सम्पादक की कलम से : कुश्ती संघ पर रार के मायने

Sandesh Wahak Digital Desk : भारतीय कुश्ती महासंघ के ताजा चुनाव परिणामों ने एक बार फिर विवादों को हवा दे दी है। इस चुनाव में निर्वतमान अध्यक्ष बृजभूषण सिंह के बेहद खास संजय सिंह न केवल अध्यक्ष बने बल्कि अधिकांश पदों पर उनके आदमियों ने जीत हासिल की है। इससे साफ है कि महासंघ में बृजभूषण का दबदबा कायम है। बृजभूषण पर शीर्ष पहलवानों बजरंग पूनिया, साक्षी मलिक और विनेश फोगाट ने महिला पहलवानों के यौन शोषण का आरोप लगाते हुए दिल्ली में जोरदार प्रदर्शन किया था।

मामला तब थमा जब सरकार ने निष्पक्ष चुनाव कराने और बृजभूषण के खिलाफ एफआईआर दर्ज कराने की बात स्वीकार कर ली थी लेकिन जैसे ही इस चुनाव के नतीजे आए सबसे पहले साक्षी ने कुश्ती से संन्यास लेने का ऐलान किया और फिर बजरंग पूनिया ने अपना पद्मश्री लौटाने की घोषणा की। इस मामले पर उन्होंने पीएम मोदी को पत्र भी लिखा।

सवाल यह है कि :

  • पहलवान चुनाव नतीजों से खुश क्यों नहीं हैं?
  • क्या खेल संघों में सियासी दखलंदाजी के कारण स्थितियां बिगड़ रही हैं?
  • क्या बृजभूषण पर लगे आरोपों पर पुलिस सक्रियता नहीं दिखा रही है?
  • क्या विरोध प्रदर्शन करने वाले पहलवान सियासी मोहरा बन गए हैं?
  • क्या इस समस्या का स्थायी समाधान सरकार करेंगी?
  • क्या खेल संघों को सियासत से दूर रखा जाएगा?

केवल कुश्ती संघ ही नहीं बल्कि अन्य महासंघ भी विवादों में रहे हैं। इनके चुनाव में सियासत का बोलबाला रहता है और सत्ताधारी दल इन खेल संघों में अपना दबदबा बनाने के लिए हर मुमकिन कोशिश करता है और सफल भी रहता है। कई बार खेल संघों का संचालन ऐसे लोगों के हाथों में रहता है जो खेल की एबीसीडी नहीं जानते हैं। यहां गुटबाजी, भाई-भतीजावाद चरम पर है। इसके कारण तमाम खेल प्रतिभाएं उभरने के पहले खत्म हो जाती हैं। कुश्ती संघ भी इससे अछूता नहीं है।

महिला पहलवानों के यौन शोषण का लगाया आरोप

इसके अध्यक्ष रहे बृजभूषण सिंह पर महिला पहलवानों के यौन शोषण का आरोप लगा और इस मामले में एफआईआर दर्ज की गई लेकिन आज तक मामले का कोई निष्कर्ष नहीं निकला। हालांकि कुश्ती महासंघ के चुनाव में बृजभूषण का कोई रक्त संबंधी नहीं उतरा था लेकिन अधिकांश पदों पर उनके अपने खास ही जीते। इसको लेकर विरोध तेज हो गया है।

वहीं इस मामले को लेकर सरकार ने भी कोई सही रुख नहीं अपनाया। यदि मान लें कि विरोध कर रहे पहलवानों को विपक्षी दल इस्तेमाल कर रहे हैं तो इसका जिम्मेदार कौन है? पहलवानों की बात पर गौर क्यों नहीं किया गया।

सरकार यदि खेलों को वाकई प्रोत्साहन देना चाहती है तो उसे खेल संघों में आमूल बदलाव करना होगा। इनकी बागडोर खिलाड़ियों के हाथ में सौंपनी होगी और सियासी हस्तक्षेप से इसको दूर रखना होगा अन्यथा यहां प्रतिभाएं कम सियासी दांव-पेच और गुटबाजी ज्यादा होती रहेगी और यह खेलों के भविष्य के लिए शुभ संकेत नहीं है।

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