संपादक की कलम से: अंतरिक्ष में एक्सपोसैट के मायने

Sandesh Wahak Digital Desk : भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) ने नए वर्ष पर एक और उपलब्धि हासिल की। इसरो ने आंध्र प्रदेश के श्रीहरिकोटा स्थित सतीश धवन स्पेस सेंटर से एक्स-रे पोलेरिमीटर सैटेलाइट (एक्सपोसैट) सफलतापूर्वक लॉन्च किया। यह उपग्रह पृथ्वी से 650 किमी ऊपर चक्कर लगाएगा। उपग्रह का मुख्य उद्देश्य ब्लैक होल का अध्ययन करना और इसके रहस्यों को जानना है। इसका जीवन काल पांच वर्ष का है। ऐसा करने वाला भारत, दुनिया का दूसरा देश बन गया है। इसके पहले अमेरिका ब्लैक होल के अध्ययन के लिए ऐसे उपग्रह अंतरिक्ष में भेज चुका है।

सवाल यह है कि :

  • इसरो की इस सफलता का भारत की वैश्विक स्थिति पर क्या असर पड़ेगा?
  • ब्लैक होल के बारे में जानकारी जुटाने के पीछे देश के वैज्ञानिकों की मंशा क्या है?
  • क्या इससे देश की अर्थव्यवस्था प्रभावित होगी?
  • क्या भविष्य में हम ब्रह्मांड के निर्माण का रहस्य जान सकेंगे?
  • क्या ब्लैक होल से निकलने वाले विकिरण के रहस्य से पर्दा उठाने में एक्सपोसैट सफल हो सकेगा?

पिछले एक दशक से इसरो अंतरिक्ष के क्षेत्र में लगातार ऐतिहासिक उपलब्धियां हासिल कर रहा है। पिछले वर्ष चंद्रयान-3 को चंद्रमा के दक्षिणी धु्रव पर उतारकर इसने  अंतरिक्ष विज्ञान के क्षेत्र में मील का पत्थर स्थापित कर दिया। चंद्रमा की सतह से विक्रम लैंडर और रोवर प्रज्ञान द्वारा भेजी गयी जानकारियों का विश्लेषण जारी है। शुरुआती जांच से पता चला है कि चंद्रमा पर कई प्रकार के खनिज तत्व विद्यमान है और यहां तापमान में काफी अंतर है।

ब्रह्मांड के रहस्यों से पर्दा हटाने की तैयारी

अब एक्सपोसैट को अंतरिक्ष में भेज कर इसने ब्रह्मांड के रहस्यों से पर्दा हटाने की तैयारी की है। यह एक एडवांस्ड एस्ट्रोनॉमी ऑब्जर्वेटरी है, जिसका काम ब्लैक होल और न्यूट्रान सितारों की स्टडी करना है। दरअसल, जब तारों का ईंधन खत्म हो जाता है तो उनकी मौत हो जाती है। उनकी मौत अपने गुरुत्वाकर्षण की वजह होती है। इसकी वजह से ब्लैक होल और न्यूट्रॉन सितारें बनते हैं। हालांकि इसके अलावा अभी तक ब्लैक होल के बारे में कोई खास जानकारी वैज्ञानिकों के हाथ नहीं लगी है।

इसी जानकारी को हासिल करने के लिए इसरो ने अपना कदम बढ़ाया है। वैज्ञानिकों का मानना है कि यदि वे ब्लैक होल के बारे में विस्तृत जानकारी प्राप्त करने में सफल हो गए तो ब्रह्मांड के निर्माण से लेकर इसके विकास तक की जटिल प्रक्रिया को आसानी से समझ सकेंगे। साथ ही यह भी जान सकेंगे कि भविष्य में अंतरिक्ष में यात्रा कर रही हमारी पृथ्वी के लिए ब्लैक होल कितना खतरनाक है।

हालांकि इस सबमें कितना वक्त लगेगा, इसे बताना संभव नहीं है। बावजूद इसके इस सफलता से भारत का अंतरिक्ष बाजार में दबदबा बढ़ जाएगा। इसरो के उपग्रहों की लॉन्चिंग की सफलता दर और कम पैसे में उन्हें अंतरिक्ष में भेजने के कारण छोटे देश अपने सैटेलाइट भारत से छोडऩे की प्रक्रिया तेज कर सकते हैं। इसका फायदा देश की  अर्थव्यवस्था पर पड़ेगा। वहीं अंतरिक्ष विज्ञान के प्रति युवा पीढ़ी में रुचि बढ़ेगी।

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