संपादक की कलम से : सैन्य साजोसामान और स्वदेशीकरण

Sandesh Wahak Digital Desk : रक्षा मंत्रालय ने करीब 45 हजार करोड़ के नौ रक्षा खरीद प्रस्तावों को मंजूरी दे दी है। इस धनराशि से तीनों सेनाओं के लिए सैन्य साजोसामान खरीदे जाएंगे। यह खरीद विदेशी नहीं बल्कि भारतीय कंपनियों से की जाएगी। यही नहीं इन सैन्य साजोसामान में 70 फीसदी स्वदेशी उपकरण प्रयोग किए जाएंगे।

सवाल यह है कि :- 

  • सरकार की इस नीति का भारतीय सेना की मजबूती पर कितना असर पड़ेगा?
  • क्या स्वदेशीकरण को अपनाने से देश की अर्थव्यवस्था पर असर पड़ेगा?
  • देश में सैन्य हथियारों के उत्पादन पर जोर क्यों दिया जा रहा है?
  • क्या भविष्य में हथियारों का आयातक भारत निर्यातक देश में खुद को तब्दील कर लेगा?
  • इसका रोजी-रोजगार पर क्या और कितना असर होगा?
  • क्या इसके जरिए दुनिया के हथियार बाजार में भारत की साख मजबूत होगी?
  • क्या इससे एशिया में हथियारों की दौड़ बढ़ेगी?

केंद्र में भाजपा के सत्तासीन होने के बाद से देश में हर क्षेत्र में स्वदेशीकरण पर विशेष फोकस जा रहा है। इसके लिए प्रधानमंत्री मोदी ने बाकायदा आत्मनिर्भर भारत का नारा बुलंद किया है। यह कई क्षेत्रों में दिख भी रहा है। रक्षा क्षेत्र में भी इस प्रक्रिया को तेजी से अपनाया जा रहा है। शुरुआती दौर में फाइटर विमानों और अन्य युद्धक सामग्री में स्वदेशी उपकरणों का प्रयोग किया गया लेकिन अब इसका दायरा बढ़ा दिया गया है।

सरकार की इस नीति से होंगे कई फायदे 

सैन्य साजोसामान के उत्पादन में 65 से 70 फीसदी स्वदेशी उकरणों का प्रयोग करने पर बल दिया जा रहा है। सरकार की इस नीति से कई फायदे होंगे। पहला यह कि इससे देश के भीतर ही उपकरणों का उत्पादन होगा। जिसके कारण न केवल नए शोध किए जाएंगे। बल्कि कम पैसे में अत्याधुनिक हथियारों से सेना को लैस किया जा सकेगा। दूसरा हथियारों की खरीद में प्रयोग की जाने वाली भारी-भरकम धनराशि देश के अंदर ही खर्च की जाएगी यानी हथियार निर्माता भारतीय कंपनियों को यह पैसा मिलेगा।

तीसरे, भारतीय कंपनियों के आयुध निर्माण में शामिल होने से देश में रोजगार के साधन विकसित होंगे। इसका फायदा स्थानीय लोगों को भी मिलेगा और चौथा बेहद महत्वपूर्ण फायदा यह होगा कि इसके कारण वैश्विक सैन्य बाजार में भारत की धाक जम जाएगी। इसके कारण छोटे देश भारत से सैन्य आयुध खरीद सकेंगे। हाल में ब्रह्मोस मिसाइल व भारत में बने कुछ अन्य सैन्य हथियारों की मांग कुछ एशियायी देशों द्वारा की जा रही है। निकट भविष्य में इसमें इजाफा होने की उम्मीद है। इसका सीधा फायदा देश की अर्थव्यवस्था पर पड़ेगा।

हालांकि इससे एशियाई देश भविष्य में हथियारों की दौड़ में शामिल हो जाएंगे। इसका एशिया की शांति और स्थिरता पर कितना प्रभाव पड़ेगा, इसके बारे में फिलवक्त कुछ कहा नहीं जा सकता है लेकिन इतना साफ है कि सैन्य साजोसामान का स्वदेशीकरण आने वाले दिनों में देश के लिए लाभदायक होगा और यह सेना को मजबूती प्रदान करेगा। यह तब और जरूरी है जब चीन व पाकिस्तान से भारत की तनातनी चल रही है।

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