुफ्त का राशन पाने वालों की तादाद 80 करोड़ खुद पीएम बताते रहे हैं।

यानी देश की 138 करोड़ आबादी में 80 करोड़ गरीब हैं। यह सच है कि जाति सर्वे के नाम पर अपनी-अपनी जातियों के हित के मुद्दे उठा कर अब नया नेतृत्व उभर सकता है। यदि न उभरे तो उभारने की कोशिश जरूर हो सकती है। लेकिन पीएम के इस कथन में सच्चाई है कि जब तक गरीबी खत्म नहीं होती, ऐसे जातिगत सर्वेक्षणों की कोई अहमियत नहीं रह जाती।

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