सम्पादक की कमल से : महाराष्ट्र में सियासी उलटफेर के मायने

Sandesh Wahak Digital Desk : महाराष्ट्र में एक बार फिर बड़ा सियासी उलटफेर हो गया है। महाविकास अघाड़ी गठबंधन के प्रमुख दल एनसीपी के अजित पवार ने न केवल शिंदे सरकार को अपना समर्थन दे दिया है बल्कि अपने आठ विधायकों के साथ शपथ ग्रहण भी कर लिया है। खुद अजित ने उपमुख्यमंत्री पद की शपथ ली और एनसीपी पर अपना दावा ठोका है। इससे न केवल महाराष्ट्र बल्कि देश की राजनीति में भूचाल आ गया है। हालांकि एनसीपी प्रमुख शरद पवार ने कहा है कि वे अपने बूते पार्टी को खड़ी करेंगे।

सवाल यह है कि :- 

  1. महाराष्ट्र में आए इस सियासी उलटफेर का प्रदेश और देश की राजनीति पर क्या असर पड़ेगा?
  2. क्या अजित की बगावत ने शरद पवार के सियासी यात्रा पर विराम लगा दिया है?
  3. क्या इससे लोकसभा चुनाव के पहले चल रही विपक्षी एकता की कवायद को बड़ा धक्का लगा है?
  4. भाजपा ने शरद को उनके ही दांव में उलझा दिया है?
  5. क्या शरद पवार को पार्टी में अजित की अनदेखी भारी पड़ गई है?
  6. क्या एनसीपी का समर्थन महाराष्ट्र में लोकसभा और विधानसभा चुनावों में भाजपा को बड़ी सफलता दिला पाएगी?

शरद पवार के एक फैसले से बाद बढ़ी थी बगावत की सुगबुगाहट

एनसीपी प्रमुख शरद पवार ने जब अपने भतीजे व पार्टी के वरिष्ठ नेता अजित पवार की जगह अपनी बेटी सुप्रिया सुले को कार्यकारी अध्यक्ष बनाया था तभी इस बगावत की पटकथा लिख दी गयी थी। हालांकि इसके पहले भी अजित ने 2019 में शरद से बगावत कर भाजपा की सरकार बनवा दी थी। बाद में वे पार्टी में वापस लौट गए और भाजपा की सरकार गिर गई थी।

इसके बाद शिवसेना, कांग्रेस और  एनसीपी की महाविकास अघाड़ी सरकार बनी। यह सरकार भी नहीं चल सकी और एकनाथ शिंदे ने तत्कालीन सीएम उद्धव ठाकरे के खिलाफ बगावत की और असली शिवसेना का दावा करते हुए भाजपा के समर्थन से सरकार बनाने में सफल रहे और अब शिंदे को अजित पवार का समर्थन मिल गया है। इसमें दो राय नहीं है कि यह स्थिति शरद की अपनी नीतियों के कारण उत्पन्न हुई हैं।

एनसीपी की राजनीति को बड़ा झटका

एनसीपी के अधिकांश नेता और विधायक मानते हैं कि सुप्रिया नहीं बल्कि अजित पवार के नेतृत्व में ही पार्टी का भविष्य है। यही वजह है कि वे अजित के साथ खड़े दिखाई दे रहे हैं। भले ही पवार कुछ भी कहें उनकी सियासत को जोर का झटका धीरे से लगा है।

हकीकत यह है कि अजित ने बगावत कर एक तरह से उनकी सियासत पर करीब-करीब पूर्ण विराम लगा दिया है और यदि अजित के दावे के मुताबिक अधिकांश विधायक उनके साथ है तो फिर शरद के हाथ से एनसीपी का नाम और चुनाव चिन्ह भी फिसल सकता है। देश की राजनीति पर भी इसका बड़ा असर पड़ेगा।

लोकसभा चुनाव से पहले भाजपा और मोदी के खिलाफ जिस विपक्षी एकता की कवायद की जा रही थी, उसे भी अजित के बगावत से बड़ा झटका लगा है और इसने शरद के सियासी कद को कम कर दिया है। वहीं इससे लोकसभा चुनाव से पहले महाराष्ट्र में भाजपा की स्थिति मजबूत हुई है।

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